तिलक Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra 9415 087 711 923 5722 996 तिलक लगाने की परंपरा भारतीय संस्कृति और धर्म में प्राचीन काल से ही रही है। किसी आयोजन में आने वाले व्यक्ति का स्वागत-सत्कार तिलक लगाकर ही करते हैं। विवाहित स्त्री अपने मस्तक पर कुंकुम का तिलक धारण करती है। शादी-विवाह या किसी मांगलिक कार्य में बहन-बेटी या महिलाएं एक दूसरे का स्वागत हल्दी कुंकुम लगाकर करती है। पूजा और भक्ति का एक प्रमुख अंग तिलक है। भारतीय संस्कृति में पूजा-अर्चना, संस्कार विधि, मंगल कार्य, यात्रा गमन, शुभ कार्यों के प्रारंभ में माथे पर तिलक लगाकर उसे अक्षत से विभूषित किया जाता है। आओ जानते हैं तिलक का महत्व। तिलक का अध्यात्मिक और धार्मिक महत्व : तिलक लगाने के 12 स्थान हैं। सिर, ललाट, कंठ, हृदय, दोनों बाहुं, बाहुमूल, नाभि, पीठ, दोनों बगल में, इस प्रकार बारह स्थानों पर तिलक करने का विधान है। मस्तक पर तिलक जहां लगाया जाता है वहां आत्मा अर्थात हम स्वयं स्थित होते हैं। तिलक मस्तक पर दोनों भौंहों के बीच नासिका के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर लगाए जाते हैं जो हमारे चिंतन-मनन का भी स्थान है। यह स्थान चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसे आज्ञा-चक्र भी कहते हैं। इन दोनों के संगम बिंदु पर स्थित चक्र को निर्मल, विवेकशील, ऊर्जावान, जागृत रखने के साथ ही तनावमुक्त रहने हेतु ही तिलक लगाया जाता है। इस बिंदु पर यदि सौभाग्यसूचक द्रव्य जैसे चंदन, केशर, कुमकुम आदि का तिलक लगाने से सात्विक एवं तेजपूर्ण होकर आत्मविश्वास में अभूतपूर्ण वृद्धि होती है, मन में निर्मलता, शांति एवं संयम में वृद्धि होती है। तिलक चार प्रकार के होते हैं----- 1- कुमकुम 2- केशर 3- चंदन 4- भस्म कुमकुम ---- हल्दी चुना मिलकर बना होता है जो हमारे आज्ञा चक्र की शुद्धि करते हुए उसे केल्शियम देते हुए ज्ञान चक्र को प्रज्व्व्लित करता है। केशर ----- जिसका मस्तिष्क ठंडा शीतल होता है उसको केसर का तिलक प्रज्ज्वलित करता है। चंदन - दिमाग को शीतलता प्रदान करते हुए मानसिक शान्ति भी देता है। भस्मी---- वैराग्य की अग्रसर करते हुए मस्तष्क के रोम कूपों के विषाणुओं को भी नष्ट करता है। तिलक हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है। तिलक केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि कई वैज्ञानिक कारण भी हैं इसके पीछे। तिलक केवल एक तरह से नहीं लगाया जाता। हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं, उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं। तिलक सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं। शैव---- शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है। शाक्त---- शाक्त सिंदूर का तिलक लगाते हैं। सिंदूर उग्रता का प्रतीक है। यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है। वैष्णव---- वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं। इनमें प्रमुख हैं---- लालश्री तिलक---- इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है। विष्णुस्वामी तिलक------ यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भोहों के बीच तक आता है। रामानंदी तिलक----- विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है। श्यामश्री तिलक----- इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है। अन्य तिलक---- गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं। महिमा भारी तिलक की, को कर सके बखान। आप तिलक को मानिये ,श्री विष्णू भगवान।। जिसके माथे पर तिलक ,की होती है छाप। भूत प्रेत ही दूर से ,भग जाते चुपचाप।। माथे की शोभा तिलक , तिलक हमारी शान। बिना तिलक माथा लगे ,बिल्कुल ही सुनसान।। तिलक करे परिवार को , शक्ति शांति प्रदान। आप लगाकर देखिये , हो जाये कल्याण।। तन मन को शीतल करे ,ये चंदन की छाप। कट जाते हैं लगाते ,जन्म जन्म के पाप।। तिलक लगाने से मिले ,बुद्धि ज्ञान सम्मान। तिलक हमारे धर्म की , होती है पहचान।। वैष्णव जन के तिलक में,विष्णु लक्ष्मी निवास। इसीलिये इस तिलक की ,महिमा सबसे खास।। बिना तिलक होता नहीं, कोई पूजा पाठ। तिलक लगायें आप सब ,सदा रहेंगा ठाठ।।