जानिए होली पर क्यों होता है रंग और गुलाल का प्रयोग
ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र आचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव 94150 87711
होली का सीधा मतलब रंग और गुलाल के संग मस्ती है इसलिए होली आने से हफ्ते दिन पहले ही लोग रंग गुलाल के साथ मौज मस्ती करने लगते हैं। रंग और गुलाल लगाते समय इस बात का किसी को ख्याल ही नहीं रहता कि कौन अपना है कौन पराया है सभी होली पर एक रंग में रंग जाते हैं यह रंग होता है प्यार और आनंद का रंग। होली पर रंगों का हुड़दंग कैसे आम लोगों के जीवन में आया इसका जवाब आपने कभी ढूंढा है। आइये आज उन पांच कारणों के बारे में जानें जिससे होली पर रंगों के संग हुड़दंग चलता है।होली के बारे में सबसे प्रचलित कहानी है प्रह्लाद और होलिका की। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को ब्रह्मा जी से वरदान स्वरूप एक वस्त्र प्राप्त था जिसे ओढने के बाद आग उसे नहीं जला पाती। इस वरदान का लाभ उठाकर हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के भक्त और अपने पुत्र प्रह्लाद को मरवाना चाहा। इसके लिए होलिका लकड़ियों के ढ़ेर पर प्रह्लाद को लेकर बैठ गई। लकड़ियों में जब आग लगाई गई तब हवा के झोंके से अग्नि से रक्षा करने वाला वस्त्र उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गया इससे प्रह्लाद जीवित बच गया और होलिका जलकर मर गई। लोगों को जब इस घटना की जानकारी मिली तो अगले दिन लोग खूब रंग गुलाल के संग आनंद उत्सव मनाए। इसके बाद से ही होली पर रंग गुलाल संग मस्ती की परंपरा शुरु हो गई।होली पर उत्सव मनाने की दूसरी वजह भगवान शिव और देवी पार्वती की पहली मुलाकात है। कथा के अनुसार तारकासुर का वध करने के लिए भगवान शिव और पार्वती का विवाह आवश्यक था। लेकिन भगवान शिव तपस्या में लीन थे। ऐसे में भगवान शिव से देवी पार्वती को मिलाने के लिए देवताओं ने कामदेव और रति का सहारा लिया। कामदेव ने भगवान शिव का ध्यान भंग कर दिया इससे नाराज होकर शिव ने कामदेव को भष्म कर दिया। लेकिन इस घटना में शिव जी ने पहली बार देवी पार्वती को भी देखा। कामदेव के भष्म होने के बाद रति ने विलाप करना शुरु कर दिया। देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने कामदेव को बिना शरीर के रति के साथ रहने का आशीर्वाद दिया और कामदेव को पुनः शरीर की प्राप्ति श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में हुआ। शिव पार्वती के मिलन और कामदेव को पुनः जीवन मिलने की खुशी में देवताओं ने रंगोत्सव मनाया।पूतना नामक राक्षसी को कंस ने श्री कृष्ण के वध के लिए भेजा। पूतना ने श्री कृष्ण का अपहरण कर लिया और अपने जहरीले दूध का स्तनपान कराने लगी। श्री कृष्ण ने स्तनपान करते समय पूतना के प्राण छीन लिए और उसकी मृत्यु हो गयी। लोगों ने जब पूतना के शरीर पर श्री कृष्ण को जीवित खेलते हुए देखा तो आनंद से झूम उठे। पूतना का अंतिम संस्कार किया गया और रंगोत्सव मनाया गया। इसी परंपरा को मनाते हुए आज भी गोकुलवासी रंग गुलाल से होली खेलते हैं।श्री कृष्ण की लीलाओं में राधा के संग होली खेलने की भी कथाएं मिलती हैं। भगवान श्री कृष्ण राधा के गांव बरसाने जाकर गोपियों संग होली खेलते थे। बरसाने वाले इसके अगले दिन नंदगांव आकर होली का उत्सव मनाते थे। इसी परंपरा के तहत आज भी बरसाने और नंद गांव में रंग गुलाल के साथ लट्ठमार होली खेली जाती है।होली के रंग उत्सव और हुड़दंग के पीछे एक कहानी ढुंढी नाम की राक्षसी का है। इस राक्षसी ने राजा पृथु के राज में हहाकार मचा रखा था। भगवान शिव के वरदान के कारण इसकी मृत्यु अस्त्र-शस्त्र से नहीं हो सकती थी। वरदान के कारण यह लोगों को सताती थी छोटे बच्चों को खा जाती थी। लेकिन वरदान के साथ एक शर्त यह थी कि वह बच्चों के आनंद और शोर से मुक्त नहीं थी। इसलिए पुरोहितों की सलाह पर पृथु ने फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन सभी बच्चों को इक्टठा किया और सभी को खूब शोर मचाने और मौज मस्ती करने के लिए कहा गया। ढूंढी राक्षसी जब वहां पहुंची तो बच्चों ने लकड़ी जालाकर खूब शोर मचाना शुरु किया इससे ढूंढी भाग गई। इसके बाद लोगों ने चैन की सांस ली और खूब हुड़दंग मचाते हुए रंग गुलाल उड़ाए। राजा पृथु को पृथ्वी का पहला राजा भी माना जाता है और इन्हीं के नाम पर धरती पृथ्वी कहलाती है।
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