ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव 94150 87711
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शापितदोष ओर उसका शांति विधान
- श्रापित दोष का मतलब हुआ किसी व्यक्ति को श्राप मिला हुआ होना... श्रापित दोष तब होता है, जब किसी की कुंडली के एक ही स्थान पर शनि और राहु दोनों उपस्थित होते हैं... यह व्यक्ति द्वारा पूर्व में किए पापों का नतीजा होता है.... जो अब सामने आता है.. ये एक पूर्व का कुछ कर्म बताता है जो अभी तक किया जाना बाकि है..
अगर किसी की कुंडली में श्रापित दोष हो तो उसे अच्छा फल नहीं मिलता है.. भले ही उसकी कुंडली में अच्छे ग्रहों का समूह मौजूद हो.. लेकिन प्राचीन ज्योतिषशास्त्रों के अनुसार जब राहु और केतु शनि के साथ आ जाएं...या उसकी युति प्रति युति हो तो इस स्थिति को श्रापित योग कहा जाता है... जिसे अच्छा और बुरा दोनों फल में माना जाता है... ऐसी स्थिति जिसकी कुंडली में होती है.... उस व्यक्ति के पास अपार धन तो होता है... पर जब तक उस दोष से मुक्ति नही पायी जाती तब तक जातक उसके अशुभ फलो के प्रभाव में जीना पड़ता है.. कितना भी अच्छा आचरण उसे अच्छा फल के बजाये विपरीत फल भी दे सकता है.. और उससे उल्टा धर्मं के विपरीत कर्म कभी कभी अच्छा फल दे जाता है.. तब ये बात कुछ अजीब लगती है.. ऐसा ही कुछ मंगल के साथ राहु या केतु की युति से भी होता है.
शापित दोष शान्ति विधान पद्धति
शापित दोष शांति विधान कैसे हो..? ऐसा सवाल हर एक का होता है.. क्योंकि विधि विधान करना मेरा काम है और मैं हर धार्मिक विधान करता हु.. ओर एक बात हर किसीका काम का तंरिक अलग अलग होता है.. तो आज मैं अपने गुरुदेव का बताया तंरिका आपके सामने रखता हूं..
- पहेले तो ये जान ले शापित दोष किस ग्रहो की युति से होता है और ये क्यों आती है.. शापित दोष जब कुंडली मे शनि राहु या केतु से युति प्रतियुति करता है तब होती है.. मान्यता के अनुसार ये परिवार में कोई पुराना अप-मृत्यु बताती है.. मतलब एक प्रकार का पितृदोष है.. पर इसका शांति कुछ इस प्रकार से होता है...
- सब से पहले इसमे नवग्रहों के जाप होता है.. ये जाप भी चारगुना करने का विधान है.. कुछ परिस्थिति में एक गुना भी होता है.. सब ग्रहो के जाप के बाद उसका दशांश होम होता है.. फिर तर्पन मार्जन आदि के बाद पूर्णाहुति के साथ ये कार्य सम्पन होता है.. अब इसके पूरे होते ही जो जातक है उसे श्राप से मुक्ति मिली तो उसे पितृ कार्य करने का अधिकार मिला.. दूसरे दिन पितृ कार्य करके पितृ की शांति के लिए श्राद्ध होता है.. जिसका नाम है "नारायणबलि श्राद्ध".. इस श्राद्ध से समस्त पितृ की शांति की जाती है.. ओर उसका आर्शीवाद प्राप्त किया जाता है.. अब दो अपसव्य कार्य के बाद १०वे दिन भगवान महारुद्र की पूजा षोडषोपचार या त्रिशोपचार.. अलग अलग काम्य पदार्थो से अभिषेक करके की जाती है.. ओर उसके बाद ब्रह्मभोजन दान आदि आदि से इसकी समाप्ति होती है....
- अब कुछ विस्तार से जाने तो ये विधान १० दिन का होता है.. इसकी सुरुआत मंगल या शनि से करना चाहिए.. जैसे मैं मंगल से काम की सुरुआत करता हु.. मंगलवार को प्रातः में सब से पहले स्थापन किया जाता है.. स्थापन में पंचदेव के पाँच.. प्रधान राहु केतु शनि के तीन.. सर्वतोभद्र ओर पितृ का स्थापन ऐसे १० स्थापन होते है.. उसके बाद पंचांग कार्य से नाम गोत्र के साथ पूजा के बाद मंगल के जाप किये जाते है.. अब आगे पोस्ट में बताया है वैसे हर एक ग्रह के जाप की संख्या अलग अलग बताई गई है.. वैसे मंगल का ४गुना के हिसाब से ४०००० जाप होते है ५ ब्राह्मणों के साथ.. जाप सॅमको खत्म होने के बाद उत्तर पूजन होता है और मंगल का काम मंगलवार शाम को खत्म होता है.. इस तरह दूसरे दिन राहु केतु ओर बुध का जाप.. जैसे मंगल का किया उसी पध्धति से.. गुरुवार को गुरु का.. शुक्रवार शुक्र का.. शनिवार शनि का.. रविवार सूर्य का.. ओर सोमवार चंद्र का जाप किये जाते है.. अब सब जाप कर्म खत्म होने के बाद जाप की शुद्धि के लिए दशांश होम तर्पन मार्जन पूर्णाहुतु के साथ ८ दिन का काम पूरा होता है.. फिर ९वे दिन पितृ श्राद्ध.. ओर १० वे दिन महादेव की पूजा के साथ १० दिन का श्रापित दोष विधान सम्पन्न होता है.. इस विधान का बहोत बड़ा फल मिलते मैन देखा है.. पर इस विधान को सात्विक भाव से करना चहोये.. ज्यादा विस्तार से समजना मुश्किल है.. आशा करता हु ये माहिती आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी । ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र विभव खंड 2 गोमती नगर एवं वेदराज complex purana RTO Chauraha latouche Road Lucknow 9415 087 711 923 57 22996
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