सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र की प्रस्तुति
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आपके जीवन की समस्या को सुलझाता एक ग्रुप
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Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra Jyotish Aacharya आकांक्षा Srivastav 9415 087 711
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आज की जिज्ञासा
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हम मंत्र, तंत्र आदि द्वारा ईश्वर की साधना करते हैं परन्तु हमे साधना में सफलता नहीं मिलती। कृपया मार्गदर्शन देने का कष्ट करें।
समाधान
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हम में हर कोई धन धान्य से पुर्ण, शांत- उन्नत जीवन चाहता है और उसके लिये जो हो सके वह करता है चाहे वह साधना पुजा हो या तंत्र टोटका।
पहला सबसे प्रमुख कारण -
किसी भी एक पुजा जप साधना को लंबे समय तक न करना। आज कल लोग जितनी जल्दी कपडे़ नही बदलते उससे जल्दी मंत्र और पुजा बदल देते हैं। एक मंत्र लिया विधि लिया , आरंभ किया अब आरंभ के दुसरे दिन से ही उनको अनुभव चाहिये। कुछ हो नही रहा का रट अगले दिन से शुरू। ले दे के मंत्र पर भरोसा ही नही। और जहाँ विश्वास नही वहाँ मंत्र के देवता का प्रभाव भी नही।
अब 11 दिन का साधना था, कर भी लिये उसके बाद कुछ दिन प्रतीक्षा भी कर लिये कुछ खास बदलाव न आया, चाहिये ता एकदम चमत्कार और हो नही रहा कुछ ..... बस। तब तक कोई नया मंत्र तंत्र साधना पढ़ने मिल गया। उसकी महिमा मंडन सुन कर पहला मंत्र बंद या जप कम या जप के साथ दुसरा भी शुरू। ऐसा कर कर के अपने ऊपर बोझ बढा़ते गये मिला कुछ नही। बाद में मंत्र देने वाले को दो बात सुना कर चुप। तब तक किसी और का अनुभव पढ़ नया फिर से शुरू।
माताओं भाईयों एक जगह ही जमीन खोदोगे तब ही वहाँ से पानी निकलेगा। 2 - 2 फीट के गढ्ढे से पानी नही निकलते।
साथ ही यह भी पता होना चाहिये की उस जगह में पानी है अथवा नही। ढोंगियों और कुपात्रो तथा व्यवसायी गुरू की दीक्षा मंत्र किसी काम की नही।
दुसरा_प्रमुख_कारण
यंत्रो की भरमार - साधना कक्ष में रख कर पुजा के लिये श्रीयंत्र मँगाये किसी अच्छे साधक से। अभी उसे धुप दीप दिखाना शुरू किये तब तक धनदा लक्ष्मी यंत्र का प्रभाव चमत्कार पढ़ कर प्रभावित हो कर वह यंत्र भी मँगा लिये। उसकी भी पुजा शुरू। अब घर में कलह भी बहुत है , लगता है किसी ने तंत्र प्रयोग कर दिया है, अब बगलामुखी यंत्र भी आ गया। उसकी पुजा भी शुरू। कहने का तात्पर्य यह है की यह अल्प ज्ञान और विज्ञापन से प्रभावित होने के लक्ष्ण के सिवा कुछ नही। एक अकेले श्री यंत्र को अगर किसी श्री विद्या साधक या कोई सत्य पथ पर चलने वाला साधक पुर्ण विधि से प्राण प्रतिष्ठता कर के दे दे तो आपको उसके सिवाये किसी दुसरे यंत्र की आवश्यकता ही नही है। क्योंकि आपको यह ज्ञान नही है की श्रीयंत्र क्या है आप उसके महत्व को तुच्छ समझ कर और 10 यंत्र मँगा ले रहे हो। यह यंत्रों की भरमार से बेचने वालों का ही दुख दुर होगा बाकी आप खरीद खरीद कर भरते रहो और कहते रहो क्यूँ नही कुछ सफल हो रहा !
काम्य यंत्रो की बात अलग है जो आप किसी व्यक्ति के लिये मँगवाते हो पहनने के लिये। वह भी लक्ष्य पुर्ति तक ही काम करेगा ।
तीसरा_बडा़_कारण
कई सारी दीक्षायें लेना-
यह तो हद से ज्यादा प्रचलन में हो गया है। शिविर लगा कर दीक्षा देना। न शिष्य की योग्यता की परख की वह उस साधना के दीक्षा लायक है भी ना ही गुरू के गुरूत्व का ज्ञान कोई शिष्य ही परखे। बस दुसरों से गुरूजी का महिमामंडन सुन कर या पत्रिका में पढ़ कर पहुँच गये दीक्षा लेने।
विज्ञापन गुरू जी कर के अपना झोला भरेंगे और शिष्य लोग जो कभी नमः शिवाय का जप भी न किये हों सही से, सीधा रक्तचंडी, महाकाली, उन्मत्त भैरव, यक्षिणी, अप्सरा, महाविद्याओं के दीक्षा ले कर जपना शुरू। काम बनेंगे क्या दस दोष से ग्रसित होकर और बर्बाद। किसी का अंधेरा में तीर लग गया सौभाग्य से और काम बन गया तो गुरूजी का मैनेजमेंट, पत्रिका में छाप कर और हर शिविर में ऐसे बोलेगा जैसे वेलकम मुवी में उदय भाई का चमचा बोला करता - मेरी एक टांग नकली है, उदय भाई ने गुस्से में तोडी़, दिल के अच्छे हैं फिर नया लगवा दिया। बाद में वो भी झुठ निकलेगा।
चौथा_प्रमुख_कारण
सब कुछ सही हो गया। आपने एक ही दीक्षा ली। मंत्र साधना और अपने ईष्ट की सेवा भी प्रतिदिन लम्बे समय से करते हैं फिर भी परेशान हैं। न साधना में सफलता मिल रही न परेशानी मिट रही।
इसका सही निदान है स्वयं का अच्छे से विश्लेषण। क्या गलती हो रही और पहले क्या गलत कर्म हुआ है। जब तक पाप नही कटेगा तब तक तपोबल की ऊर्जा नही बनेगी न ही मंत्र चैतन्य होगा।
कभी कभी साधक तुरंत सफल हो कर फिर गिर जाता है कारण गुरू अगर सिद्ध है तो वचन से शिष्य को मंत्र प्रभाव दिखा देता है लेकिन शिष्य अगर संभाल नही सका अपने बुरे कर्मों को तो इसमे गुरू की कोई गलती नही।
पाँचवां_प्रमुख_कारण
कुल के देवी देवताओं और पितरों की उपेक्षा। हर किसी के कुलदेवी या कुलदेवता होते हैं और उनके संरक्षण में ही कुल का विकास होता है। आजकल तो बहुत से लोगों को पता ही नही की कुल के देवता या कुलदेवी कौन हैं। कुछ लोग आगे पर या बाप दादा की बैठाई हुई भुत प्रेतों को ही कुलदेवता की पुजा दे रहे हैं और वो लेकर बलवान हो रहा है जिसका निदान अब संभव नही। अब जिसके कुल में बडे़ बडे़ प्रेतों को स्थान दे दिया गया है वो अब नयी साधना करेगा तो कहाँ से सफल होगा। याद रहे भगवान कृष्ण ने कहा है जिसको पुजोगे अंत में उसी को प्राप्त हो जाओगे।
छटा_प्रमुख_कारण
प्रदर्शन - साधना शुरू हुआ नही की सबको बताना शुरू। मैं फलां साधना कर रहा। अरे कल स्वपन में मैंने शिवजी को देखा, उन्होंने यह कहा। अरे मैं तो 4 घंटा जप करता हूंँ। मैं चंडी़ पाठ करता हूँ। मैं सुंदरकांड का रोज पाठ करता हूँ। यह मैं का प्रदर्शन सारी जप तप को सोख लेता है। कभी सफलता मिलती नही। बस जप संख्या के भ्रम में रह जाओगे।
सातवाँ_प्रमुख_कारण
दुसरे भक्तों, साधकों की उपेक्षा , उन्हें तुच्छ समझना।
यह अहंकार और ईर्ष्या दोनों कभी साधना सफल नही होंने देती।
इन सबके सिवाय किसी के द्वारा तंत्र_बंधन भी एक कारण होती है जो की तभी संभव होती है जब आप प्रदर्शन करते चलें। कोई जानकार जलन से बंधन कर दे। आजकल 95% लोगों का यही भ्रम रहता है कि साधना सफल नही हो रही, पक्का किसी ने तंत्र द्वारा बांध दिया है। अपने गलतियाँ भी देख लो प्रभु।
इन गलतियों को सुधारो और बार बार भगवान को न बदलो। किसी एक देव को अपना इष्ट बनाओ और फिर साधना करो। कहा भी गया है कि एक साधो सब सधे सब साधे सब जाय।
आपका साधना मार्ग सफल हो। मेरी शुभकमनाएं।
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