भगवान शिव के ये सूत्र, जो हार को भी बदल देते हैं जीत में...
*ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र * 9415087711
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भगवान शिव से हमें कई बातें सीखने को मिलती हैं...
यूं तो हिंदू धर्म के देवी देवताओं की कथाओं को पढ़ने से हमें जीवन के कई सूत्र या यूं कहें मैनेजमेंट के गुण मिलते हैं। लेकिन आज भगवान शिव का प्रमुख पर्व महाशिवरात्रि है, ऐसे में आज हम भगवान शिव के उन सूत्रों की बात करते हैं, जो जीवन में अति आवश्यक हैं और जिनकी मदद से हर कोई अपना जीवन सफल बना सकता है।
एक ओर जहां भगवान शिव की पूजा सबसे आसान हैं, वहीं वे देवाधिदेव महादेव भी हैं। जितने सरल शिव हैं, उतना ही विकट उनका स्वरूप है, जिसका कोई मेल ही नहीं है। गले में सर्प, कानों में बिच्छू के कुंडल, तन पर बाघंबर, सिर पर त्रिनेत्र, हाथों में डमरू, त्रिशूल और वाहन नंदी। भगवान शिव के इस अद्भुत स्वरूप से हमें कई बातें सीखने को मिलती हैं।
कुल मिलाकर यह कहें कि यदि आपको जीने की कला सीखनी हो तो आप भगवान शिव के दर्शन को अपने जीवन में उतार सकते हैं। शिव, बुराई और अज्ञानता के साथ ही अहंकार को नष्ट करने की सीख देते हैं। उनके पवित्र शरीर पर स्थित हर पवित्र चिह्न जीवन जीने की शैली के लिए कुछ न कुछ सीख देता है।
पहली जिम्मेदारी...
पूरी दुनिया को श्रेय और कामयाबी का लालच है और हर कोई जीत का श्रेय पाना चाहता है, लेकिन शिव हमें सिखाते हैं कि टीम लीडर को जीत से पहले मुसीबत की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। प्रोफेशनल लाइफ हो या पर्सनल टीम का मुखिया हमेशा सबसे आगे जिम्मेदारी लेने के लिए खड़ा होता है। समुद्र मंथन की कथा हमें यही संदेश देती है। जब विष निकला तब शिव आगे आकर उसका सामना करने की जिम्मेदारी लेते हैं, लेकिन जब अमृत निकलता है, तो वे पहले देवताओं को देते हैं।
: भोलेनाथ की तीसरी आंख, जिंदगी में आने वाली हर समस्या के पहलुओं पर ग़ौर करने की सीख देती है। कभी-कभी जो हम देखते हैं, वो गलत भी हो सकता है इसलिए हमें इसकी जांच अपने विवेक के जरिए करनी चाहिए। वहीं शंकर जी का नीला कंठ (नीली गर्दन) क्रोध को पीने की सीख देती है। कहा भी जाता है क्रोध बुद्धि को नष्ट कर देता है। यह एक चुनौती की तरह आता है जिसे आप अपने धैर्य से अपनी वाणी से बाहर न आने दें।
इसके अलावा भगवान शिव के केश, एकता के प्रतीक हैं। उनके केश जूड़े के रूप में एकजुट रहते हैं। जो कि जीवन में एकता का पाठ पढ़ाते हैं।
कोई लालच या मुश्किल रोक नहीं सकती
शिव के सिर पर गंगाजी का होना अज्ञान को समाप्त कर देने का प्रतीक हैं। यह हमेशा हर काम की पहल करते हुए, पहले करने की सीख देती हैं। वहीं दूसरी ओर शिव की एक कथा कामदेव को भस्म करने की भी है, जब वे शिव की साधना में विघ्न डालने की कोशिश करते हैं।
यह कथा हमें सिखाती है, कि जब लक्ष्य सामने हो तो कोई भी लालच या मुश्किल आपके रास्ते की बाधा नहीं बननी चाहिए। खुद के और अपने लक्ष्य के बीच किसी भी स्थिति को ना आने दें। खुद को मंजिल के लिए इतना मजबूत करें, कि कोई भी आपके रास्ते की बाधा ना बन सकें।
: शंकर जी का त्रिशूल मस्तिष्क पर नियंत्रण करने की सीख देता है। मस्तिष्क पर नियंत्रण करने के बाद आप अच्छे-बुरे की पहचान और अहंकार से दूरी बनाए रख सकते हैं। ऐसा करने पर आपका हर कार्य सफल होगा। साथ ही भोलेनाथ का कमंडल शरीर की हर उस बुराई को खत्म कर देने का प्रतीक है, जो नकारात्मकता से पैदा होती है। इससे छुटकारा पाने की सीख कमंडल देता है।
प्रकृति की शरण
जीवन में जितनी जरूरी कामयाबी है उतनी ही जरूरी शांति भी है, शिव दिखावों से दूर सादा जीवन जीते हैं। प्रकृति के नजदीक रहते हैं और यही बात उन्हें दूसरे सभी देवी-देवताओं से अलग बनाती है। शिव का रूप संदेश देता है, कि हमेशा जीवन की भागदौड़ में ही ना लगे रहें, बल्कि समय निकाल कर प्रकृति की शरण में जायें। ताकि आपको हमेशा सकारात्मक ऊर्जा मिलती रहे।
: भगवान शिव की ध्यान अवस्था स्वच्छता का प्रतीक मानी गई है। ध्यान करने से हर मनुष्य अपने मन और मस्तिष्क को स्वस्थ्य और स्वच्छ रख सकता है। इसके अलावा भगवान शिव सदैव ही एकांत एवं निर्जन स्थान पर एकाग्र भाव से तपश्चर्या और ध्यान में लीन रहते हैं। इससे व्यक्ति सांसारिक भावों से दूर हो जाता है। इसके कारण संसारजनित विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं अहंकार से मुक्ति मिलती है।
धैर्य रखें और हमेशा शांत रहें
शिव की चर्चित कथाओं में मां काली की कथा भी है, जब सभी देवता मिलकर भी काली का क्रोध शांत नहीं कर सके, तब शिव ने ही उनके क्रोध को शांत किया था। यह कथा सिखाती है, कि हालात कोई भी हो अगर आप मन से शांत रहें, धैर्य रखें तो मुश्किल से मुश्किल हालात पर भी जीत हासिल कर सकते हैं।
: भोलेनाथ के शरीर पर स्थित भभूत, शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। ठीक इसी तरह जिंदगी में हमें किसी तरह का भ्रम नहीं होना चाहिए। ऐसे में हमारे शरीर का तापमान क्रोध जैसे अन्य मानसिक विकारों में नहीं आएगा। वह नियंत्रित रहेगा। हमें जीवन में जुनून और प्रतिबद्धता अपनानी चाहिए। ऐसे में हम हर समस्या का हल जल्द ही निकाल सकते हैं। वहीं शिव का डमरू कहता है कि अपने शरीर को डमरू की ध्वनि की तरह मुक्त कर दो। इससे सारी इच्छाएं, मुक्त हो जाएंगी। इस तरह हम कई मनोविकारों से भी मुक्त हो सकते हैं।
नहीं करें भेद
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शिव अकेले ऐसे देवता हैं, जिनका सम्मान देवता और राक्षस दोनों समान रूप से करते हैं। यानि सब उनकी बात मानतें हैं। वहीं वे भी इनमें भेद नहीं करते हैं और कर्म आधारित फल प्रदान करते हैं। अपने व्यक्त्वि को ऐसा बनायें कि सब जगह आपकी स्वीकारिता हो। जब आप कोई बात करें, तो वो इतनी सही हो कि, पक्ष के साथ विपक्ष के लोग भी उसे नकार ना सकें।
: भोलेनाथ के गले में सुशोभित सांप कहता है जिंदगी में शारीरिक और मानसिक रूप से स्वतंत्र होना चाहिए यानी आलस्य को त्याग देना चाहिए। और किसी भी तरह का अहंकार मन में नहीं पालना चाहिए।
*ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र * 9415087711
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