हिन्दू धर्म में सफेद वस्त्र का क्या है महत्व, जानिए... ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव 9415087711 8840727096 astroexpertsolution.com हिन्दू धर्म में सफेद वस्त्र का बहुत महत्व है। सफेद रंग हर तरह से शुभ माना गया है, लेकिन वक्त के साथ लोगों ने इस रंग का मांगलिक कार्यों में इस्तेमाल बंद कर दिया। हालांकि प्राचीनकाल में सभी तरह के मांगलिक कार्यों में इस रंग के वस्त्रों का उपयोग किया जाता था। यह रंग शांति, शुभता, पवित्रता और मोक्ष का रंग है। लक्ष्मी का वस्त्र : सच तो यह है कि सफेद रंग सभी रंगों में अधिक शुभ माना गया है इसीलिए कहते हैं कि लक्ष्मी हमेशा सफेद कपड़ों में निवास करती है। मांगलिक वस्त्र : 20-25 वर्षों पहले तक लाल जोड़े में सजी दुल्हन को सफेद ओढ़नी ओढ़ाई जाती थी। इसका यह मतलब कि दुल्हन ससुराल में पहला कदम रखे तो उसके सफेद वस्त्रों में लक्ष्मी का वास हो। आज भी ग्रामीण क्षेत्र में सफेद ओढ़नी की परंपरा का पालन किया जाता है। यज्ञकर्ता का वस्त्र : प्राचीन काल में जब भी यज्ञ किया जाता था तो पुरुष और महिला दोनों ही सफेद वस्त्र ही धारण करके बैठते थे। पुरोहित वर्ग इसी तरह के वस्त्र पहनकर यज्ञ करते थे। दूसरी ओर आज भी किसी भी सम्मान समारोह आदि में सफेद कुर्ता और धोती पहनने का रिवाज है। विधावा का वस्त्र : यदि किसी का पति मर गया तो उसे विधवा और किसी की पत्नी मर गई है तो उसे विधुर कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार पति की मृत्यु के नौवें दिन उसे दुनियाभर के रंगों को त्यागकर सफेद साड़ी पहननी होती है, वह किसी भी प्रकार के आभूषण एवं श्रृंगार नहीं कर सकती। स्त्री को उसके पति के निधन के कुछ सालों बाद तक केवल सफेद वस्त्र ही पहनने होते हैं और उसके बाद यदि वह रंग बदलना चाहे तो बेहद हल्के रंग के वस्त्र पहन सकती है। मध्यकाल में हिन्दू धर्म में कई तरह की बुराइयां सम्मलित हुई उसमें एक यह भी थी कि कोई स्त्री यदि विधवा हो जाती थी तो वह दूसरा विवाह नहीं कर पाती थी। हालांकि आज भी उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में विधवा विवाह का प्रचलन है जिसे नाता कहा जाता है। कोई स्त्री पुनर्विवाह का निर्णय लेती है, तो इसके लिए वह स्त्रतंत्र है। आज समाज का स्वरूप बदल रहा है। विधवाएं रंगीन वस्त्र भी पहन रही है और शादी भी कर रही हैं। वेदों में एक विधवा को सभी अधिकार देने एवं दूसरा विवाह करने का अधिकार भी दिया गया है। वेदों में एक कथन शामिल है- 'उदीर्ष्व नार्यभि जीवलोकं गतासुमेतमुप शेष एहि। हस्तग्राभस्य दिधिषोस्तवेदं पत्युर्जनित्वमभि सम्बभूथ।' अर्थात पति की मृत्यु के बाद उसकी विधवा उसकी याद में अपना सारा जीवन व्यतीत कर दे, ऐसा कोई धर्म नहीं कहता। उस स्त्री को पूरा अधिकार है कि वह आगे बढ़कर किसी अन्य पुरुष से विवाह करके अपना जीवन सफल बनाए। चार कारणों से विधवा महिलाओं को सफेद वस्त्र दिए गए। पहला यह कि यह रंग कोई रंग नहीं बल्कि रंगों के अनुपस्थिति है। मतलब यह कि अब जीवन में कोई रंग नहीं बचा। दूसरा यह कि इससे महिला की एक अलग पहचान बन जाती है और लोग उसे सहानु‍भूति एवं संवेदना रखते हैं। तीसरा यह कि सफेद रंग आत्मविश्वास, सा‍त्विक और शांति का रंग है। इसके साथ ही सफेद वस्त्र विधवा स्त्री को प्रभु में अपना ध्यान लगाने में मदद करते हैं। चौथा कराण यह कि इससे महिला का कहीं ध्यान नहीं भटकता है और उसे हर वक्त इसका अहसास होता है कि वह पवित्र है। पांचवां कारण यह कि यदि महिला के कोई पुत्र या पुत्री है तो वह अपने भीतर नैतिकता और जिम्मेदारी का अहसास करती रहे ताकि वह दूसरा विवाह नहीं करें। दोबारा शादी नहीं करने से पुत्र पुत्रियों के जीवन पर विपरित या प्रतिकुल असर नहीं पड़ता है। ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव 9415087711 8840727096 astroexpertsolution.com