बसंत पंचमी का महत्व एवं संक्षिप्त पूजा विधि
Jyotish Acharya dr Umashankar Mishra 9415 087 711
धर्मशास्त्रों के अनुसार प्रत्येक वर्ष माघ मास शुक्ल पक्ष की शुभ पंचमी तिथि को वाग्देवी माँ सरस्वती जी का प्रकाट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार सृष्टि सृजन कर्ता ब्रह्मा जी ने सृष्टि में ज्ञान-विज्ञान,ललित कला के अधिष्ठापन निमित्त ज्ञान की अधिष्ठात्री वाग्देवी माँ सरस्वती का सृजन किया था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा ने जब संसार को बनाया तो पेड़-पौधों और जीव जन्तुओं सबकुछ दिख रहा था, लेकिन उन्हें किसी चीज की कमी महसूस हो रही थी। इस कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर छिड़का तो सुंदर स्त्री के रूप में एक देवी प्रकट हुईं। उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी। तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था। यह देवी थीं मां सरस्वती।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जिस तरह सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही सभी देवता, नाग, राक्षस, गंधर्व आदि एक माह के लिए पृथ्वी आते हैं। उसी प्रकार सूर्य के कुम्भ राशि में प्रवेश से ॠतुओं के राजा बसंत का पर्व रतिकाम महोत्सव का शुभारंभ होता है।
बसंतऋतु की पूरी अवधि महत्वपूर्ण है लेकिन इसका आरम्भ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माँ शारदा का प्रकाट्य दिवस है।
इसलिए समस्त शुभ कार्यो के श्रीगणेश के लिए सबसे शुभ मुहूर्त माना जाता है।
बसंत पंचमी के दिन अबूझ मुहूर्त होता है। जिसमें विवाह, सगाई और निर्माण जैसे शुभ कार्य बिना मुहूर्त के किए जाते हैं।
इस वर्ष यह शुभ दिवस cal 05 फरवरी 2022 दिन शनिवार को पड़ रहा है। विद्वानों के अनुसार इस दिन मां सरस्वती की विधिपूर्वक पूजा करने से वाग्देवी देवी मां की कृपा से बुद्धि और विद्या का वरदान प्राप्त होता है।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि, शनिवार 5 फरवरी को सुबह 06 बजकर 44 मिनट से प्रारंभ होगी,जो कि अगले दिन 6 फरवरी, रविवार को सुबह 06 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगी। बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के बाद और पूर्वाह्न से पहले की जाती है।
पूजा विधि:
इस दिन घरों में शिक्षण संस्थानों में भी मां सरस्वती की पूजा आयोजित की जाती है। प्रातः स्नानादि क्रिया से निवृत्त होकर मां सरस्वती की पूजा करें और उन्हें पुष्प अर्पित करें। उनके मंत्रों का जाप करें। इस दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करना शुभ होता है। इस दिन पीले रंग का व्यंजन तथा पीत रंग का मिष्ठान बनाने की परंपरा है। विशेष कर इस दिन पीले चावल का प्रसाद ग्रहण करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस दिन वाद्य यंत्रों पुस्तकों लेखनादि की पूजा करने का भी विधान है।ऐसी मान्यता है कि मां सरस्वती इससे प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा भक्तों पर बनी रहती है।
माँ सरस्वती वंदना के कुछ श्लोक
करेण वीणा परिवादयन्तीम ,
तथा जापन्तीमपरेण मालाम् !
मराल पृष्ठा सत्सत्निविष्ठाम,
तां सरस्वती शिरसा नमामि। 1
कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥ 2
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥3॥
देवि ! महेश्वरि भारति माता, तव गुण महिमा भुवने ख्याता।
वीणापाणि सरस वर दे, अंतर्रक्षणि जन सुख दे।
ज्ञान विराग विवेक विधाने, निगमागम मयि शान्ति निधाने।
दूरी कुरु मम दुष्कृत भारं,
कुरु कृपया भव सागर पारं।। 4
अपूर्व: कोपि कोशोयं विद्यते तव भारति।
व्ययतो वॄद्धिम् आयाति क्षयम् आयाति संचयात्॥
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