अतुलित बल-बुद्धि ही नहीं, गुणों की खान हैं संकट मोचन हनुमान जी महाराज
ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 94150 87711 92357 22996 🍁🍀astroexpertsolutions.com🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁
हनुमान जी तो गुणों के इतने धनी हैं कि उनका नाम बिना विशेषण के लेना कुछ अधूरा सा लगता है। कोई उन्हें राम भक्त हनुमान कहता है तो कोई पवन पुत्र। वह सिर्फ अतुलित बल-बुद्धि के ही धनी नहीं बल्कि वास्तव में गुणों की खान हैं। कभी रामभक्त के रूप में तो कभी गुप्तचर, तो कभी महाज्ञानी हनुमान। ऐसा ही है उनका स्वरूप...
उच्च परीक्षार्थी हनुमान
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हनुमान जी परीक्षा से घबराने वाले नहीं है। उनकी पग-पग पर परीक्षा हुई थी और वह उस परीक्षा में खरे साबित हुए थे। सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत की कंदराओं में अपने भाई बालि से बचने के लिए निवास करते हैं, तभी एक दिन वह राम-लक्ष्मण को देखकर भयभीत हो जाते हैं कि शायद वे बालि द्वारा भेजे गए हैं। यहां पर हनुमान जी की बुद्धि और विवेक की परीक्षा होती है और वह राम-लक्ष्मण से सुग्रीव का परिचय कराकर उनकी मित्रता करा देते हैं। और परीक्षा में सफल होकर अपने सचिव पद को गरिमा प्रदान करते हैं। हनुमान जी ने जाम्बंत को निराश नहीं किया। वह उनके विश्वास की कसौटी पर पूर्णतः खरे उतरे तथा सीता जी का पता लगाकर वापस लौटे। जब हनुमान जी सीता जी की खोज करने के लिए निकलते हैं तब देवगण उनकी परीक्षा लेने के लिए सर्पों की माता सुरसा को भेजते हैं और हनुमान जी अपने ज्ञान, विवेक और बल से इस परीक्षा में सफल होते हैं। अशोक वाटिका में जब हनुमान जी पर सीता जी को संदेह होता है तब वह अपना विशाल रूप उन्हें दिखाते हैं। सीता जी का संदेह मिट जाता है। इस तरह से देखा जाए तो हनुमान जी का पूरा जीवन परीक्षाओं से ही भरा हुआ है। और वह सभी परीक्षाओं में अव्वल रहे हैं। हनुमान जी की पूजा करने वालों को परीक्षाओं से तनिक भी भय नहीं लगता और वह परीक्षाएं पास करते चले जाते हैं।
गुप्तचर हनुमान
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हनुमान जी एक कुशल गुप्तचर हैं। वह किसी भी व्यक्ति की पहचान परखने के लिए अपना रूप बदलकर उससे मिलते हैं और वास्तविकता का पता लगा लेते हैं। वह समय की मांग के अनुसार अपना आकार छोटा और बड़ा कर लेते हैं। इस प्रकार वह हमारे सामने एक उत्कृष्ट कोटि के गुप्तचर के रूप में प्रस्तुत होते हैं। वह गुप्तचरों के सारे हथकंडे जानते हैं और वह जरूरत पड़ने पर उनका प्रयोग भी करते हैं। हनुमान जी की पूजा इस दृष्टि से करने वालों को इस कार्य में सफलता मिलती है।
कर्मयोगी हनुमान
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कर्मयोगी हनुमान जी सच्चे कर्मयोगी हैं। वह किसी भी वस्तु को उसके मालिक से बिना पूछे हाथ नहीं लगाते । जब उन्हें भूख लगती है तो वह भूख शांत करने के लिए सीता जी की आज्ञा लेते हैं। वैसे सीता जी वहां की स्वामिनी नहीं हैं लेकिन हनुमान जी वहां केवल उन्हें ही जानते हैं और लंबे समय तक रहने के कारण वह अशोक वाटिका पर अपना अधिकार सा मानती हैं। हनुमान जी की पूजा करने से व्यक्ति में सच्चे कर्मयोग की भावना प्रबल होती है।
उदार हृदय हनुमान
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हनुमान जी अधिकारी व्यक्ति को श्रेय देने में कभी कोताही नहीं करते। वह अपने प्रति उपकार करने वाले के प्रति समय-समय पर कृतज्ञता प्रदर्शित करते हैं। हनुमान जी की पूजा करने वाले को पर्याप्त फल प्राप्त होता है। हनुमान जी उसके सारे मनोरथ पूरे करते हैं।
सत्य की मूर्ति हनुमान
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तीनों लोकों में सत्य की ही प्रतिष्ठा है। सत्य स्वयं नारायण है। आदि भी सत्य है और अंत भी सत्य है। हनुमान जी पूरे राम चरितमानस में सत्य का ही सहारा लेते हैं। एक भी प्रसंग में वह असत्य नहीं बोलते, इसलिए वे एक बार जो कुछ भी बोल देते हैं, वह सत्य ही होता है। हनुमान जी सत्यनिष्ठ हैं। वह अपने रूप और जाति को लेकर अनेक स्थानों पर प्रतिक्रिया करते हैं। वह स्वयं को नीच, कुटिल और चंचल वानर कहते हैं यहां तक कि स्वयं को अज्ञानी भी कह जाते हैं, जबकि वह अज्ञानी नहीं है। उनमें सत्य को स्वीकार करने और उसे डंके की चोट पर कहने का साहस है। श्रीराम से पहली बार भेंट होने पर जब वह उन्हें पहचान जाते हैं तो स्वयं को अवगुण की खान बताते हुए कहते हैं कि, मुझे भजन-साधन कुछ भी नहीं आता है, वह ये बात शपथ पूर्वक कहते हैं। उनकी यह बात अकाट्य सत्य है।
मानस में उन्हें एक बार भी किसी स्थल पर प्रातःकाल, सांयकाल या रात्रिकाल में पूजा-पाठ करते नहीं देखा गया है। वास्तव में हनुमान जी के मन में चौबीस घंटे राम नाम का जप चलता रहता है। सीता-राम साक्षात् उनके हृदय में विराजते हैं। हनुमान जी सत्य बोलते हैं। हनुमान जी सत्य बोलते हैं, प्रिय बोलते हैं, लेकिन विघनटनकारी अप्रिय सत्य नहीं बोलते हैं और वह सत्य भी बोलते हैं तो भगवान राम की शपथ लेकर बोलते हैं, इसलिए यह सत्य सोने पर सुहागा हो जाता है।
गुण ग्राहक हनुमान
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हनुमान जी गुणग्राहक हैं। वह दूसरों के गुणों की खुलकर प्रशंसा करते हैं। वास्तव में एक गुणी व्यक्ति में ही दूसरों के गुणों की प्रंशसा का साहस होता है। हनुमान जी दूसरों की प्रशंसा तो करते ही हैं, परम गुणी होते हुए भी स्वयं को अवगुणी बताने में भी चूक नहीं करते। हनुमान जी की पूजा करने से व्यक्ति गुण ग्राहक बनता है और हनुमान जी की तरह ही यश एवं कीर्ति प्राप्त करता है।
महाज्ञानी हनुमान जी
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हनुमान जी परमज्ञानी हैं। वह अपने ज्ञान का कभी प्रदर्शन नहीं करते, बल्कि समय आने पर उनका विवेकपूर्ण इस्तेमाल करते हैं। वह ज्ञान के सागर हैं। हनुमान चालीसा में सर्वप्रथम जो दोहा है, उसमें हनुमान जी को ज्ञान का सागर बताया गया है। वह ज्ञान गुण के सागर हैं, इसलिए कभी अपनी सीमा का अतिक्रमण नहीं करते। सागर भी अपनी मर्यादा में रहता है। वास्तव में ज्ञान यदि मर्यादित हैं, उसमें दूसरों के समक्ष अपने आपको स्थापित करने की जिजीविषा नहीं है, तभी वह शोभा पा सकता है। हनुमान जी का ज्ञान मर्यादित है। इनकी पूजा करने वाला इनकी तरह ही मर्यादित ज्ञान का स्वामी बन जाता है।
सबके प्रिय हनुमान जी
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हनुमान जी ऐसे पात्र हैं, जिनकी मित्र-शत्रु दोनों ने समान रूप से प्रशंसा की है। स्वयं भगवान राम ने कहा है कि हनुमान तुम मुझे लक्ष्मण से भी अधिक प्रिय हो। मुझे सेवक सर्वाधिक प्रिय हैं क्योंकि मुझको छोड़कर उनका कोई सहारा नहीं होता। हनुमान जी के भक्तों का न तो कोई शत्रु होता है और न मित्र। वह सबका प्रिय होता है।
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