#तिरुपति_बालाजी में लोग बाल छोड़कर क्यों आते हैं, भगवान बालाजी को वैंकेटेश्वर क्यों कहा जाता है?
ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा 94150 87711
दक्षिण भारत का तिरुपति बालाजी का मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध है। तिरुपति बालाजी का मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तुर जिले में है। ये मंदिर भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है, क्योंकि यहां रोज करोड़ों रुपए का दान आता है। जानिए विश्व प्रसिद्ध तिरूपति मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें...
1. तिरुपति बालाजी को भगवान विष्णु का ही रूप है। यहां मान्यता प्रचलित है कि जो लोग सभी पाप और बुराइयां को छोड़ने का संकल्प लेते हैं, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं। भक्त यहां अपनी सभी बुराइयों और पापों के रूप में बाल छोड़ जाते है।
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2. भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते विशेष प्रिय हैं, इसलिए इनकी पूजा में तुलसी के पत्ते का बहुत महत्व है। सभी मंदिरों में भगवान को चढ़ाया गया तुलसी पत्र बाद में प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है। तिरूपति बालाजी में भी भगवान को रोज तुलसी पत्र चढ़ाया जाता है, लेकिन उसे भक्तों को प्रसाद के रूप में नहीं दिया जाता। पूजा के बाद तुलसी के पत्तों को मंदिर परिसर के कुंए में डाल दिया जाता है।
ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव 9235 722 996
3. मान्यता है कि ये मंदिर मेरूपर्वत के सप्त शिखरों पर बना हुआ है, जो की भगवान शेषनाग का प्रतीक है। इस पर्वत को शेषांचल भी कहते हैं। सात चोटियां शेषनाग के सात फनों का प्रतीक हैं। इन चोटियों को शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरुड़ाद्रि, अंजनाद्रि, वृषटाद्रि, नारायणाद्रि और वेंकटाद्रि कहा जाता है। इनमें से वेंकटाद्रि चोटी पर भगवान बालाजी विराजित हैं, इसी वजह से इन्हें वेंकटेश्वर कहा जाता है।
4. मंदिर में स्थापित काली दिव्य मूर्ति किसी ने बनाई नहीं, बल्कि ये जमीन से प्रकट हुई थी। है। वेंकटाचल पर्वत को भी भगवान का रूप माना जाता है, यहां भक्त नंगे पैर ही आते हैं।
5. मंदिर में बालाजी के दिन में तीन बार दर्शन होते हैं। पहला दर्शन विश्वरूप कहलाता है, जो सुबह दिखाई देता है। दूसरे दर्शन दोपहर में और तीसरे दर्शन रात में होते हैं। बालाजी की पूरी मूर्ति के दर्शन केवल शुक्रवार को सुबह अभिषेक के समय ही किए जा सकते हैं।
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6. तिरुपति बालाजी की यात्रा के कुछ नियम भी हैं। नियम के अनुसार तिरुपति के दर्शन करने से पहले कपिल तीर्थ पर स्नान करके कपिलेश्वर के दर्शन करना चाहिए। फिर वेंकटाचल पर्वत पर जाकर बालाजी के दर्शन करना चाहिए। इसके बाद पद्मावती देवी के दर्शन करने की पंरापरा है।
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