जन्मकुंडली में शनि की सुखदायक स्थितियां-🙏संकट मोचन हनुमान जी बाबा नीमकरोरी जी महाराज की जय हो विश्वनाथ जी महाराज की जय हो 🙏ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र 94150 87711 92357 22996 🙏astroexpertsolutions.com
1शनि और बुध की युति व्यक्ति को अन्वेषक
बनाती है।
2 यदि शनि चतुर्थेश होकर कुंडली में बलवान हो तो
जमीन-जायदाद का पूर्ण सुख देता है।
3 यदि शनि लग्नेश तथा अष्टमेश होकर बलवान हो तो
जातक दीर्घायु होता है।
4 धनु, तुला और मीन लग्न में शनि लग्न में
ही बैठा हो तो व्यक्ति को धनवान बनाता है।
5 वर्ष लग्न या जन्म लग्न में वृष राशि हो और शनि-शुक्र का
योग हो तो यह स्थिति लाभदायक होती है।
6शुक्र और शनि में मित्रता है, इसलिए वृष या तुला लग्नस्थ शनि
शुभ फल देता है।
7 छठे, आठवें या बारहवें भाव का कारक शनि इनमें से
किसी भी भाव में हो तो लाभदायक होता
है।
8कन्या लग्न में आठवें भाव का शनि व्यक्ति को धन सुख देता
है। यदि वक्री हो तो अपार संपत्ति देता है।
9 मीन, मकर, तुला या कुंभ लग्न में, शनि लग्न में
ही हो तो व्यक्ति का जीवन सुखमय
होता है और उसे मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
10 शनि यदि केंद्र में स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि में हो तो शश नामक पंच महापुरुष योग का
निर्माण करता है। यह तुला राशि में 20 अंश तक होता है। इस
योग में जन्मे जातक दीर्घायु होते हैं, उनका रंग
सांवला तथा आंखें बड़ी होती हैं। उनका
व्यक्तित्व आकर्षक होता है। यह योग गरीब
परिवार में जन्मे
व्यक्ति को भी उन्नति के शिखर तक ले जाता है।
जातक उच्च स्तरीय नेता हो सकता है।
यदि कुंडली में शनि के साथ गुरु, शुक्र, बुध एवं चंद्र
भी शुभ और बलवान हों तो व्यक्ति सफलता
की सीढ़ियां आसानी से चढ़ता
चला जाता है।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम का लग्न धनु है। उन्हें शनि ने
अन्वेषक बनाया और देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचाया।
वैसे भी कर्क एवं धनु लग्न के जातक अपने क्षेत्र
में सर्वाधिक सफल होते हैं। धनु एवं मीन राशियों को
छोड़कर शेष राशियों के लिए शनि केंद्रेश या त्रिकोणेश होता है। इस
स्थिति में यदि उसका संबंध किसी अन्य केंद्रेश या
त्रिकोणेश
से हो तो फल अत्यंत शुभ होता है। ऐसे में वह सर्वाधिक
प्रगतिदायक बन जाता है। उसकी दृष्टि यदि
किसी अन्य
केंद्रेश या त्रिकोणेश के आधिपत्य वाली
किसी राशि पर भी हो तो फल शुभ होता
है।
प्रसिद्ध भारतीय ज्योतिषी वराह मिहिर ने
अपने ग्रन्थ वृहद् संहिता में शनि की शुभाशुभता का
विस्तार से वर्णन किया है। यह बुध, शुक्र और राहु का मित्र
तथा सूर्य, चंद्र और मंगल का शत्रु है। गुरु और केतु के साथ
समभाव रखता है।
यह तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में श्रेष्ठ फल
देता है। अन्य किसी घर में इसका फल शुभ
नहीं होता। यह मृत्यु का कारक ग्रह है। यह
मकर राशि में अधिक बली होता है। यह पुष्य,
अनुराधा और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र का स्वामी है।
यह नपुंसक और तामस स्वभाव वाला ग्रह है। इसे कालपुरुष का
दुख माना गया है। कालचक्र में शनि कर्म और उसके परिणाम का
प्रतीक है।
गोचर में यदि यह जन्म या नाम राशि से 12वां हो या जन्म राशि में
अथवा उससे दूसरा हो तो उन राशि वालों पर साढ़े साती
प्रभावी होती है। जब शनि गोचर में
जन्म या नाम राशि से चौथा या 8वां होता है तब यह अवधि ढैया
कहलाती है। शनि की साढ़े
साती या ढैया व्यक्ति को प्रेरित कर आत्मचिंतन,
नैतिकता एवं धार्मिकता की ओर ले जाती
है। शनि एक राशि में ढाई वर्ष रहता है। दीर्घायु
व्यक्ति के जीवन में शनि की
साढ़ेसाती प्रायः तीन बार आती
है। साढ़े साती या ढैया का प्रभाव सामान्यतः
कार्यक्षेत्र, आर्थिक स्थिति एवं परिवार पर पड़ता है।
तृतीय साढ़े साती स्वास्थ्य को अधिक
प्रभावित करती है। यह प्रभाव व्यक्ति
की कुंडली में शनि की स्थिति
के अनुसार शुभ या अशुभ होता है। गोचर में तीसरा,
छठा या ग्यारहवां शनि हमेशा शुभ एवं लाभदायी होता
है। शनि की साढ़ेसाती से
भयभीत होने की आवश्यकता
नहीं है। यह हमेशा कष्टदायी
नहीं होती है। शनि जीवन
में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रह है। इस आलेख में शनि
की विभिन्न स्थितियों के फल का
निरूपण किया गया है। शनि का अन्य ग्रहों के साथ साहचर्य, भावों
और राशियों के साथ-साथ सभी लग्नों पर इसके प्रभाव
के अतिरिक्त साढ़ेसाती व ढैय्या की चर्चा
भी की गई है।
शास्त्रों में वर्णन है कि शनि वृद्ध, तीक्ष्ण,
आलसी, वायु प्रधान, नपुंसक, तमोगुणी
और पुरुष प्रधान ग्रह है। इसका वाहन गिद्ध है। शनिवार
इसका दिन है। स्वाद कसैला तथा प्रिय वस्तु लोहा है। शनि
राजदूत, सेवक, पैर के दर्द तथा कानून और शिल्प, दर्शन, तंत्र,
मंत्र और यंत्र विद्याओं का कारक है। ऊसर भूमि इसका
वासस्थान है। इसका रंग काला है। यह जातक के स्नायु तंत्र को
प्रभावित करता है। यह मकर और कुंभ राशियों का
स्वामी तथा मृत्यु का देवता है। यह ब्रह्म ज्ञान
का भी कारक है, इसीलिए शनि प्रधान लोग
संन्यास ग्रहण कर लेते हैं।
शनि सूर्य का पुत्र है। इसकी माता छाया एवं मित्र राहु
और बुध हैं। शनि के दोष को राहु और बुध दूर करते हैं।
शनि दंडाधिकारी भी है। यही
कारण है कि यह साढ़े साती के विभिन्न चरणों में
जातक को कर्मानुकूल फल देकर
उसकी उन्नति व समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
कृषक, मजदूर एवं न्याय विभाग पर भी शनि का
अधिकार होता है। जब गोचर में शनि बली होता है तो
इससे संबद्ध लोगों की उन्नति होती है।
कुंडली की विभिन्न भावों में शनि
की स्थिति के शुभाशुभ फल-
शनि भाव 3, 6,10, या 11 में शुभ प्रभाव प्रदान करता है।
प्रथम, द्वितीय, पंचम या सप्तम भाव में हो तो
अरिष्टकर होता है। चतुर्थ, अष्टम या द्वादश भाव में होने पर
प्रबल अरिष्टकारक होता है। यदि जातक का जन्म शुक्ल पक्ष
की रात्रि में हुआ हो और उस समय शनि
वक्री रहा हो तो शनिभाव बलवान होने के कारण शुभ
फल प्रदान करता है। शनि सूर्य के साथ 15 अंश के
भीतर रहने पर अधिक बलवान होता है। जातक
की 36 एवं 42 वर्ष की उम्र में अति
बलवान होकर शुभ फल प्रदान करता है। उक्त अवधि में शनि
की महादशा एवं अंतर्दशा कल्याणकारी
होती है।
शनि निम्नवर्गीय लोगों को लाभ देने वाला एवं
उनकीउन्नति का कारक है।
शनि हस्त कला, दास कर्म, लौह कर्म, प्लास्टिक उद्योग, रबर
उद्योग, ऊन उद्योग, कालीन निर्माण, वस्त्र निर्माण,
लघु उद्योग, चिकित्सा, पुस्तकालय, जिल्दसाजी, शस्त्र
निर्माण, कागज उद्योग, पशुपालन, भवन निर्माण, विज्ञान, शिकार
आदि से जुड़े लोगों की सहायता करता है। यह
कारीगरों, कुलियों, डाकियों, जेल अधिकारियों, वाहन चालकों
आदि को लाभ पहुंचाता है तथा वन्य जन्तुओं की
रक्षा करता है।
शनि से अन्य लाभ
1शनि और बुध की युति जातक को अन्वेषक
बनाती है।
2 चतुर्थेश शनि बलवान हो तो जातक को भूमि का पूर्ण लाभ मिलता
है।
3 लग्नेश तथा अष्टमेश शनि बलवान हो तो जातक
दीर्घायु होता है।
4तुला, धनु एवं मीन का शनि लग्न में हो तो जातक
धनवान होता है।
5 वृष तथा तुला लग्न वालांे को शनि सदा शुभ फल प्रदान करता है।
6 वृष लग्न के लिए अकेला शनि राजयोग प्रदान करता है।
7 कन्या लग्न के जातक को अष्टमस्थ शनि प्रचुर मात्रा में धन
देता है तथा वक्री हो तो अपार संपŸिा का
स्वामी बनाता है।
8 शनि यदि तुला, मकर, कुंभ या मीन राशि का हो तो
जातक को मान-सम्मान, उच्च पद एवं धन की प्राप्ति
होती है।
शनि से शश योग- शनि लग्न से केंद्र में तुला, मकर या कंुभ राशि में
स्थित हो तो शश योग बनता है। इस योग में
व्यक्ति गरीब घर में जन्म लेकर भी
महान हो जाता है। यह योग मेष, वृष, कर्क, सिंह, तुला,
वृश्चिक, मकर एवं कुंभ लग्न में बनता है। भगवान राम,
रानी लक्ष्मी बाई, पं. मदन मोहन
मालवीय, सरदार बल्लभ भाई पटेल आदि
की कुंडली में भी यह योग
विद्यमान है।
विभिन्न लग्नों में शनि की स्थिति के शुभाशुभ फल -
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मेष: इस लग्न में शनि कर्मेश तथा लाभेश होता है। इस लग्न वालों
के लिए यह नैसर्गिक रूप से अशुभ है, लेकिन
आर्थिक मामलों में लाभदायक होता है।
वृष: इस लग्न में शनि केंद्र तथा त्रिकोण का स्वामी
होता है। उसकी इस स्थिति के फलस्वरूप जातक को
राजयोग एवं
सम्पति की प्राप्ति होती है।
मिथुन: इस लग्न में यदि शनि अष्टमेश या नवमेश होता है तो
जातक को दीर्घायु बनाता है।
कर्क: इस लग्न में शनि अति अकारक होता है।
सिंह: इस लग्न में यह षष्ठ एवं सप्तम घर का
स्वामी होता है। इस स्थिति में यह रोग एवं कर्ज देता
है तथा धन का नाश करता है।
कन्या: इस लग्न में शनि पंचम् तथ षष्ठ स्थान का
स्वामी होकर सामान्य फल देता है, किंतु यदि इस लग्न
में अष्टम
स्थान में नीच राशि का हो तो व्यक्ति को करोड़पति बनाता
है।
तुला: इस लग्न के लिए शनि चतुर्थेश तथा पंचमेश होता है। यह
अत्यंत योगकारक होता है।
वृश्चिकः इस लग्न में शनि तृतीयेश एवं चतुर्थेश
होकर अकारक होता है, किंतु बुरा फल नहीं देता।
धनु: इस लग्न के लिए शनि निर्मल होने पर धनदायक होता है,
लेकिन अशुभ फल भी देता है।
मकर: इस लग्न के लिए शनि अति शुभ होता है।
कुंभ: इस लग्न के लिए भी यह अति शुभ होता है।
मीन: शनि मीन लग्न वालों को धन देता है
लेकिन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
भाव के अनुसार शनि का फल-
1 प्रथम भाव में शनि तांत्रिक बनाता है, किंतु शारीरिक
कष्ट देता है और पत्नी से मतभेद कराता है।
2 द्वितीय भाव में शनि सम्पति देता है, लेकिन लाभ के
स्रोत कम करता है तथा वैराग्य भी देता है।
3 तृतीय भाव में शनि पराक्रम एवं पुरुषार्थ देता है।
शत्रु का भय कम होता है।
4 चतुर्थ भाव में शनि हृदय रोग का कारक होता है,
हीन भावना से युक्त करता है और
जीवन नीरस बनाता है
5 पंचम भाव में शनि रोगी संतान देता है तथा दिवालिया
बनाता है।
6 षष्ठ भाव में शनि होने पर चोर, शत्रु, सरकार आदि जातक का
कोई नुकसान नहीं कर सकते हैं। उसे
पशु-पक्षी से धन मिलता है।
7 सप्तम भाव में स्थित शनि जातक को अस्थिर स्वभाव का तथा
व्यभिचारी बनाता है। उसकी
स्त्री झगड़ालू होती है।
8 अष्टम भाव में स्थित शनि धन का नाश कराता है।
इसकी इस स्थिति के कारण घाव, भूख या बुखार से
जातक की
मृत्यु होती है। दुर्घटना की आशंका
रहती है।
9 नवम् भाव में शनि जातक को संन्यास की ओर प्रेरित
करता है। उसे दूसरों को कष्ट देने में आनंद मिलता है।
36 वर्ष की उम्र में उसका भाग्योदय होता है।
10 दशम स्थान का शनि जातक को उन्नति के शिखर तक पहुंचाता
है। साथ ही स्थायी सम्पति
भी देता है।
11 एकादश भाव में स्थित शनि के कारण जातक अवैध स्रोतों से
धनोपार्जन करता है। उसकी पुत्र से अनबन
रहती है।
12 द्वादश भाव में शनि अपनी दशा-अतंर्दशा में जातक
को करोड़पति बनाकर दिवालिया बना देता है।
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शनि की कुछ अन्य स्थितियों के शुभाशुभ फल:
1 तृतीय भाव का शनि स्वास्थ्य लाभ, आराम तथा शांति
प्रदान करता है। साथ ही शत्रु पर विजय दिलाता है।
2 षष्ठ भाव का शनि सफलता, भूमि, भवन, सम्पति एवं राज्य लाभ
कराता है।
3 एकादश भाव का शनि पदोन्नति, लाभ तथा मान सम्मान में वृद्धि
कराता है। साथ ही भूमि तथा
मशीनरी का लाभ देता है।
4 जिन जातकों के जन्म काल में शनि वक्री होता है
वे भाग्यवादी होते हैं। उनके क्रिया-कलाप
किसी अदृश्य
शक्ति से प्रभावित होते हैं। वे एकांतवासी होकर
प्रायः साधना में लगे रहते हैं।
धनु, मकर, कुंभ और मीन राशि में शनि
वक्री होकर लग्न में स्थित हो तो जातक राजा या गांव
का मुखिया होता है
और राजतुल्य वैभव पाता है। द्वितीय स्थान का शनि
वक्री हो तो जातक को देश तथा विदेश से धन
की प्राप्ति होती
है। तृतीय भाव का वक्री शनि जातक को
गूढ़ विद्याओं का ज्ञाता बनाता है, लेकिन माता के लिए अच्छा
नहीं होता है।
चतुर्थ भावस्थ शनि मातृ हीन, भवन
हीन बनाता है। ऐसा व्यक्ति घर-
गृहस्थी की जिम्मेदारी
नहीं निभाता और अंत
में संन्यासी बन जाता है। लेकिन, चतुर्थ में शनि तुला,
मकर या कुंभ राशि का हो तो जातक को पूर्वजों की
सम्पति
प्राप्त होती है। पंचम भाव का वक्री
शनि प्रेम संबंध देता है।
लेकिन जातक प्रेमी को धोखा देता है। वह
पत्नी एवं बच्चे की भी
परवाह नहीं करता है। षष्ठ भाव का
वक्री शनि
यदि निर्बल हो तो रोग, शत्रु एवं ऋण कारक होता है। सप्तम
भाव का वक्री शनि पति या पत्नी वियोग देता
है।
यदि शनि मिथुन, कन्या, धनु या मीन का हो तो एक से
अधिक विवाहों अथवा विवाहेतर संबंधों का कारक होता
है। अष्टम भाव में शनि हो तो जातक ज्योतिषी
दैवज्ञ, दार्शनिक एवं वक्ता होता है। ऐसा व्यक्ति तांत्रिक,
भूतविद्या,
काला जादू आदि से धन कमाता है। नवमस्थ वक्री शनि
जातक की पूर्वजों से प्राप्त धन में वृद्धि करता है।
उसे धर्म
परायण एवं आर्थिक संकट आने पर धैर्यवान बनाता है। दशमस्थ
शनि वक्री हो तो जातक वकील,
न्यायाधीश,
बैरिस्टर, मुखिया, मंत्री या दंडाधिकारी होता
है। एकादश भाव का शनि जातक को चापलूस बनाता है। व्यय
भावस्थ
वक्री शनि निर्दयी एवं आलसी
बनाता है।
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