क्या वाकई मंदिर दर्शन से लाभ मिलता हैं
*ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा
ज्योतिषाचार्य आकांक्षा
श्रीवास्तव*
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अपने ईष्ट के दर्शनों के लिए मंदिर जाते ही होंगे आप क्या लाभ मिलता हैं आपकों
अगर आप ईश्वर में आस्था, श्रद्धा और विश्वास रखते हैं, तो जरूर अपने ईष्ट के दर्शनों के लिए मंदिर जाते ही होंगे, कोई मन की शांति के लिए तो कोई धन प्राप्ति की कामना से, कोई स्वयं भगवान की प्राप्ति के लिए कोई अनेक-अनेक अपनी इच्छाओं या समस्याओं की पूर्ति के लिए मंदिर जाते ही हैं, पर क्या किसी ने शायद ही मंदिर जाकर भगवान से यह मांगा हो की हे देव आप जैसे शक्तिवान, प्रकाश पुंज, प्रेम के सागर और सबसे समान प्यार करने वाले हैं हमें भी आपके जैसा ही बना दिजीए । कहा जाता हैं की वे मुनष्य बड़े ही दुर्भाग्यशाली होते हैं जो स्वयं प्रकाश से मिलकर अंधकार की मांग प्रकाश से करें । सौभाग्यशाली तो बिरले ही होते हैं जिन्हें ईश्वर के जैसा बनने का पुण्य अवसर मिलता हैं । आइये जानते हैं कि भगवान से आखिर मांगे क्या?
Mandir Darshm
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मन्दिर में दैवीय दर्शन - तब पूरा होता है जब ईश्वरीय चेतना का दर्शन जीवन में उतरता है। जैसा इष्ट वैसा जीवन, उनके जीवन आदर्शो का अनुपालन अपने जीवन में । राम इष्ट तो मर्यादा जीवन में, कृष्ण इष्ट तो धर्मस्थापना झलके जीवन में, शिव इष्ट तो झलके उदारता जीवन में, गायत्री इष्ट तो सद्बुद्धि सत्कर्म झलके जीवन में । हनुमान इष्ट सेवा भाव जीवन में, दुर्गा इष्ट तो अनिति से लड़ने की प्रबल इच्छा मन में, और शंकर इष्ट तो सबके कल्याण का भाव जीवन में । जब दर्शन करने मन्दिर में जाते है तो उस दर्शन से अपने जीवन दर्शन को पुनः आलोकित करते हैं । पुनः उन दर्शनों सिद्धान्तों को जीवन मे अनुपालन का संकल्प लेते हैं।
जिन मन्दिरों, शिवालयों, शक्तिपीठों या अन्य तीर्थ स्थलों में नित्य प्रतिदिन- जप, तप, यज्ञ होता हैं और वहां प्रेम और सहकार का वातावरण होता हैं, ऐसे सिद्ध मन्दिरों के गर्भ ग्रह में प्राण ऊर्जा और दैवीय चेतना का इतना तीव्र प्रभाव रहता है कि दर्शन करने आने वाला व्यक्ति 5 मिनट भी शुद्ध अन्तःकरण से वहां जप कर ले तो उसकी चेतना में दिव्य प्राण प्रवाह उतरने लगता है । इसलिए मन्दिर दर्शन हेतु सप्ताह में एक बार जरूर जाना चाहिए ।
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सप्ताह में एक दिन तो जरूर जायें मंदिर
अगर नित्य मंदिर नहीं जा सके तो सप्ताह में कम से कम एक दिन प्रत्येक रविवार, अवकाश के दिन नजदीकी सिद्ध मन्दिर जाग्रत मन्दिर, शक्तिपीठों में यो ऐसे चेतना केंद्रों जाकर, यज्ञ में भाग लेकर और मन्त्र जप द्वारा इस दिव्य प्राण प्रवाह को अपनी चेतना में धारण कर इसकी अनुभूति में खो जाइये । अपने बच्चों को भी मन्दिर दर्शन और यज्ञ में सम्मिलित करवाइये । स्वयं दिव्यता अनुभव कीजिये और दूसरों को भी मन्दिर जाने के लिए प्रेरित कीजिये और पुण्य लाभ अर्जित किजीए ।
*ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा
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