सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र की प्रस्तुति
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ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 94150 87711
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क्या आप पीपल के पेड़ के
बारे में जानकारी
रखते है❓
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कहा जाता है कि चाणक्य के समय में सर्प विष के खतरे को निष्प्रभावित करने के उद्देश्य से जगह - जगह पर पीपल के पत्ते रखे जाते थे। पानी को शुद्ध करने के लिए जलपात्रों में अथवा जलाशयों में ताजे पीपल के पत्ते डालने की प्रथा अति प्राचीन है। कुएं के समीप पीपल का उगना आज भी शुभ माना जाता है।
धार्मिक मान्यता
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भारतीय ग्रंथों एवं उपनिषदों में ऐसे बहुत से वृक्ष हैं, जो पवित्र और पूजनीय माने जाते हैं। इनकी पूजा श्रद्धा से की जाती है। इन वृक्षों में भी कुछ की पूजा गौणरूप से होती है और कुछ केवल पवित्र ही माने जाते हैं। प्राचीनकाल में जब लोगों का जीवन ही वृक्षों पर निर्भर था, तब वे वृक्षों का बहुत सम्मान करते थे, परंतु जब मनुष्य ने अपना बसेरा ईट-पत्थरों से बने घरों को बना लिया तब से वृक्षों के सम्मान और महत्त्व को हम भूलते गये। हिन्दुओं में पीपल, तुलसी, बेल आदि वृक्षों की पूजा की जाती है। कारण है उनका हमारे जीवन में अत्यधिक उपकार। अतः उनकी पूजा करके उनके प्रति हम अपनी कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करते हैं। हमारे जीवन में जिन प्राकृतिक तत्वों का अत्यधिक उपकार हैं ।
पीपल में देवताओं का वास
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धर्म ग्रंथों में यज्ञों में समिधा के निमित्त पीपल, बरगद, गूलर और पाकर वृक्षों की काष्ठ को पवित्र माना गया है और कहा गया है ये चारों वृक्ष सूर्य की रश्मियों के घर हैं। इनमें पीपल सबसे पवित्र माना जाता है। इसकी सर्वाधिक पूजा होती है। क्योंकि इसके जड़ से लेकर पत्र तक में अनेक औषधीय गुण हैं। इसीलिए हमारे पूर्वज-ऋषियों ने उन गुणों को पहचान कर आम लोगों को समझाने के लिए उन्हीं की भाषा में कहा था इन वृक्षों में देवताओं का वास है तथा इसे देववृक्ष यानी देवताओं का वृक्ष माना गया है। यह किसी अंधविश्वास या आडंबर के चलते नहीं है बल्कि इसके अनेक दिव्य गुणों के चलते ही है। पीपल विष्णु, शिव तथा ब्रह्मा का एकीभूत रूप है। अतः उस को प्रणाम मात्र से ही समस्त देवता प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए यह वृक्ष न केवल गाय, ब्राह्मण व देवता के समान पावन माना जाता है, बल्कि पूजनीय भी है।
*अक्षय वृक्ष*
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पीपल को कभी क्षीण न होने वाला अक्षय वृक्ष माना गया है। जड़ से ऊपर तक का तना नारायण कहा गया है और ब्रह्मा, विष्णु, महेश ही इसकी शाखाओं के रूप में स्थित है। पीपल के पत्ते संसार के प्राणियों के समान है। प्रत्येक वर्ष नए पत्ते निकलते हैं पतझड़ होता है, मिट जाते हैं, फिर नए पत्ते निकलते हैं, यही जन्म-मरण का चक्र है।
पीपल के वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध को इस तथ्य का बोध हुआ था और वे बुद्ध कहलाये थे। महात्मा बुद्ध (भगवान बुद्ध) का बोध–निर्वाण पीपल की घनी छाया से जुड़ा हुआ है। इस वृक्ष के नीचे एकाग्रचित बैठकर देखें तो यह अनुभव होगा कि पत्तों के हिलने की ध्वनि एकाग्रचित्तता में सहायक होती है। पीपल से निरन्तर आक्सीजन का निकलना तथा पत्तों की आवाज़ हमारे चित्त को साधना में सहायक बनाती है। पीपल की छाया तप, साधना के लिए ऋषियों का प्रिय स्थल माना जाता था। पीपल की जड़ के निकट बैठ कर जो जप, दान, होम, स्तोत्र पाठ, ध्यान व अनुष्ठान किया जाता है, उनका फल अक्षय होता है। पीपल के नीचे किया गया दान अक्षय हो कर जन्म-जन्मांतर फलदायी होता है !
पीपल से जुड़ी भ्रांतियाँ
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जन सामान्य में पीपल के संबंध में अनेक भ्रांतियाँ और अंध-विश्वास व्याप्त है। यह आम धारणा है कि पीपल के वृक्ष पर ब्रह्म राक्षस एवं भूत-प्रेतों का वास होता है। दाह-संस्कार के बाद जो अस्थियाँ चुनी जाती हैं उन्हें एक लाल कपडे में बाँध कर एक छोटी सी मटकी में रख पीपल के वृक्ष पर टांगने की प्रथा भी है। यह इसलिए कि विसर्जन के लिए चुनी गयी यह अस्थियाँ घर नहीं ले जायी जा सकती, अत: उन्हें पीपल के वृक्ष पर टांग दिया जाता है। इस कारण भी पीपल के विषय में अंध-विश्वास बढ़ा है। कर्म कांड में विश्वास रखने वाले लोगों की मान्यता है कि पीपल के वृक्ष पर ब्रह्मा का निवास होता है। मरणोत्तर क्रियाकर्म भी पीपल की छाँव में इसलिए किये जाते हैं कि प्रेतात्मा की शीघ्र ही मुक्ति हो और भगवान विष्णु के धाम बैकुण्ठ को चला जाये।
पीपल में पितरों का वास
पीपल में पितरों का वास भी माना गया है। विश्वास है कि पितृ-प्रकोप अर्थात् पितरों की नाराज़गी के कारण भी कोई व्यक्ति जीवन में विकास नहीं कर पाता। पितरों को प्रसन्न करने के लिए इस विधि से पीपल की पूजा की जाये, तो तत्काल फल मिलता है। उनकी विधि इस प्रकार है- पीपल के नीचे संकल्प रविवार की रात्रि को भोजन के बाद पीपल की दातून से दांत साफ़ करे, फिर स्नान कर पूजन सामग्री लेकर पीपल के वृक्ष के नीचे जाएँ। जल लेकर संकल्प करें कि मै इस जन्म एवं पूरे जन्म के पापों के नाश के लिए यह पूजन कर रहा हूँ। फिर यह संकल्पित जल जड़ में छोड़ दें। गणेश पूजन कर पीपल वृक्ष को गंगाजल तथा पंचामृत से स्नान कराए और तने में कच्चा सूत लपेट कर, जनेऊ अर्पण करे। पुष्प आदि अर्पण कर आरती करे, नमस्कार कर वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करे। प्रत्येक परिक्रमा पर वृक्ष को मिष्ठान अथवा एक फल अर्पित कर दीप जलाये। सोमवती अमावस्या पर इस तरह पीपल पूजन से तत्काल फल मिलता है।
तंत्र मंत्र में पीपल
तंत्र मंत्र की दुनिया में भी पीपल का बहुत महत्त्व है। इसे इच्छापूर्ति धनागमन संतान प्राप्ति हेतु तांत्रिक यंत्र के रूप में भी इसका प्रयोग होता है।
सहस्त्रवार चक्र जाग्रत करने हेतु भी पीपल का महत्त्व अक्षुण्ण है। पीपल भारतीय संस्कृति में अक्षय ऊर्जा के स्रोत के रूप में विद्यमान है।
पौराणिक उल्लेख
स्कन्द पुराण में वर्णित है कि अश्वत्थ (पीपल) के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं।
पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत: मूर्तिमान स्वरूप है। यह सभी अभीष्टों का साधक है। इसका आश्रय मानव के सभी पाप ताप का शमन करता है। भगवद्गीता में भी इसकी महानता का स्पष्ट उल्लेख है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं - अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम् (अर्थात् समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूं) कहकर पीपल को अपना स्वरूप बताया है। स्वयं भगवान ने उसे अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्व को व्यक्त किया है।
इसलिए धर्मशास्त्रों में पीपल के पत्तों को तोडना, इसको काटना या मूल सहित उखाड़ना वर्जित माना गया है। अन्यथा देवों की अप्रसन्नता का परिणाम अहित होना है।
जो व्यक्ति पीपल को काटता या हानि पहुंचाता है उसे एक कल्प तक नरक भोग कर चांडाल की योनी में जन्म लेना पड़ता है।
शास्त्रों में वर्णित है कि अश्वत्थ: पूजितोयत्र पूजिता: सर्व देवता:। अर्थात् पीपल की सविधि पूजा-अर्चना करने से सम्पूर्ण देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं।
अथर्ववेद में पीपल के पेड़ को देवताओं का निवास बताया गया है – अश्वत्थो देव सदन:। पीपल का वृ़क्ष आधुनिक भारत में भी देवरूप में पूजा जाता है।
श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापर युग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए थे। इसका प्रभाव तन-मन तक ही नहीं भाव जगत् तक रहता है।
अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है।
पीपल एक ऐसा वृक्ष है, जो आदि काल से स्वर्ग लोक के वट वृक्ष के रूप में इस धरती पर ब्रह्मा जी के तप से उतरा है। श्रद्धालु पीपल के पेड़ को नमस्कार करते हैं और पीपल के हर पात में ब्रह्मा जी का निवास मानते हैं। पीपल का वृक्ष इसीलिए ब्रह्मस्थान है। इससे सात्विकता बढती है।
विश्व-दर्शन में पीपल का महत्त्व है। गीता में इसे वृक्षों में श्रेष्ठ ’अश्वतथ्य’ को अथर्ववेद में लक्ष्मी, संतान व आयुदाता के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।
astroexpertsolutions.com ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र विभव खंड 2 गोमती नगर लखनऊ 94150 87711 9235 722 996
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