शनि
〰️〰️🌼 Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra〰️🌼 9415 087 711〰️🌼 923 5722 996〰️〰️
मैंने जब भगवान् शिव की उपासना की थी, तब उन्होंने मुझे दण्डनायक ग्रह घोषित करके नवग्रहों में
स्थान प्रदान किया था। यही कारण है कि मैं मनुष्य हो या देव, पशु हो या पक्षी, राजा हो या रंक-सब के लिये उनके कर्मानुसार उनके दण्ड का निर्णय करता हूँ
तथा दण्ड देने में निष्पक्ष निर्णय लेता हूँ फिर चाहे व्यक्ति का कर्म इस जन्म का हो या पूर्वजन्म का। सत्ययुग में ही नहीं, कलियुग में भी न्यायपालिका द्वारा चोरी-अपराध आदि की सजा देने का प्रावधान है। यह व्यवस्था समाज को
आपराधिक प्रवृत्ति से बचाये रखने हेतु की गयी है, जिससे स्वच्छ समाज का निर्माण हो तथा अपराध पुनरावृत्ति न हो। मेरी निष्पक्षता और मेरा दण्डविधा जगजाहिर है। यदि अपराध या गलती की है तो देव हो या मनुष्य, पशु हो या पक्षी, माता हो या न
मेरे लिये सब समान हैं। मेरे पिता सूर्य ने जब मेरी माता छाया को प्रताडित किया तो मैंने उनका भी घोर विरोध करके उन्हें पीड़ा पहुँचायी। फलस्वरूप वे हमेशा के लिये मुझसे नाराज हो गये और आज तक शत्रु तुल्य व्यवहार ही करते हैं। यहाँ यह भी उल्लेख करना प्रासंगिक समझता हूँ कि यदि व्यक्ति ने पूर्वजन्म में अच्छे कर्म किये हैं तो मैं उसकी जन्मपत्री में अपनी उच्च राशि या स्व राशि पर प्रतिष्ठापित होकर उसे भरपूर लाभ भी पहुँचाता हूँ। अब आप मेरी प्रवृत्ति के बारे में भलीभाँति परिचित हो गये होंगे। आइये, आज मैं आपको अपने सम्पूर्ण परिचय से अवगत कराता हूँ।
ज्येष्ठ कृष्ण अमावास्या को मेरा जन्म हुआ था। मेरे पिताका नाम सूर्य तथा माता का नाम छाया है। हम पाँच भाई-बहन हैं। यमराज मेरे अनुज हैं तथा तपती, भद्रा, और यमुना मेरी सगी बहनें हैं। लोग मुझे अनेक नामों से जानते हैं। कुछ लोग मुझे मन्द, शनैश्चर, सूर्यसनु, सूर्यज, अर्कपुत्र, नील, भास्करी, असित, छायात्मज आदि कहकर भी सम्बोधित करते हैं। मेरा आधिपत्य मकर एवं कुम्भ राशि तथा पुष्य, अनुराधा एवं उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र पर है।
मैं अस्त होने के ३८ दिन के अनन्तर उदय होता हूँ। मेरी उच्च राशि तुला तथा नीच राशि मेष है। जन्मकुण्डली के 12 भावोंमें मैं 8, 10 वें एवं 12 वें भाव का कारक हूँ।
जब मैं तुला, कुम्भ या मकर राशि पर विचरण करता हूँ, उस अवधि में किसी का जन्म हो तो मैं रंक से राजा भी बना देने में देर नहीं करता। यदि जातक के जन्म के समय मैं मिथुन, कर्क, कन्या, धनु अथवा मीन राशि पर विचरण करता हूँ तो परिणाम मध्यम; मेष, सिंह तथा वृश्चिक पर
स्थित होऊँ तो प्रतिकूल परिणाम के लिये तैयार रहना चाहिये। हस्तरेखा शास्त्र में मध्यमा अँगुली के नीचे मेरा स्थान है तथा अंकज्योतिष के अनुसार प्रत्येक माह 8,
17, 26 तारीख का मैं स्वामी हूँ। मैं 30 वर्षों में समस्त राशियों का भ्रमण कर लेता हूँ। एक बार साढ़ेसाती आने के पश्चात् 30 वर्षों के बाद ही व्यक्ति मुझसे प्रभावित होता है। अपवाद को छोड़ दिया जाय तो व्यक्ति अपने जीवन में तीन बार मेरी साढ़ेसाती से साक्षात्कार करता है।
आपने यह कहावत सुनी ही होगी कि 'जाको प्रभु दारुण दुःख देहीं, ताकी मति पहले हरि लेहीं।' मेरा भी यही सिद्धान्त है, जिस व्यक्ति को मुझे दण्ड देना हो, मैं पहले उसकी बुद्धिपर अपना आक्रमण करता हूँ अथवा उसे दण्ड देनेके लिये किसी अन्य की बुद्धि का नाश करके जातक को दण्ड देने का कारण बना देता हूँ। कोई अपराध करता है तो मेरी अदालत में उसे पूर्व में किये हुए बुरे कर्मो का दण्ड पहले मिलता है, बाद में मुकदमा इस आशय का चलता है कि उसके आचरण एवं चाल-चलन में सुधार हुआ है या नहीं। यदि दण्ड मिलते-मिलते जातक स्वयं में सुधार कर लेता है तो उसकी सजा समाप्त करते हुए उसे पूर्व की यथास्थिति में लाने का निर्णय लेता हूँ। साथ ही यदि उसका चाल-चलन उत्कृष्ट रहा हो तो उसे अपनी दशा अर्थात् सजा की अवधि के पश्चात् अपार धन-दौलत तथा वैभव से प्रतिष्ठापित कर देता हूँ।
सजायोग्य अपराध-भ्रष्टाचार, झूठी गवाही,
विकलांगों को सताना, भिखारियों को अपमानित करना, चोरी, रिश्वत, चालाकी से धन हड़पना, जुआ खेलना, नशा-जैसे शराब-गुटका-तम्बाकु खाना, व्यभिचार
करना, परस्त्री गमन, अपने माता-पिता या सेवक का अपमान करना, चींटी-कुत्ते या कौए को मारना आदि।
इन अपराधों की कम या ज्यादा सजा मेरी अदालत में अवश्य ही मिलती है।
वेशभूषा-न्यायक्षेत्र में काले रंग को विशेष स्थान प्राप्त है। मेरी वेशभूषा इसी कारण काली है। आज भी न्यायालय में न्यायाधीश या वकील काला कोट तथा काला गाउन ही पहनते हैं। यहाँ तक कि न्याय की देवी की
आँखों पर भी काली पट्टी ही बँधी हुई है।
मेरा मन्दिर👉 मेरी पूजा कहीं भी किसी भी
प्रकार से श्रद्धा पूर्वक की जा सकती है। कण-कण में भगवान् हैं। यह सभी को ध्यान रखना चाहिये। अनेक स्थानों पर मेरी पूजा होती है, फिर भी मैं अपने प्रसिद्ध
मन्दिर के बारे में थोड़ी जानकारी अवश्य दूंगा। महाराष्ट्र के नासिक जिले में शिरडी से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर मेरा मन्दिर है। वहाँ मेरी प्रतिमा विद्यमान है। इस
प्रतिमा का कोई आकार नहीं है; क्योंकि यह पाषाण खण्ड के आकार में मेरे ही ग्रह से उल्कापिण्ड के रूप में प्रकट हुई है। यहाँ मेरी निश्चित परिधि में कोई भी व्यक्ति चोरी
या अन्य अपराध नहीं कर सकता। यदि भूलवश कर ले तो उसे इतना भारी और कठोर दण्ड मिलता है कि उसकी सात पीढ़ियाँ भी भूल नहीं सकतीं। यही कारण
हैं कि इस स्थान पर कोई व्यक्ति अपने मकान या दुकान में ताला नहीं लगाता।
ताला लगाना तो दूर, यहां मकानों में किवाड़ तक नहीं हैं। यहाँ रहने और आनेवालों को मुझ पर पूर्ण विश्वास है। मैं उनकी हरसम्भव रक्षा करता हूँ। मेरी दशा में किस तरह लोग कष्ट उठाते हैं, यह इन पौराणिक सन्दर्भोसे ज्ञात हो जायगा।
पाण्डवोंको वनवास👉 जब पाण्डवों की जन्म-पत्री में मेरी दशा आयी तो मैंने ही द्रौपदी की बुद्धि भ्रमित करके कड़वे वचन कहलाये, परिणामस्वरूप पाण्डवों को
वनवास मिला।
रावणकी दुर्गति👉 छ: शास्त्र और अठारह पुराणों के प्रकाण्ड पण्डित रावण का पराक्रम तीनों लोकों में फैला हुआ था। मेरी दशा में रावण घबरा गया। अपने बचाव के
लिये वह मुझपर आक्रमण करने पर उतारू हो गया। उसने शिवसे प्राप्त त्रिशूल से मुझे घायल करके अपने बन्दीगृह में उलटा लटका दिया। लंका को जलाते समय
हनुमान् जी ने देखा कि मुझे उलटा लटका रखा है। हनुमान् जीने मुझे छुटकारा दिलाया। मैंने हनुमान् जी से मेरे योग्य सेवा बताने का अनुरोध किया तो हनुमान् जी ने
कहा तुम मेरे भक्ति को कष्ट मत देना। मैंने तुरंत अपनी सहमति दे दी। अन्त में राम रावण युद्ध मे रावण को परिवार सहित नष्ट करने में अपनी कुदृष्टि का भरपूर प्रयोग किया। परिणाम स्वरूप श्रीराम की विजय
विक्रमादित्यकी दुर्दशा👉 विक्रमादित्य पर जब मेरी दशा आयी तो मयूर का चित्र ही हार को निगल गया। विक्रमादित्य को तेली के घर पर कोल्हू चलाना पड़ा।
राजा हरिश्चन्द्रको परेशानी👉 राजा हरिश्चन्द्र को मेरी दशा में दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। उनका परिवार बिछुड़ गया। स्वयं को श्मशान में नौकरी करनी पड़ी।
यदि आप चाहते हैं कि मैं हमेशा आपसे प्रसन्न रहूँ तो आप निम्न उपाय करें तो मैं विश्वास दिलाता हूँ कि मैं हमेशा आपकी रक्षा करूँगा।
हनुमदुपासना, सूर्य-उपासना, शनिचालीसा का पाठ, पीपल के वृक्ष की पूजा, ज्योतिषी से परामर्शकर नीलम या जामुनिया का
धारण, काले घोड़े की नाल से बनी अँगूठी का धारण तथा शनि-अष्टक का पाठ करें।
|
|