सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र की प्रस्तुति
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ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 9415 0877 119 2357 22996
बच्चों को हम क्या गलत संस्कार दे
रहे हैं ?
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नमस्कार,
माता पिता बच्चों की पहली पाठशाला होती हैं ।उस पाठशाला मै ही अक्सर हम या हमारे परिवार का सदस्य बच्चों से कई बार ये कहता हैं की उस बच्चे के साथ मत बैठा कर, उसके साथ मत खेला कर, उसके साथ मत खाया कर, वो हमसे छोटा हैं, वो निचली जाति का हैं, वो गरीब हैं आदि आदि । कभी कभी हमारे बच्चे का व्यवहार कुछ अलग होता हैं, उसकी किसी दोस्त के साथ तालमेल नही हो पाता, यदि किसी से बन रही होती तो उपरोक्त बाते कहकर हम उसे उस दोस्त से भी अलग कर देते हैं ।
मतलब हम दोस्तों से उसको बाँट दिए देते हैं ।
छोटे बच्चों का अपनी छोटीछोटी चीजों से, खिलौनों से इतना जुड़ाव होता है कि वे उन्हें दूसरे बच्चों के साथ शेयर नहीं कर पाते. नतीजा आप का बच्चा लड़झगड़ कर समूह से बाहर अकेले बैठ जाता है. उदार हृदय होना एक अति आवश्यक सामाजिक गुण है, किंतु बच्चों को उदार बनाना या दूसरे शब्दों में कहें तो शेयरिंग सिखाना आसान नहीं. बच्चे जब 2 साल के होते हैं और स्कूल जाना या दूसरे दोस्तों में उठनाबैठना सीख रहे होते हैं तो उन का जुड़ाव उन के खिलौनों से बहुत अधिक होता है. उन के झगड़े अधिकांश उन से ही जुड़े होते हैं, झगड़ा चाहे दोस्तों से हो या मातापिता से. मिलबांट कर खेलने का गुण विकसित करने के लिए अभ्यास और समझ की आवश्यकता होती है. इस में कम से कम 1-2 साल तो लगते ही हैं और यह स्वाभाविक है.
बच्चों को यदि हमने बचपन से उच्च
शिक्षा के साथ मिलकर रहने और बांटने की शिक्षा भी दी तो उसे जिंदगी मै आगे कठिनाई नही आयगी ।हम इस तरह से उसका बचपन सुधार सकते हैं ।
क्या प्रयास करे
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मिल कर खेलने या खाने की खुशी
मेरी एक मित्र की पत्नी जब भी अपनी बिटिया को गार्डन ले कर जाती है तो वह अपने साथ कुछ अतिरिक्त खिलौने ले जाती है जिन्हें उस की बिटिया अपने दोस्तों को दे सकती है. जब वापस जाने का समय आता है तो वह बच्चों से खिलौने वापस एकत्रित कर लेती है. उस की बिटिया को शेयर करने से खुशी का अनुभव होता है और सारे खिलौने उसे वापस मिल भी जाते हैं. इसी तरह अगर आप बच्चों के टिफिन में कुछ स्नैक्स भेज रही हों जैसे कि पौपकौर्न या चिप्स, तो कुछ ज्यादा भेजें और उसे बच्चे को अपने दोस्तों में शेयर करने को कहें. इस से उसे देने की खुशी का अनुभव होगा और वह खुद ही शेयरिंग सीखने लगेगा.
यदि बच्चे मिलबांट कर नहीं खेलना चाहते तो उन्हें खिलौने से बारीबारी से खेलने को कहना चाहिए. सौम्या के 2 बच्चे हैं, एक 5 साल का बेटा और दूसरी 2 साल की बेटी. जब वे दोनों एक ही खिलौने के लिए झगड़ते हैं तो सौम्या यही तरकीब अपनाती है. इस से अनजाने ही वे अपने खिलौने शेयर करने लगते हैं.
आदर्श होते हैं मातापिता
बच्चों के पहले आदर्श मातापिता ही होते हैं. यदि वे अपने मातापिता को शेयर करते देखेंगे तभी वे भी शेयरिंग सीखेंगे. रेस्टोरैंट में कभी आप सपरिवार जाएं तो टेबल पर किसी भी डिश के आने पर मातापिता को चाहिए कि वे सभी सदस्यों को सर्व करें, उस के बाद वे खुद खाएं. चौकलेट्स, बिस्कुट, गुब्बारे जैसी चीजें, यदि घर पर दूसरे बच्चे हैं, तो उन के लिए भी लानी चाहिए और बच्चों से ही दूसरे बच्चों को देने के लिए कहना चाहिए परिवार में या फ्रैंड्ससर्कल में देनेलेने से संबंधित मनमुटाव हो तो उसे बच्चों के सामने नहीं दर्शाना चाहिए. बड़ों का स्वार्थ या ईर्ष्या, राग, द्वेष बच्चों तक न ही पहुंचे तो अच्छा.
नैतिक शिक्षा दे
बच्चे नैतिक कहानी सही तरह से सुनाई जाए तो उन से मिलने वाली सीख, बच्चों के हृदयपटल पर लंबे समय तक अंकित रहती है. आजकल बच्चों की कहानियों में कई कैरेक्टर्स आते हैं, जैसे बबल्स, पेपर आदि जिन के माध्यम से बच्चों का चरित्र निर्माण किया जा सकता है. इन में शेयरिंग से संबंधित किताबें भी मिलती हैं. बच्चों को हृदय से देने वाला व्यक्ति बड़ा होता है या दुनिया गोल है, जो देता है उसी को मिलता है आदि विचार कहानियों द्वारा स्थापित किए जा सकते हैं.
समय समय पर बच्चों की तारीफ़
भी किया कीजिये
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तारीफ, प्रशंसा तो हम बड़ों को भी प्रेरित करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है तो बच्चों पर तो इस का अद्भुत ही असर होता है. यदि बच्चा कभी अपना खिलौना दूसरे बच्चे को खेलने के लिए दे तो आप उस के समक्ष उस की तारीफ जरूर करें. इस से बच्चे में शेयरिंग की आदत बढ़ेगी.
यदि कोई दूसरे बड़े बच्चे शेयरिंग कर रहे हों तो बच्चों को दिखाना चाहिए. थोड़ी बड़ी उम्र के बच्चे, छोटी उम्र के बच्चों के लिए रोल मौडल होते हैं और वे उन का अनुसरण करने की कोशिश करते हैं. उस समय ऐसा बिलकुल नहीं कहना चाहिए कि देखो, तुम तो शेयरिंग करते ही नहीं, वे कैसे शेयरिंग कर रहे हैं. जब बच्चा अपनी कोई वस्तु किसी दोस्त को देना सीख रहा या देता हैं तो उसके मन मै ये भाव मत लाइए की इतनी महंगी वस्तु तुमने क्यों किसी को दी । अक्सर महिलाये घरो मै ही जेठानी देवरानी के बच्चों से भी अपने बच्चों को शेयर नही करने देती हैं । हम खुद जब कोई वस्तु घर मै लाते हैं तो जब छौटे भाई का बच्चा घर आता हैं, तो अपने बच्चों को बोलते की जल्दी से छिपा लो ।ये संस्कार कितने अनुचित होते हैं ।
जब बच्चा नही शेयर करे
बहुत समझाने के बाद भी बच्चा यदि अपनी चीजें या खिलौने शेयर न करना चाहे तो उस पर नाराज नहीं होना चाहिए. कुछ समस्याएं समय के साथ ही हल होती हैं. बच्चे को डांटने या चिल्लाने से हल नहीं निकलने वाला. आप अपने खाली समय में, जब बच्चे के साथ अकेली हों, उसे प्यार से मिलबांट कर खेलने के फायदे समझा सकती हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि खिलौने बच्चों को उतने ही प्रिय होते हैं जितने महिलाओं को गहने. उन्हें शेयर करने में थोड़ा वक्त तो लगेगा, इसलिए हमें सब्र से काम लेना चाहिए.
आप एक बात जरूर ध्यान रखे,की
प्रकृति ने दो इंसान ही बनाये हैं। एक देने के लिये और एक लेने के लिए ।देने के लिए जो बना हैं वो भगवान का आशीर्वाद हैं, और जो लेने के लिए बना हैं वो भगवान के आशीर्वाद से वंचित हैं । क्योंकि भगवान खुद नही दे पाता तो अपने बन्दों के माध्यम से बांटता हैं । यदि बच्चा किसी को कुछ दे रहा हैं तो समझो बच्चे मै किसी शुभ आत्मा की छवि आ गयी हैं ।
🌺🌺ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र विभव खंड 2 गोमती नगर एवं वेदराज कांप्लेक्स पुराना आरटीओ चौराहा लाटूश रोड लखनऊ 94150 87711 92357 22996 astroexpertsolutions.com
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