5 मई को भौम प्रदोष व्रत, मंगलिक दोष और इन मामलों में लाभकारी ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव astroexpertsolution.com भगवान शिव को समर्पित प्रदोष के व्रत का बहुत माहात्म्य है। ऐसा विश्वास है कि इस व्रत को रखने से महादेव प्रसन्न होते हैं और उपासक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। जिस तरह हर महीने के दोनों पक्षों में एक-एक बार एकादशी का व्रत होता है, ठीक उसी प्रकार त्रयोदशी को प्रदोष का व्रत रखा जाता है। यह कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों में किया जाता है। इस बार यह शुभ तिथि 5 मई दिन मंगलवार को है। प्रदोष व्रत का वार परिचय जब प्रदोष तिथि रविवार को आती है, उसे रवि प्रदोष कहते हैं। इस दिन व्रत करने से दीर्घ आयु और आरोग्य का वरदान प्राप्त होता है। सोमवार को यदि त्रयोदशी हो तो उसे सोम प्रदोष कहा जाता है, इस दिन व्रत करने से ग्रह दशा का निवारण होता है और सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। यदि मंगलवार को हो तो उसे भौम प्रदोष कहा जाता है। इस दिन व्रत करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य अच्छा रहता है। यदि प्रदोष तिथि बुधवार को हो तो उसे बुध प्रदोष कहा जाता है। इस दिन व्रत करने से सर्व कामना की सिद्धि प्राप्त होती है। भगवान शिव कैलाश पर करते हैं नृत्य यदि एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है तो त्रयोदशी का व्रत भगवान शंकर को। क्योंकि त्रयोदशी का व्रत शाम के समय रखा जाता है इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है इसलिए इस दिन उन्हीं की पूजा और अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन प्रदोष के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं और सभी देवता उनकी स्तुति करते हैं। संतान फल की होती है प्राप्ति शिव भक्तों में भौम प्रदोष व्रत का काफी महत्व है। इस व्रत से हजारों यज्ञों को करने का फल प्राप्त होता है। इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है और दरिद्रता का नाश होता है। संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का काफी महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इससे संतान की इच्छा रखने वालों के संतान की प्राप्ति होती है और संतान दीर्घायु होती है। प्रदोष व्रत कथा एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी, उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका एक पुत्र था जिसका नाम मांगलिया था। वह हर रोज सुबह से अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। इस तरह से ही वह स्वयं और पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी भीख मांगकर घर वापस आ रही थी, तभी उसको रास्ते में एक लड़का घायल अवस्था मिला, ब्राह्मणी उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था और शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और उसके राज्य पर नियंत्रण कर लिया था। राजकुमार ब्राह्मण और उसके पुत्र के साथ घर पर रहने लगा। एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई। अगले दिन गंधर्व कन्या अपने माता-पिता से राजकुमार को मिलाने ले आई। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को भगवान शिव ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए, उन्होंने वैसा ही किया। विधवा ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी और यह उसके प्रदोष व्रत का ही प्रभाव था कि गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मणी और उसके पुत्र को महल में जगह दी और पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बना लिया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के कारण शंकर बगवान की कृपा से जैसे राजकुमार और ब्राह्मणी पुत्र के दिन सुधर गए, वैसे ही शंकर भगवान अपने हर भक्तों पर कृपा बनाए रखते हैं और सबके दिन संवर जाते हैं। ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव astroexpertsolution.com