पितृऋण से उऋण होने का माध्यम है गया श्राद्ध :- Jyotishacharya Dr Umashankar Mishra9415087711--9235722996 जन्म लेते ही मनुष्य पितृऋण के भार से युक्त हो जाता है. इससे मुक्त होने के लिए गयाश्राद्ध अनिवार्य है . कहा भी गया है :- 'गयायां पिण्डदानेन पितृणामनृणो भवेत् '. शास्त्रों के अनुसार गया में पिंडदान से पितृऋण से मुक्ति मिलती है . सनातन परम्पराओं के वृहद अध्यन कर चुके आचार्य रमेश पांडेय और सनातन धर्मग्रंथो के अनुसार कहते है कि अगर पुत्र ने माता -पिता या पितरो का श्राद्ध नहीं किया तो उन्हें मुक्ति नहीं मिल सकती है . गया में पिंडदान की महत्ता को लेकर कई धर्मग्रंथो में कर्तव्य की व्याख्या की गई है . कर्मपुराण में कहा गया है - तस्मात्सर्वप्रयत्नेन ब्राह्मणस्तु विशेषतः प्रदधाद्विधिवप्तिण्डान् गयां गत्वा समाहित: | अर्थात् :- मनुष्यों के लिए पितरो के निमित पिंडदान करना आवश्यक है . मनुष्य को किसी भी तरह का प्रयत्न कर अपने पितरो के लिए पिंडदान करना चाहिए . खासकर ब्राह्मणो के लिए तो इसे अत्यंत आवश्यक बताया गया है कि वे गया जाएं और वहां श्राद्ध कर पितरो की आत्मा को संतुष्ट करें . पितर कामना करते है कि कूल में से यदि कोई भी गयाजी आए तो वह हम सबों को उद्धार कर देगा . धर्म पृष्ठ पर ब्राह्मणो के समक्ष गया स्तिथ अक्षयवट पर पितरो के लिए गया श्राद्ध अक्षय होता है . धेनुकारण्य में पितरो का श्राद्ध करने वाला बीस पीढ़ी तक ऊपर नीचे वाले वंशजों का उद्धार कर देता है