श्री गणेशाय नमः
इस दिन से मांगलिक कार्य और विवाह मुहूर्त शुभ मुहूर्त
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१५, नवम्बर, ( सोमवार ) को
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देवउठनी एकादशी। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को लोग देवउठनी एकादशी के नाम से जानते हैं। मान्यता है कि क्षीर सागर में चार महीने की योगनिद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन उठते हैं।
और भगवान विष्णु आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं। भगवान विष्णु के शयन को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। प्रभु इन चार महीनों में निद्रा करते हैं इसलिए इन चार मासों को चातुर्मास भी कहा जाता है।
देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त
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इस वर्ष यानी में देवउठनी एकादशी cal १५ नवंबर को मनाया जाएगा और इसके बाद से मांगलिक कार्यों का भी आरंभ हो जाएगा।
एकादशी तिथि आरंभ समय:– * Aaj १४ नवंबर सुबह 0 9: 0 0 बजे*
एकादशी तिथि समापन समय:-
१५ नवंबर सुबह ०८: 52 बजे तक
एकादशी व्रत में पारण का अपना अलग ही महत्व होता है और इसलिए यदि सही मुहूर्त में पारण किया जाए तो उसका फल कई गुना मिलता है।
* एकादशी व्रत १५ को ही है।*
चातुर्मास में वर्जित होते हैं शुभ कार्य
भगवान विष्णु जब निद्रा ले रहे होते हैं तब उस समय कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन संस्कार, जनेऊ, गृह परवेश इत्यादि कार्य रोक दिए जाते हैं इसलिए शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए भगवान विष्णु के उठने का इंतजार किया जाता है और तत्पश्चात भगवान के आशीर्वाद से शुभ कार्यों की शुरुवात की जाती है।
वैसे तो चार महीने का समय लंबा होता है और आज वर्तमान में लोग कह भी सकते हैं चार महीने जैसी लंबी अवधि क्यों? तो इसको इस लॉजिक से समझा जा सकता है कि, जैसे हमारे लिए एक दिन का समय बहुत छोटा माना जा सकता है तो वहीं कुछ जीव ऐसे भी हैं जो पूरे एक दिन में अपना पूरा जीवन जी लेते हैं। तो वहीं कोई जीव ऐसा भी हो सकते हैं जो दस वर्षों में आयु सीमा पूर्ण करते हैं। इस तरह से एक ही चीज के लिए सबके पास अलग अलग समय रहता है।
ईश्वर तो अविनाशी हैं, अनंत हैं, ऐसे में यदि प्राचीन काल से भगवान विष्णु के सोने की प्रथा है तो उनकी एक नींद यानी उनके लिए हो सकता है पलक झपकते ही चार महीने निकल जाते हों लेकिन हमारे लिए हमारे जीवन के हिसाब से यह एक बड़ा समय होता है।
भगवान विष्णु की निद्रा से जुड़ी पौराणिक कथा
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भगवान विष्णु के निद्रा के लिए एक पुरानी कथा भी प्रचलित है कि, एक बार एक राजा बलि हुए जो अपने दान को लेकर बेहद अहंकारी थे। उनके अहंकार को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु वामन देव (ब्रह्मण) के अवतार में प्रकट हुए और उन्होंने राजा बलि द्वारा दिए गए वचन के अनुसार दो पग में पूरी दुनिया को नाप लिया और फिर तीसरे पग में राजा बलि ने श्री हरी विष्णु के लिए अपने सर पर चरण रखवाए और खुद को भी दान स्वरूप दे दिया।
इससे भगवान विष्णु प्रसन्न हो कर उनके द्वारा मांगे गए वरदान के अनुसार पाताल लोक उनके साथ चले गए। फिर मां लक्ष्मी ने राजा बलि को अपना भाई बना लिया और उनको रक्षा सूत्र बांध कर श्री हरि विष्णु को वापिस अपने साथ ले आईं। इसलिए आज भी मान्यता है कि भगवान विष्णु विश्राम करने इन चार महीनों में पाताल लोक चले जाते हैं जिससे मांगलिक कार्य रुक जाया करते हैं
भगवान विष्णु की पूजा: ज्योतिषीय महत्व
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अब अगर हम इसको ज्योतिष के अनुसार देखें तो भगवान विष्णु से आराधना करके हम गुरु ग्रह को सही करने का आग्रह करते हैं यानी जब जन्म कुंडली में गुरु का फल अच्छा न मिल रहा हो तो श्री हरि विष्णु जी की ही आराधना की जाती है। और गुरु ग्रह या बृहस्पति ग्रह को देख के ही सारे मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं। ऐसे में अगर स्वयं यदि श्री हरि ही विश्राम की अवस्था में हों तो फिर मांगलिक कार्य कैसे किए जा सकते हैं। इस प्रकार पौराणिक कथा हो या उसका वैज्ञानिक आधार ये सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
तुलसी विवाह से जुड़े अहम नियम
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देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का विशेष महत्व बताया गया है। तुलसी विवाह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में एकादशी के दिन किया जाता है।
तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त
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तुलसी विवाह तिथि – सोमवार, १५ नवंबर
द्वादशी तिथि प्रारंभ – ०८: 52 बजे (१५ नवंबर २०२१) से
द्वादशी तिथि समाप्त – 0 9: 16 बजे (१६ नवंबर २०२१) तक
तुलसी विवाह मुहूर्त
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Aaj 14 नवंबर Ratri 0 9 se Ratri: ०२:४४ बजे तक dusra muhurt Agar 15 ko karna ho 15 ka muhurt
१५ नवंबर २०२१: शाम ०५:१७ बजे से – Ratri 11: 0 0 बजे तक
जिस भी स्थान पर आप तुलसी विवाह करने जा रहे हैं वहां तुलसी का पौधा रखने से पहले उस जगह की अच्छे से साफ सफाई अवश्य करें।
पूजा वाली स्थान पर और तुलसी के गमले पर गेरू लगाएं।
तुलसी विवाह के लिए मंडप तैयार करने के लिए गन्ने का इस्तेमाल करें।
पूजा प्रारंभ करने से पहले स्नान अवश्य करें, साफ कपड़े पहनें, और तुलसी विवाह के लिए आसन बिछाएं।
इसके बाद तुलसी के पौधे पर चुनरी और श्रृंगार का सामान जैसे, चूड़ी, बिंदी, आरता आदि मां तुलसी को अर्पित करें।
मंडप में तुलसी के पौधे को रखने के बाद दाई तरफ एक साफ़ चौकी पर शालिग्राम रखें।
इसके बाद भगवान शालिग्राम के ऊपर हल्दी दूध मिलाकर चढ़ाएं।
शालिग्राम का तिलक करते समय तिल का इस्तेमाल करें।
इसके अलावा इस पूजा में गन्ने, बेर, आंवला, सिंघाड़ा, सेब इत्यादि फल चढ़ाएं।
तुलसी विवाह के दौरान मंगलाष्टक ज़रूर पढ़ें।
इसके बाद घर का कोई पुरुष भगवान शालिग्राम को चौकी सहित बाएं हाथ से उठाकर तुलसी माता की सात बार परिक्रमा करें। और जो भी नियम विवाह में होते हैं वे सभी करे।
इसके बाद तुलसी विवाह संपन्न हो जाता है और विवाह संपन्न होने के बाद सभी को प्रसाद वितरित करें।
देवउठनी एकादशी योग और विवाह मुहूर्त
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इस वर्ष नवंबर के महीने में तीन एकादशी तिथियों का शुभ संयोग बन रहा है। ज्योतिष के जानकार मानते हैं कि यह शुभ संयोग २५-३० साल में एक आध बार ही बनता है। इस वर्ष नवम्बर के महीने में ०१ नवंबर को रमा एकादशी पड़ी थी, इसके बाद अब १५ को देवउठनी एकादशी पड़ेगी और महीने के अंत में यानि ३० नवम्बर को उत्पन्ना एकादशी पड़ेगी।
विवाह मुहूर्त २०२१
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नवम्बर महीने का विवाह मुहूर्त: 19 AVN २०, 91, 26, 20, 29
दिसंबर महीने का विवाह मुहूर्त: ०१, 0 2 AVN 0-5 AVN ०७, 12 AVN १३
अधिक जानकारी: १५ दिसंबर से १४ जनवरी तक धनुर्मास होने की वजह से विवाह और मांगलिक कार्य वर्जित रहेंगे।
देवउठनी एकादशी उपाय जो दिलाएंगे श्री हरी की विशेष कृपा आप प्रियजन भी देवउठनी एकादशी के दिन कुछ ऐसे उपाय कर सकते हैं जिससे आपके ग्रहों को मजबूती मिलेगी जैसे:-
इस दिन तुलसी विवाह भी होता है इसलिए तुलसी की पूजा करके हम भगवान विष्णु से सीधे तौर से जुड़ सकते हैं तो आप विधि विधान से इस दिन तुलसी जी का विवाह संपन्न करिए और श्री हरि विष्णु जी का आशीर्वाद लीजिए।
तुलसी के चारो ओर आप रंगोली बनाएं और फिर वहां दीपक जलाकर तुलसी मंत्र या विष्णु भगवान के मंत्र का जाप करें। आप यदि ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप भी १०८ बार करते हैं तो आपके सभी कष्टों को श्री हरि स्वयं हर लेंगे।
इस दिन यदि आप गायत्री मंत्र का जाप करते हैं तो आपको स्वास्थ्य लाभ मिलेगा और यदि धन प्राप्ति की इच्छा हो तो भगवान विष्णु को दूध में केसर मिलाकर उससे भगवान का स्नान करिए। इससे आपके घर में धन का आगमन स्वयं होने लगेगा।
इस दिन गाय की सेवा से भगवान को अति प्रसन्नता मिलती है इसलिए यदि इस दिन गाय की सेवा की जाए, गाय को अपने हाथों से खिलाया जाए तो हर प्रकार से भगवद कृपा होगी और विशेषकर जिनके विवाह में अड़चन है वो अगर ऐसा करते हैं तो निश्चित ही उनका विवाह जल्दी संपन्न होगा।
संतान ना हो पाना या संतान का देर से होना भी एक बड़ी समस्या है इसलिए, इस दिन जो भी नारायण के सामने घी का दीपक जलाकर संतान गोपाल का १॰८ बार पाठ करेगा उसे जल्दी ही संतान की प्राप्ति भी हो जाएगी।
एकादशी के दिन आप पीले रंग के कपड़े, पीले फल व पीला अनाज पहले भगवान विष्णु को अर्पण करें, इसके बाद ये सभी वस्तुएं गरीबों व जरूरतमंदों में दान कर दें। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा आप पर बनी रहेगी।
इस दिन पीपल और ब्रह्मण पूजा करने का भी विशेष महत्व है। यदि पीपल वृक्ष के पास दीपक जलाएं और पीपल के वृक्ष में जल अर्पित करें तो कर्ज से भी जल्दी मुक्ति मिल जाएगी।
एकादशी के दिन सात कन्याओं को घर बुलाकर भोजन कराना चाहिए। भोजन में खीर अवश्य शामिल करें। इससे कुछ ही समय में आपकी समस्त मनोकामना पूरी अवश्य होगी।
अविवाहित कन्याएं शीघ्र विवाह के लिए या मनचाहे पति के लिए माँ तुलसी को श्रृंगार का सामान भेंट कर सकती हैं।
आप सभी को देव उठनी एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं।
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