➰।।हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे ।।➰
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👉शरीरशरीरमें आत्मा कहां रहती है?-----------
➖➖ Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra➖➖9415087711➖➖➖9235722996➖
👉 वैसे तो आत्मा के वाहक पांच शरीर हैं--स्थूल शरीर, भाव या वासना शरीर, सूक्ष्म या प्राण शरीर, मनःशरीर अर्थात मनोमय शरीर और आत्म शरीर।
👉इनमें तीन वाहक शरीर मुख्य हैं--स्थूल शरीर, सूक्ष्मशरीर और लिंग शरीर।
👉स्थूल शरीर और वासना शरीर का समिश्रण सूक्ष्मशरीर है। सूक्ष्म शरीर की साधना योग-तन्त्र में काफी महत्वपूर्ण है। स्थूल शरीर रहते हुए ही सूक्ष्मशरीर की साधना से साधक सूक्ष्मशरीर के माध्यम से अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त कर लेता है। वह सूक्ष्म जगत में आवागमन कर सकता है।
,👉जब साधक की आत्मा को उच्चावस्था प्राप्त होती है तो सूक्ष्मशरीर और मनोमय शरीर का मिश्रण लिंग शरीर को वह उपलब्ध हो जाता है।
👉 इसी प्रकार मनोमय शरीर आत्म शरीर का मिश्रण कारण शरीर कहलाता है।
👉जाग्रत अवस्था में आत्मा स्थूल जगत में रहती है। स्वप्नावस्था में आत्मा लिंग शरीर में रहती है और तुरीयावस्था में आत्मा कारण शरीर में रहती है। यह आत्मा का निज शरीर है। मरणोपरांत आत्मा जिस शरीर में जिस अवस्था में प्रवेश करती है, वह मूढावस्था है, स्वप्नावस्था है।
👉मृत्यु के बाद हम स्वप्न की इस अवस्था में उसी प्रकार जागते हैं जैसे हम गहरी नींद के बाद जागते हैं। जागरण-काल से मृत्यु के पल तक सारी घटनाएं हमें स्वप्न-सी प्रतीत होती हैं। उस समय ऐसा लगता है जैसे हम नींद से एक लम्बा स्वप्न देखकर जाग गए हैं। उस अवस्था में प्राप्त जीवन, जगत और वातावरण हम उसी प्रकार सत्य समझने लगते हैं जैसे जागृत जीवन में स्वप्न के देखने के बाद लौटते हैं।
👉 जब आत्मा जागने के बाद स्थूल शरीर-विहीन अपने को जिस शरीर में पाती है तो उसे ही प्रेत शरीर कहते हैं। वासना क्षय होने के बाद आत्मा फिर सुप्तावस्था को प्राप्त कर लेती है, उसे एक प्रकार से मूढावस्था कहते हैं और उसके बाद सूक्ष्म शरीर को प्राप्त कर पुनर्जन्म के लिए तैयार पाती है अपने को।
👉पुनर्जन्म होने पर अपवाद को छोड़कर आत्मा को पूर्व जन्म की स्मृतियाँ नहीं रहतीं। हां उनका संस्कार बीज रूप में अवश्य रहता है। आत्मा उन्हीं संस्कारों को लेकर पुनर्जन्म के लिए गर्भ में प्रवेश करती है। इस प्रकार आत्मा हज़ारों जन्मों के संस्कार समेटे हुए रहती है और जन्म-पुनर्जन्म के चक्कर पड़ती रहती है।
👉योग-तन्त्र में जितनी साधनाएं हैं, सब इन्हीं संस्कारों के क्षय के लिए हैं। जिस प्रकार हमारे सिर पर एक भारी-सा बोझ रख दिया जाय तो कुछ ही देर में उस बोझ से हम घबराने लगेंगे, उसी प्रकार हमारे सिर से संस्कारों का भारी बोझ उतर जाता है तो आत्मा को सुख-शांति मिलती है और यही सुख-शान्ति साधना के बाद मनुष्य को प्राप्त होती है।
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