श्री बगलामुखी की उपासना विधि :-
ॐ हल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिहवां कीलय बुद्धिं विनाशय हल्रीं ॐ स्वाहा.
Jyotish Aacharya Dr Umashankar Mishra 941 5087 711 923 5722 996
दस महाविद्याओं में एक का नाम बगुला मुखी है। वेदों में इनका नाम बल्गामुखी है। इनकी आराधना मात्र से साधक के सारे संकट दूर हो जाते हैं, शत्रु परास्त होते हैं और श्री वृद्धि होती है। बगलामुखी का जप साधारण व्यक्ति भी कर सकता है, लेकिन इनकी तंत्र उपासना किसी योग्य व्यक्ति के सान्निध्य में ही करनी चाहिए। देवी के अर्गला स्तोत्र का पाठ करने मात्र से इनकी आराधना हो जाती है। साधक को पीले वस्त्र (बिना सिले) पहनकर पीले आसन पर बैठकर सरसों के तेल का दीपक जलाकर पीली सरसों से यज्ञ करना चाहिए। इससे उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे और शत्रु परास्त होंगे। यह महारुद्र की शक्ति हैं।
इस शक्ति की आराधना करने से साधक के शत्रुओं का शमन तथा कष्टों का निवारण होता है। यों तो बगलामुखी देवी की उपासना सभी कार्यों में सफलता प्रदान करती है, परंतु विशेष रूप से युद्ध, विवाद, शास्त्रार्थ, मुकदमे, और प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करने, अधिकारी या मालिक को अनुकूल करने, अपने ऊपर हो रहे अकारण अत्याचार से बचने और किसी को सबक सिखाने के लिए बगलामुखी देवी का वैदिक अनुष्ठान सर्वश्रेष्ठ, प्रभावी एवं उपयुक्त होता है। असाध्य रोगों से छुटकारा पाने, बंधनमुक्त होने, संकट से उद्धार पाने और नवग्रहों के दोष से मुक्ति के लिए भी इस मंत्र की साधना की जा सकती है।
कृत युग में पूरे संसार को नष्ट करने वाला तूफान उठा, उसे देख जगत रक्षक श्री हरि भगवान विष्णु चिंतातुर हुए और सौराष्ट्र में स्थित हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर उन्होंने तपस्या की। उनकी तपस्या से महात्रिपुर संुदरी प्रसन्न होकर देवी बगला के रूप में प्रकट हुईं तथा तूफान को शांत किया। इन्हीं की शक्ति पर तीनों लोक टिके हुए हैं। विष्णु पत्नी सारे जगत की अधिष्ठान ब्रह्म स्वरूप हैं। तंत्र में शक्ति के इसी रूप को ‘‘श्री बगलामुखी’’ महाविद्या कहा गया है। वैदिक एवं पौराणिक शास्त्रों में श्री बगलामुखी महाविद्या का वर्णन अनेक स्थलों पर मिलता है। शत्रु के विनाश के लिए जो कृत्य विशेष को भूमि में गाड़ देते हैं, उनका नाश करने वाली महाशक्ति श्री बगलामुखी ही हैं।
श्री बगला देवी को शक्ति भी कहा गया है। सत्य काली च श्री विद्या कमला भुवनेश्वरी। सिद्ध विद्या महेशनि त्रिशक्तिर्बगला शिवे।। मंत्र महार्णव के अनुसार इस मंत्र का एक लाख जप करने से पुरश्चरण होता है। अन्य तंत्र ग्रंथों के अनुसार पुरश्चरण के लिए सवा लाख जप का विधान है। भेरूतंत्र के अनुसार यह मंत्र दस हजार के जप से ही सिद्ध हो जाता है। इसका जप नित्य नियत संख्या में ही करना चाहिए। जप का दशांश हवन, तर्पण और मार्जन कर ब्राह्मण तथा कन्या भोजन कराना चाहिए। पुरश्चरण 21 दिनों में सरलतापूर्वक संपन्न हो सकता है। प्राणी के शरीर में एक अथर्वा नाम का प्राण सूत्र भी होता है। प्राणरूप होने से हम इसे स्थूल रूप से देखने में असमर्थ होते हैं। यह एक प्रकार की वायरलेस टेलीग्राफी है। हजारों योजन दूर रहने वाले आत्मीय के दुख से हमारा man जिस परोक्ष शक्ति के माध्यम से व्याकुल हो जाता है, उसी परोक्ष सूत्र का नाम अथर्वा है। इस शक्ति सूत्र के माध्यम से हजारां किमी दूर स्थित व्यक्ति से संपर्क संभव है। दूसरे अथर्वागिरा में अभिचार प्रयोग होता है। इसका उसी अथर्वा सूत्र से संबंध है। अथर्वा सूत्र रूपी इसी महाशक्ति का नाम bagalamukhi बल्गामुखी है। उपासना: बगलामुखी की साधना में साधना के नियमों को जानना तथा उनका पालन करना अत्यंत आवश्यक है। साधना किसी प्रवीण गुरु से दीक्षा लेकर ही करनी चाहिए। बगलामुखी साधना के लिए ‘’वीर राजी’’ विशेष सिद्धिप्रदा मानी गई है। यदि सूर्य मकर राशिस्थ हो, मंगलवार को चतुर्दशी हो तो उसे वीर राजी कहा जाता है। इसी राजी में अर्द्धरात्रि के समय देवी श्री बगलामुखी प्रकट हुई थीं।
महाविद्या बगलामुखी का 36 अक्षरों का मंत्र इस प्रकार है।
पीताम्बर धरी भूत्वा पूर्वाशामि मुखः स्थितिः। लक्ष्मेकं जयेन्मंत्रं हरिद्रा ग्रन्थि मालया।। ब्रह्मचर्यŸाो नित्यं प्रचरो ध्यान तत्परः। प्रियंगु कुसुमेनादि पीत पुस्पै होमयेत।।
बगलामुखी देवी के जप में पीले रंग का विशेष महत्व है। अनुष्ठानकर्ता को पीले वस्त्र पहनने चाहिए। पीले कनेर के फूलों का विशेष विधान है। देवी की पूजा तथा होम में पीले पुष्पों का प्रयोग करना चाहिए और हल्दी की गांठ की माला से पूजा करनी चाहिए। उसे ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा सदैव स्वच्छ तन और मन से भगवती का ध्यान करना चाहिए। जप आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर करना चाहिए। जप से पूर्व आसन शुद्धि, भूशुद्धि, भूतशुद्धि, अंग न्यास, करन्यास आदि करने चाहिए तथा प्रतिदिन जप के अंत मे दशांश होम पीले पुष्पों से अवश्य करना चाहिए। जप करने से पूर्व यह ध्यान करना आवश्यक है।
साधना विधि: सुबह स्नानादि कर स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। फिर देवी के चित्र को एक चैकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर पूर्व की ओर मुख करके स्थापित कर षोडशोपचार विधि से पूजन करें। साधना में वस्त्र, आसन, माला, गंध, अक्षत, पुष्प, फल आदि भी पीले रंग के होने चाहिए। साधना काल में बगला यंत्र की स्थापना भी अवश्य करनी चाहिए। यंत्र को शिव मंत्र ‘‘¬ नमः शिवायः’’ से अभिमंत्रित करना चाहिए। फिर उसे किसी पात्र में रखकर पंचामृत, दूध या शुद्ध जल और सुगंधित चंदन, कस्तूरी से स्थापित करें। इसके बाद निम्न गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए यंत्र का स्पर्श कर कुशामन से अभिमंत्रित करें।
मंत्र ‘‘यंत्र राजाय विद्महे महा यंत्राय धीमहि तन्नो यंत्रः प्रचोदयात्।’’ फिर देवी-देवता की भाव सिद्ध के लिए अष्टोŸार शतबार पढ़ें। अष्टोŸारशतं देवि-देवता भाव सिद्धेय।। आत्म शुद्धि ततः कृत्वा षडंगे देवता यजेत्। तत्रावाहं महादेवी जीवन्यासं च कारयेत।। फिर महादेव जी का आवाहन करके प्राणन्यास करें। संकल्प:- आचमन एवं प्राणायाम करने के बाद देशकाल संकीर्तन करके बगलामुखी मंत्र की सिद्धि के लिए जप संख्या के निर्देश और तत् दशांश क्रमशः हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन रूप पुरश्चरण करने का संकल्प करें।
विनियोग मंत्र: ¬ अस्य श्री बगलामुखीमंत्रस्य नारदऋषिः त्रिष्टुपछन्दः बगलामुखी देवता ींीं बीजं स्वाहा शक्तिः मम अखिलावाप्तये जपे विनियोगः।
इससे उसमें प्राण शक्ति आ जाएगी। फिर अभीष्ट सिद्धि हेतु उपरोक्त मंत्र का जप करें। फिर देवी को यथा योग्य सामग्री अर्पित कर भक्ति भाव से प्रणाम करें। इस प्रकार से जो साधक साधना करता है, उसे सभी फल प्राप्त हो जाते हैं हृदयादि षडंगन्यास:- ¬ ींीं हृदयाय नमः। बगलामुखी शिरसे स्वाहा। सर्वदुष्टानां शिखायै वषट्। वाचं मुखं पदं स्तम्भय कवचाय हुम्। जिह्नां कीलय नेत्रत्रयाय वौषट् बुद्धिं विनाशय ींीं ¬ स्वाहा अस्त्राय फट्। अथ ध्यानम्: सुधा सागर के मध्य मणियों से जड़ित मंडप में रत्नों से बनी वेदी पर स्वर्ण सिंहासन पर देवी विराजमान हैं। सिंहासन, मंडप तथा आसपास का वातावरण सब पीतवर्ण के हैं। मां पीले रंग के ही वस्त्र, मुकुट, माला, पीतवर्ण के ही रत्नों से जड़े स्वर्णाभूषण पहने हुए हैं। उन्होंने बायें हाथ में शत्रु की जीभ और दाहिने में मुद्गर पकड़ रखा है। ऐसी दो भुजाओं वाली देवी भगवती बगलामुखी को नमस्कार है। ऐसा ध्यान करके मानसोपचारों से पूजा करके पीठ पूजा करनी चाहिए। पीठ आदि पर रचित सर्वतोभद्रमंडल में मंडूकादि परतत्वांत पीठ देवताओं को स्थापित करके ¬ मं मण्डूकादि परतत्वान्त पीठ देवताम्भ्यो नमः मंत्र से पूजा करके नव पीठशक्तियों की निम्नलिखित मंत्रों से पूजा करें। पूर्वाद्यष्टसु दिक्षु ¬ जयायै नमः (1) ¬ विजयायै नमः (2) ¬ अजितायै नमः (3) ¬ अपराजितायै नमः (4) ¬ नित्यायै नमः (5) ¬ विलासिन्यै नमः (6) ¬ दोग्ध्यै नमः (7) ¬ अघोरायै नमः (8) मध्ये ¬ मंगलायै नमः (9) इति पीठ शक्तीः पूजयेत। ततः स्वर्णादि निर्मितं यंत्रं ताम्रपात्रे निधाय धृतेनाभ्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्वा स्वच्छ वस्त्रेण सम्प्रोक्ष्य तदुपरि चंदनागुरुकर्पूरेण पूजनार्थ यंत्र विलिरव्य। ¬ ींीं बगलामुखी योगपीठाय नमः इति मंत्रेण पुष्पाधासनं दत्वा पीठ मध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनध्र्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य पाद्यादि पुष्पान्तैरूपचारैः सम्पूज्य देव्याज्ञां ग्रहीत्वा आवरण पूजां कुर्यात। तद्यथाः। इसके बाद सोने से निर्मित यंत्र को ताम्रपत्र में रखकर उस पर घी का अभ्यंग करके उस पर दूध और जल की धारा दें। तदनंतर उसे स्वच्छ वस्त्र से पोंछकर उसके ऊपर चंदन, अगरबत्ती और कपूर से पूजा के लिए यंत्र लिखें। ‘‘¬ ींीं बगलामुखी योगपीठाय नमः’’ मंत्र से पुष्पाद्यासन देकर पीठ के बीच स्थापित करके उसकी प्राण प्रतिष्ठा करें। फिर ध्यान कर मूल से मूर्ति की प्रकल्पना करें और पाद्य आदि से पुष्पान्जलि दान पर्यन्त उक्त उपचारों से पूजा करके देवी से आज्ञा लेकर आवरण पूजा करें। इत्यावरणपूजां कृत्वां धूपादि नमस्कारान्तं सम्पूज्य जपं कुर्यात अस्य पुरश्चरणं लक्ष जपः चम्पक कुसुमैर्दशांशतो होमः तद्दशांशेन तर्पण मार्जन ब्राह्मण भोजनानि कुर्यात। एवं कृते मंत्रः सिद्धौ भवति एतस्मिन्सिद्धे मंत्रे मंत्र प्रयोगान साधयेत। इस प्रकार आवरण पूजा करके धूपदान से नमस्कार तक पूजा कर जप करें। चम्पा के फूलों से दशांश होम और तद्दशांश तर्पण और मार्जन कर ब्राह्मण भोजन कराएं। ऐसा करने से मंत्र सिद्ध होता है। इस प्रकार ध्यान करके एक लाख जप करें। तदनंतर चंपा के दस हजार फूलों से होम करके पूर्वोक्त पीठ में इस देवी की पूजा करें। इस प्रकार साधक मंत्र को सिद्ध करके देवतादि को स्तंभित करें। साधना पीले वस्त्र और पीली माला धारण कर तथा पीले आसन पर बैठ कर करें। होम पीले फूलों से और मंत्र का जप हल्दी की माला से करें। जप दस हजार करें। मधु, घी और शर्करा मिश्रित तिल से किया जाने वाला हवन (होम) मनुष्यों को वश में करने वाला माना गया है। यह हवन आकर्षण बढ़ाता है। तेल से सिक्त नीम के पत्तों से किया जाने वाला हवन विद्वेष दूर करता है। रात्रि में श्मशान की अग्नि में कोयले, घर के धूम, राई और माहिष गुग्गल के होम से शत्रु का शमन होता है। गिद्ध तथा कौए के पंख, कड़वे तेल, बहेड़े, घर के धूम और चिता की अग्नि से होम करने से साधक के शत्रुओं को उच्चाटन लग जाता है। दूब, गुरुच और लावा को मधु, घी और शक्कर के साथ मिलाकर होम करने पर साधक सभी रोगों को मात्र देखकर दूर कर देता है। कामनाओं की सिद्धि के लिए पर्वत पर, महावन में, नदी के तट पर या शिवालय में एक लाख जप करें। एक रंग की गाय के दूध में मधु और शक्कर मिलाकर उसे तीन सौ मंत्रांे से अभिमंत्रित करके पीने से सभी विषों की शक्ति समाप्त हो जाती है और साधक शत्रुओं की शक्ति तथा बुद्धि का स्तम्भन करने में सक्षम होता है। शत्रुओं पर विजय आदि के लिए बगलामुखी यंत्र की उपासना से बढ़कर और कोई उपासना नहीं है। इसका प्रयोग प्राचीनकाल से ही हो रहा है। श्री प्रजापति ने इनकी उपासना वैदिक रीति से की और वह सृष्टि की रचना करने में सफल हुए। उन्होंने इस विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया। फिर सनत्कुमार ने श्री नारद को और श्री नारद ने यह ज्ञान संख्यायन नामक परमहंस को दिया। संख्यायन ने बंगला तंत्र की रचना की जो 36 पटलों में उपनिबद्ध है। श्री परशुराम जी ने यह विद्या के ढ़ोग बताई। महर्षि च्यवन ने इसी विद्या के प्रभाव से इंद्र के वज्र को स्तंभित किया था। श्रमद्गोविन्द पाद की समाधि में विघ्न डालने वाली रेवा नदी का स्तंभन श्री शंकराचार्य ने इसी विद्या के बल पर किया था। तात्पर्य यह कि इस तंत्र के साधक का शत्रु चाहे कितना भी प्रबल क्यों न हो, वह साधक से पराजित अवश्य होता है। अतः किसी मुकदमे में विजय, षड्यंत्र से रक्षा तथा राजनीति में सफलता के लिए इसकी साधना अवश्य करनी चाहिए। परंतु ध्यान रहे, उपासना किसी योग्य और कुशल गुरु के मार्गदर्शन में ही करें।साधनाकाल की सावधानियाँ
- ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- पीले वस्त्र धारण करें।
- एक समय भोजन करें।
- बाल नहीं कटवाए।
- मंत्र के जप रात्रि के 10 से प्रात: 4 बजे के बीच करें।
- दीपक की बाती को हल्दी या पीले रंग में लपेट कर सुखा लें।
- साधना में छत्तीस अक्षर वाला मंत्र श्रेष्ठ फलदायी होता है।
- साधना अकेले में, मंदिर में, हिमालय पर या किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर की जानी चाहिए।
मंत्र- सिद्ध करने की विधि
- साधना में जरूरी श्री बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है।
- अगर सक्षम हो तो ताम्रपत्र या चाँदी के पत्र पर इसे अंकित करवाए।
- बगलामुखी यंत्र एवं इसकी संपूर्ण साधना यहाँ देना संभव नहीं है। किंतु आवश्यक मंत्र को संक्षिप्त में दिया जा रहा है ताकि जब साधक मंत्र संपन्न करें तब उसे सुविधा रहे।
प्रभावशाली मंत्र माँ बगलामुखी
विनियोग -
अस्य : श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।
आवाहन
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।
ध्यान
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
मंत्र
ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।
इन छत्तीस अक्षरों वाले मंत्र में अद्भुत प्रभाव है। इसको एक लाख जाप द्वारा सिद्ध किया जाता है। अधिक सिद्धि हेतु पाँच लाख जप भी किए जा सकते हैं। जप की संपूर्णता के पश्चात् दशांश यज्ञ एवं दशांश तर्पण भी आवश्यक है।इस साधना में विशेष सावधानियाँ रखने की आवश्यकता होती है । इस साधना को करने वाला साधक पूर्ण रूप से शुद्ध होकर (तन, मन, वचन) रात्री काल में पीले वस्त्र पहनकर व पीला आसन बिछाकर, पीले पुष्पों का प्रयोग कर, पीली (हल्दी या हकीक ) की 108 दानों की माला द्वारा मंत्रों का सही उच्चारण करते हुए कम से कम 11 माला का नित्य जाप 21 दिनों तक या कार्यसिद्ध होने तक करे या फिर नित्य 108 बार मंत्र जाप करने से भी आपको अभीष्ट सिद्ध की प्राप्ति होगी।खाने में पीला खाना व सोने के बिछौने को भी पीला रखना साधना काल में आवश्यक होता है वहीं नियम-संयम रखकर ब्रह्मचारीय होना भी आवश्यक है।
संक्षिप्त साधना विधि, छत्तीस अक्षर के मंत्र का विनियोग ऋयादिन्यास, करन्यास, हृदयाविन्यास व मंत्र इस प्रकार है--
विनियोग
ऊँ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषिः
त्रिष्टुप छंदः श्री बगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः प्रणवः कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयार्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादि न्यास-नारद ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुय छंद से नमः मुखे, बगलामुख्यै नमः, ह्मदि, ह्मीं बीजाय नमः गुहये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, प्रणवः कीलकम नमः सर्वांगे।
हृदयादि न्यास
ऊँ ह्मीं हृदयाय नमः बगलामुखी शिरसे स्वाहा, सर्वदुष्टानां शिरवायै वषट्, वाचं मुखं वदं स्तम्भ्य कवचाय हु, जिह्वां भीलय नेत्रत्रयास वैषट् बुद्धिं विनाशय ह्मीं ऊँ स्वाःआआ फट्।
ध्यान
मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्नवेघां
सिंहासनो परिगतां परिपीत वर्णाम्।
पीताम्बरा भरणमाल्य विभूषितांगी
देवीं भजामि घृत मुदग्र वैरिजिह्माम ।।
मंत्र इस प्रकार है--
ऊँ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ फट स्वाहा।
मंत्र जाप लक्ष्य बनाकर किया जाए तो उसका दशांश होम करना चाहिए। जिसमें चने की दाल, तिल एवं शुद्ध घी का प्रयोग करें एवं समिधा में आम की सूखी लकड़ी या पीपल की लकड़ी का भी प्रयोग कर सकते हैं। मंत्र जाप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर करना चाहिए।
|| मन्त्र ||
ॐ रीम श्रीम बगलामुखी वाचस्पतये नमः !
|| साधना विधि ||
इस मन्त्र को बगलामुखी जयंती को पूरी रात लिंग मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए सारी रात जप करते रहे यदि थक जाये तो थोडा आराम कर ले पर आसन से न उठे ! इस प्रकार यह मन्त्र एक रात में सिद्ध हो जाता है ! दुसरे दिन किसी लड़की को पीला प्रसाद जरूर खिलाये और मंदिर में देवी दुर्गा को भी पीले प्रसाद का भोग लगाये !
|| प्रयोग विधि ||
जब प्रयोग करना हो तो इस मन्त्र को 21 दिन 21 माला रात्रि में हल्दी की माला से जपे आपकी शत्रु बाधा से सम्बंधित सभी समस्याए शांत हो जाएगी !यह स्तोत्र शत्रुनाश एव परविद्या छेदन करने वाला एवं रक्षा कार्य हेतु प्रभावी है ।
साधारण साधकों को कुछ समय आवेश व आर्थिक दबाव रहता है, अतः पूजा उपरान्त नमस्तस्यादि शांति स्तोत्र पढ़ने चाहिये ।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीपीताम्बरा बगलामुखी खड्गमाला मन्त्रस्य नारायण ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगः ।
हृदयादि-न्यासः-नारायण ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, ॐ कीलकाय नमः नाभौ, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास - कर-न्यास – अंग-न्यास -
ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्
वाचं मुखं पद स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम्
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्
ध्यानः-
हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां, सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।
मानस-पूजनः- इस प्रकार ध्यान करके भगवती पीताम्बरा बगलामुखी का मानस पूजन करें -
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-कनिष्ठांगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ रं वह्नयात्मकं दीपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (ऊर्ध्व-मुख-मध्यमा-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-अनामिका-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ शं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-सर्वांगुलि-मुद्रा) ।
खड्ग-माला-मन्त्रः-
ॐ ह्लीं सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय-स्तम्भय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु अपस्मारं कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिका दन्तोष्ठ जिह्वा तालु-कण्ठ बाहूदर कुक्षि नाभि पार्श्वद्वय गुह्य गुदाण्ड त्रिक जानुपाद सर्वांगेषु पादादिकेश-पर्यन्तं केशादिपाद-पर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय आत्म-मन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि रक्ष-रक्ष, सर्व-ग्रहान् निवारय-निवारय सर्वम् अविधिं विनाशय-विनाशय दुःखं हन-हन दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्व-मन्त्र-स्वरुपिणि सर्व-शल्य-योग-स्वरुपिणि दुष्ट-ग्रह-चण्ड-ग्रह भूतग्रहाऽऽकाशग्रह चौर-ग्रह पाषाण-ग्रह चाण्डाल-ग्रह यक्ष-गन्धर्व-किंनर-ग्रह ब्रह्म-राक्षस-ग्रह भूत-प्रेतपिशाचादीनां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशं बन्धय-बन्धय, वाराहि बगलामुखी मां रक्ष-रक्ष दक्षिणदिशं बन्धय-बन्धय, किरातवाराहि मां रक्ष-रक्ष पश्चिमदिशं बन्धय-बन्धय, स्वप्नवाराहि मां रक्ष-रक्ष उत्तरदिशं बन्धय-बन्धय, धूम्रवाराहि मां रक्ष-रक्ष सर्वदिशो बन्धय-बन्धय, कुक्कुटवाराहि मां रक्ष-रक्ष अधरदिशं बन्धय-बन्धय, परमेश्वरि मां रक्ष-रक्ष सर्वरोगान् विनाशय-विनाशय, सर्व-शत्रु-पलायनाय सर्व-शत्रु-कुलं मूलतो नाशय-नाशय, शत्रूणां राज्यवश्यं स्त्रीवश्यं जनवश्यं दह-दह पच-पच सकल-लोक-स्तम्भिनि शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय स्तम्भनमोहनाऽऽकर्षणाय सर्व-रिपूणाम् उच्चाटनं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं क्लीं ऐं वाक्-प्रदानाय क्लीं जगत्त्रयवशीकरणाय सौः सर्वमनः क्षोभणाय श्रीं महा-सम्पत्-प्रदानाय ग्लौं सकल-भूमण्डलाधिपत्य-प्रदानाय दां चिरंजीवने । ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लां क्लीं क्लूं सौः ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय राजस्तम्भिनि क्रों क्रों छ्रीं छ्रीं सर्वजन संमोहिनि सभास्तंभिनि स्त्रां स्त्रीं सर्व-मुख-रञ्जिनि मुखं बन्धय-बन्धय ज्वल-ज्वल हंस-हंस राजहंस प्रतिलोम इहलोक परलोक परद्वार राजद्वार क्लीं क्लूं घ्रीं रुं क्रों क्लीं खाणि खाणि , जिह्वां बन्धयामि सकलजन सर्वेन्द्रियाणि बन्धयामि नागाश्व मृग सर्प विहंगम वृश्चिकादि विषं निर्विषं कुरु-कुरु शैलकानन महीं मर्दय मर्दय शत्रूनोत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय महोग्रभूतजातं बन्धयामि बन्धयामि अतीतानागतं सत्यं कथय-कथय लक्ष्मीं प्रददामि-प्रददामि त्वम् इह आगच्छ आगच्छ अत्रैव निवासं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं बगले परमेश्वरि हुं फट् स्वाहा ।
विशेषः- मूलमन्त्रवता कुर्याद् विद्यां न दर्शयेत् क्वचित् ।
विपत्तौ स्वप्नकाले च विद्यां स्तम्भिनीं दर्शयेत् ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
प्रकाशनात् सिद्धहानिः स्याद् वश्यं मरणं भवेत् ।
दद्यात् शानताय सत्याय कौलाचारपरायणः ।
दुर्गाभक्ताय शैवाय मृत्युञ्जयरताय च ।
तस्मै दद्याद् इमं खड्गं स शिवो नात्र संशयः ।
अशाक्ताय च नो दद्याद् दीक्षाहीनाय वै तथा ।
न दर्शयेद् इमं खड्गम् इत्याज्ञा शंकरस्य च ।।
।। श्रीविष्णुयामले बगलाखड्गमालामन्त्रः ।।भगवती बगला सुधा-समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय मण्डप में रत्नवेदी पर रत्नमय सिंहासन पर विराजती हैं। पीतवर्णा होने के कारण ये पीत रंग के ही वस्त्र, आभूषण व माला धारण किये हुए हैं।इनके एक हाथ में शत्रु की जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्गर है। व्यष्टि रूप में शत्रुओं का नाश करने वाली और समष्टि रूप में परम ईश्वर की सहांर-इच्छा की अधिस्ठात्री शक्ति बगला है।
श्री प्रजापति ने बगला उपासना वैदिक रीती से की और वे सृस्टि की संरचना करने में सफल हुए। श्री प्रजापति ने इस विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया। सनत्कुमार ने इसका उपदेश श्री नारद को और श्री नारद ने सांख्यायन परमहंस को दिया, जिन्होंने छत्तीस पटलों में “बगला तंत्र” ग्रन्थ की रचना की। “स्वतंत्र तंत्र” के अनुसार भगवान् विष्णु इस विद्या के उपासक हुए। फिर श्री परशुराम जी और आचार्य द्रोण इस विद्या के उपासक हुए। आचार्य द्रोण ने यह विद्या परशुराम जी से ग्रहण की।
श्री बगला महाविद्या ऊर्ध्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैं, जिसमें स्त्री (शक्ति) भोग्या नहीं बल्कि पूज्या है। बगला महाविद्या “श्री कुल” से सम्बंधित हैं और अवगत हो कि श्रीकुल की सभी महाविद्याओं की उपासना अत्यंत सावधानी पूर्वक गुरु के मार्गदर्शन में शुचिता बनाते हुए, इन्द्रिय निग्रह पूर्वक करनी चाहिए। फिर बगला शक्ति तो अत्यंत तेजपूर्ण शक्ति हैं, जिनका उद्भव ही स्तम्भन हेतु हुआ था। इस विद्या के प्रभाव से ही महर्षि च्यवन ने इंद्र के वज्र को स्तंभित कर दिया था। श्रीमद् गोविंदपाद की समाधि में विघ्न डालने से रोकने के लिए आचार्य श्री शंकर ने रेवा नदी का स्तम्भन इसी महाविद्या के प्रभाव से किया था। महामुनि श्री निम्बार्क ने कस्सी ब्राह्मण को इसी विद्या के प्रभाव से नीम के वृक्ष पर, सूर्यदेव का दर्शन कराया था। श्री बगलामुखी को “ब्रह्मास्त्र विद्या” के नामे से भी जाना जाता है। शत्रुओं का दमन और विघ्नों का शमन करने में विश्व में इनके समकक्ष कोई अन्य देवता नहीं है
भगवती बगलामुखी को स्तम्भन की देवी कहा गया है। स्तम्भनकारिणी शक्ति नाम रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थो की स्थिति का आधार पृथ्वी के रूप में शक्ति ही है, और बगलामुखी उसी स्तम्भन शक्ति की अधिस्ठात्री देवी हैं। इसी स्तम्भन शक्ति से ही सूर्यमण्डल स्थित है, सभी लोक इसी शक्ति के प्रभाव से ही स्तंभित है। अतः साधक गण को चाहिये कि ऐसी महाविद्या कि साधना सही रीति व विधानपूर्वक ही करें।
अब हम साधकगण को इस महाविद्या के विषय में कुछ और जानकारी देना आवश्यक समझते है, जो साधक इस साधना को पूर्ण कर, सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें इन तथ्यो की जानकारी होना अति आवश्यक है।
1 ) कुल : – महाविद्या बगलामुखी “श्री कुल” से सम्बंधित है।
2 ) नाम : – बगलामुखी, पीताम्बरा , बगला , वल्गामुखी , वगलामुखी , ब्रह्मास्त्र विद्या
3 ) कुल्लुका : – मंत्र जाप से पूर्व उस मंत्र कि कुल्लुका का न्यास सिर में किया जाता है। इस विद्या की कुल्लुका “ॐ हूं छ्रौम्” (OM HOOM Chraum)
4) महासेतु : – साधन काल में जप से पूर्व ‘महासेतु’ का जप किया जाता है। ऐसा करने से लाभ यह होता है कि साधक प्रत्येक समय, प्रत्येक स्थिति में जप कर सकता है। इस महाविद्या का महासेतु “स्त्रीं” (Streem) है। इसका जाप कंठ स्थित विशुद्धि चक्र में दस बार किया जाता है।
5) कवचसेतु :- इसे मंत्रसेतु भी कहा जाता है। जप प्रारम्भ करने से पूर्व इसका जप एक हजार बार किया जाता है। ब्राह्मण व छत्रियों के लिए “प्रणव “, वैश्यों के लिए “फट” तथा शूद्रों के लिए “ह्रीं” कवचसेतु है।
6 ) निर्वाण :- “ह्रूं ह्रीं श्रीं” (Hroom Hreem Shreem) से सम्पुटित मूल मंत्र का जाप ही इसकी निर्वाण विद्या है। इसकी दूसरी विधि यह है कि पहले प्रणव कर, अ , आ , आदि स्वर तथा क, ख , आदि व्यंजन पढ़कर मूल मंत्र पढ़ें और अंत में “ऐं” लगाएं और फिर विलोम गति से पुनरावृत्ति करें।
7 ) बंधन :- किसी विपरीत या आसुरी बाधा को रोकने के लिए इस मंत्र का एक हजार बार जाप किया जाता है। मंत्र इस प्रकार है ” ऐं ह्रीं ह्रीं ऐं ” (Aim Hreem Hreem Aim)
8) मुद्रा :- इस विद्या में योनि मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।
9) प्राणायाम : – साधना से पूर्व दो मूल मंत्रो से रेचक, चार मूल मंत्रो से पूरक तथा दो मूल मंत्रो से कुम्भक करना चाहिए। दो मूल मंत्रो से रेचक, आठ मूल मंत्रो से पूरक तथा चार मूल मंत्रो से कुम्भक करना और भी अधिक लाभ कारी है।
10 ) दीपन :- दीपक जलने से जैसे रोशनी हो जाती है, उसी प्रकार दीपन से मंत्र प्रकाशवान हो जाता है। दीपन करने हेतु मूल मंत्र को योनि बीज ” ईं ” ( EEM ) से संपुटित कर सात बार जप करें
11) जीवन अथवा प्राण योग : – बिना प्राण अथवा जीवन के मन्त्र निष्क्रिय होता है, अतः मूल मन्त्र के आदि और अन्त में माया बीज “ह्रीं” (Hreem) से संपुट लगाकर सात बार जप करें ।
12 ) मुख शोधन : – हमारी जिह्वा अशुद्ध रहती है, जिस कारण उससे जप करने पर लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। अतः “ऐं ह्रीं ऐं ” मंत्र से दस बार जाप कर मुखशोधन करें
13 ) मध्य दृस्टि : – साधना के लिए मध्य दृस्टि आवश्यक है। अतः मूल मंत्र के प्रत्येक अक्षर के आगे पीछे “यं” (Yam) बीज का अवगुण्ठन कर मूल मंत्र का पाँच बार जप करना चाहिए।
14 ) शापोद्धार : – मूल मंत्र के जपने से पूर्व दस बार इस मंत्र का जप करें –
” ॐ हलीं बगले ! रूद्र शापं विमोचय विमोचय ॐ ह्लीं स्वाहा ”
(OM Hleem Bagale ! Rudra Shaapam Vimochaya Vimochaya OM Hleem Swaahaa )
15 ) उत्कीलन : – मूल मंत्र के आरम्भ में ” ॐ ह्रीं स्वाहा ” मंत्र का दस बार जप करें।
16 ) आचार :- इस विद्या के दोनों आचार हैं, वाम भी और दक्षिण भी ।
17 ) साधना में सिद्धि प्राप्त न होने पर उपाय : – कभी कभी ऐसा देखने में आता हैं कि बार बार साधना करने पर भी सफलता हाथ नहीं आती है। इसके लिए आप निम्न वर्णित उपाय करें –
a) कर्पूर, रोली, खास और चन्दन की स्याही से, अनार की कलम से भोजपत्र पर वायु बीज “यं” (Yam) से मूल मंत्र को अवगुण्ठित कर, उसका षोडशोपचार पूजन करें। निश्चय ही सफलता मिलेगी।
b) सरस्वती बीज “ऐं” (Aim) से मूल मंत्र को संपुटित कर एक हजार जप करें।
c) भोजपत्र पर गौदुग्ध से मूल मंत्र लिखकर उसे दाहिनी भुजा पर बांध लें। साथ ही मूल मंत्र को “स्त्रीं” (Steem) से सम्पुटित कर उसका एक हजार जप करें
18 ) विशेष : – गंध,पुष्प, आभूषण, भगवती के सामने रखें।
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