सुख सौभाग्य दायक शिव पूजन के मंत्र एवं अभिषेक विधि 〰️〰️🌼 jyotishacharya Dr Umashankar Mishra〰️〰️🌼〰️〰️🌼 Siddhivinayak Jyotish AVN Vastu Anusandhan Kendra Vibhav khand 2 Gomti Nagar AVN vedraj complex purana RTO Chauraha latouche Road Lucknow〰️〰️🌼 9415 087 711 923 5722 996〰️〰️🌼〰️〰️ शिव पुराण संहिता में कहा है कि सर्वज्ञ शिव ने संपूर्ण देहधारियों के सारे मनोरथों की सिद्धि के लिए इस 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का प्रतिपादन किया है। यह आदि षड़क्षर मंत्र संपूर्ण विद्याओं का बीज है। जैसे वट बीज में महान वृक्ष छिपा हुआ है, उसी प्रकार अत्यंत सूक्ष्म होने पर भी यह मंत्र महान अर्थ से परिपूर्ण है। भगवान शिव को नमस्कार करने का मंत्र 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शन्कराय च मयस्करय च नमः शिवाय च शिवतराय च।। ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिर्ब्रम्हणोधपतिर्ब्रम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।। तत्पुरषाय विद्म्हे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।। शनि या राहु आदि ग्रह पीड़ा शांति के लिए शिव गायत्री मंत्र 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ॐ तत्पुरुषाय विद्महे। महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।। महामृत्युंजय प्रभावशाली मंत्र 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। सः जूं ह्रौं ॐ ॥ इस मंत्र से शिव पूजा कर दूर करें पैसों की परेशानी 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ मन्दारमालाङ्कुलितालकायै कपालमालांकितशेखराय। दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।। श्री अखण्डानन्दबोधाय शोकसन्तापहा​रिणे। सच्चिदानन्दस्वरूपाय शंकराय नमो नम:॥ शास्त्रों में मनोरथ पूर्ति व संकट मुक्ति के लिए अलग-अलग तरह की धारा से शिव का अभिषेक करना शुभ बताया गया है। अलग-अलग धाराओं से शिव अभिषेक का फल- जब किसी का मन बेचैन हो, निराशा से भरा हो, परिवार में कलह हो रहा हो, अनचाहे दु:ख और कष्ट मिल रहे हो तब शिव लिंग पर दूध की धारा चढ़ाना सबसे अच्छा उपाय है। इसमें भी शिव मंत्रों का उच्चारण करते रहना चाहिए। 👉 वंश की वृद्धि के लिए शिवलिंग पर शिव सहस्त्रनाम बोलकर घी की धारा अर्पित करें। 👉 शिव पर जलधारा से अभिषेक मन की शांति के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। 👉 भौतिक सुखों को पाने के लिए इत्र की धारा से शिवलिंग का अभिषेक करें। 👉 बीमारियों से छुटकारे के लिए शहद की धारा से शिव पूजा करें। 👉 गन्ने के रस की धारा से अभिषेक करने पर हर सुख और आनंद मिलता है। 👉 सभी धाराओं से श्रेष्ठ है गंगाजल की धारा। शिव को गंगाधर कहा जाता है। शिव को गंगा की धार बहुत प्रिय है। गंगा जल से शिव अभिषेक करने पर चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है। इससे अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मन्त्र जरुर बोलना चाहिए। शिव पंचाक्षर स्त्रोत 〰️〰️🌼🌼〰️〰️ नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय| नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥ हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं। हे (तीन नेत्रों वाले) त्रिलोचन आप भष्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं। अम्बर को वस्त्र सामान धारण करने वाले दिग्म्बर शिव, आपके न् अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमस्कार। मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे "म" काराय नमः शिवायः॥ चन्दन से अलंकृत, एवं गंगा की धारा द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी महेश्वर आप सदा मन्दार पर्वत एवं बहुदा अन्य स्रोतों से प्राप्त्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं। हे म् स्वरूप धारी शिव, आपको नमन है। शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवायः॥ हे धर्म ध्वज धारी, नीलकण्ठ, शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था। माँ गौरी के कमल मुख को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले शिव, आपको नमस्कार है। वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय। चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवायः॥ देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वार पुजित देवाधिदेव! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र सामन हैं। हे शिव आपके व् अक्षर द्वारा विदित स्वरूप कोअ नमस्कार है। यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय| दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥ हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं। हे दिव्य अम्बर धारी शिव आपके शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को नमस्कार है। पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ| शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥ जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान करता है वह शिव के पून्य लोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है। लिंगाष्टकम 〰️🌼〰️ ब्रह्ममुरारिसुरार्चित लिगं निर्मलभाषितशोभित लिंग | जन्मजदुःखविनाशक लिंग तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥ मैं उन सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ जिनकी ब्रह्मा, विष्णु एवं देवताओं द्वारा अर्चना की जाति है, जो सदैव निर्मल भाषाओं द्वारा पुजित हैं तथा जो लिंग जन्म-मृत्यू के चक्र का विनाश करता है (मोक्ष प्रदान करता है) देवमुनिप्रवरार्चित लिंगं, कामदहं करुणाकर लिंगं| रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥ देवताओं और मुनियों द्वारा पुजित लिंग, जो काम का दमन करता है तथा करूणामयं शिव का स्वरूप है, जिसने रावण के अभिमान का भी नाश किया, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ। सर्वसुगंन्धिसुलेपित लिंगं, बुद्धिविवर्धनकारण लिंगं। सिद्धसुरासुरवन्दित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥ सभी प्रकार के सुगंधित पदार्थों द्वारा सुलेपित लिंग, जो कि बुद्धि का विकास करने वाल है तथा, सिद्ध- सुर (देवताओं) एवं असुरों सबों के लिए वन्दित है, उन सदाशिव लिंक को प्रणाम। कनकमहामणिभूषित लिंगं, फणिपतिवेष्टितशोभित लिंगं। दक्षसुयज्ञविनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥ स्वर्ण एवं महामणियों से विभूषित, एवं सर्पों के स्वामी से शोभित सदाशिव लिंग जो कि दक्ष के यज्ञ का विनाश करने वाल है ; आपको प्रणाम। कुंकुमचंदनलेपित लिंगं, पंङ्कजहारसुशोभित लिंगं। संञ्चितपापविनाशिन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥ कुंकुम एवं चन्दन से शोभायमान, कमल हार से शोभायमान सदाशिव लिंग जो कि सारे संञ्चित पापों से मुक्ति प्रदान करने वाला है, उन सदाशिव लिंग को प्रणाम। देवगणार्चितसेवित लिंग, भवैर्भक्तिभिरेवच लिंगं। दिनकरकोटिप्रभाकर लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥ आप सदाशिव लिंग को प्रणाम जो कि सभी देवों एवं गणों द्वारा शुद्ध विचार एवं भावों द्वारा पुजित है तथा जो करोडों सूर्य सामान प्रकाशित हैं। अष्टदलोपरिवेष्टित लिंगं, सर्वसमुद्भवकारण लिंगं| अष्टदरिद्रविनाशित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥ आठों दलों में मान्य, एवं आठों प्रकार के दरिद्रता का नाश करने वाले सदाशिव लिंग सभी प्रकार के सृजन के परम कारण हैं आप सदाशिव लिंग को प्रणाम। सुरगुरूसुरवरपूजित लिंगं, सुरवनपुष्पसदार्चित लिंगं। परात्परं परमात्मक लिंगं, ततप्रणमामि सदाशिव लिंगं।। दवताओं एवं देव गुरू द्वारा स्वर्ग के वाटिका के पुष्पों से पुजित परमात्मा स्वरूप जो कि सभी व्याख्याओं से परे है उन सदाशिव लिंग को प्रणाम। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️महादेव की बिल्व पत्रों से पूजा 〰〰🌼〰🌼〰🌼〰〰 त्रिदेवों में भगवान शिव को सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाला माना गया है। भगवान शिव को ‘भोलेनाथ’ और ‘औघड़’ माना गया है जिसका तात्पर्य यह है कि वो किसी को बहुत अधिक परेशान नहीं देख सकते और भक्त की थोड़ी सी भी परेशानी उनकी करुणा को जगा देती है। नीलकंठ रूपेण करुणामय भगवान शिव अपने भक्तों की पीड़ा स्वयं पर ले लेते हैं। इसलिए शास्त्रानुसार जो कोई भी भगवान शिव की दिल से पूजा करता है, वह सदैव ही सभी परेशानियों से मुक्त रहता है। ऐसे तो भगवान शिव की पूजा की कई विधियां हैं लेकिन सामान्य रूप से बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग पर केवल जल अर्पण करना भी भोलेनाथ की कृपा दिलाता है। अगर यह क्रिया कुछ मंत्रों के उच्चारण के साथ की जाय, तो भोलेशंकर व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। हर प्रकार की पूजा और मंत्र उच्चारण में 108 का बहुत महत्व है। यहां हम आपको 108 शिव मंत्रों के बारे में बता रहे हैं, किसी भी दिन इन 108 मंत्रों के साथ आप भगवान शिव की पूजा या शिवलिंग पर जलापर्ण करें तो आपकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। सोमवार या श्रावण सोमवार के दिन ऐसा करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम् । त्रिजन्म पापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१॥ त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च अच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः। तव पूजां करिष्यामि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२॥ सर्वत्रैलोक्यकर्तारं सर्वत्रैलोक्यपालनम् । सर्वत्रैलोक्यहर्तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३॥ नागाधिराजवलयं नागहारेण भूषितम् । नागकुण्डलसंयुक्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४॥ अक्षमालाधरं रुद्रं पार्वतीप्रियवल्लभम् । चन्द्रशेखरमीशानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५॥ त्रिलोचनं दशभुजं दुर्गादेहार्धधारिणम् । विभूत्यभ्यर्चितं देवं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६॥ त्रिशूलधारिणं देवं नागाभरणसुन्दरम् । चन्द्रशेखरमीशानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७॥ गङ्गाधराम्बिकानाथं फणिकुण्डलमण्डितम् । कालकालं गिरीशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८॥ शुद्धस्फटिक सङ्काशं शितिकण्ठं कृपानिधिम् । सर्वेश्वरं सदाशान्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९॥ सच्चिदानन्दरूपं च परानन्दमयं शिवम् । वागीश्वरं चिदाकाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०॥ शिपिविष्टं सहस्राक्षं कैलासाचलवासिनम् । हिरण्यबाहुं सेनान्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥११॥ अरुणं वामनं तारं वास्तव्यं चैव वास्तवम् । ज्येष्टं कनिष्ठं गौरीशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१२॥ हरिकेशं सनन्दीशं उच्चैर्घोषं सनातनम् । अघोररूपकं कुम्भं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१३॥ पूर्वजावरजं याम्यं सूक्ष्मं तस्करनायकम् । नीलकण्ठं जघन्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१४॥ सुराश्रयं विषहरं वर्मिणं च वरूधिनम् ी महासेनं महावीरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१५॥ कुमारं कुशलं कूप्यं वदान्यञ्च महारथम् । तौर्यातौर्यं च देव्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१६॥ दशकर्णं ललाटाक्षं पञ्चवक्त्रं सदाशिवम् । अशेषपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१७॥ नीलकण्ठं जगद्वन्द्यं दीननाथं महेश्वरम् । महापापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१८॥ चूडामणीकृतविभुं वलयीकृतवासुकिम् । कैलासवासिनं भीमं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१९॥ कर्पूरकुन्दधवलं नरकार्णवतारकम् । करुणामृतसिन्धुं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२०॥ महादेवं महात्मानं भुजङ्गाधिपकङ्कणम् । महापापहरं देवं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२१॥ भूतेशं खण्डपरशुं वामदेवं पिनाकिनम् । वामे शक्तिधरं श्रेष्ठं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२२॥ फालेक्षणं विरूपाक्षं श्रीकण्ठं भक्तवत्सलम् । नीललोहितखट्वाङ्गं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२३॥ कैलासवासिनं भीमं कठोरं त्रिपुरान्तकम् । वृषाङ्कं वृषभारूढं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२४॥ सामप्रियं सर्वमयं भस्मोद्धूलितविग्रहम् । मृत्युञ्जयं लोकनाथं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२५॥ दारिद्र्यदुःखहरणं रविचन्द्रानलेक्षणम् । मृगपाणिं चन्द्रमौळिं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२६॥ सर्वलोकभयाकारं सर्वलोकैकसाक्षिणम् । निर्मलं निर्गुणाकारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२७॥ सर्वतत्त्वात्मकं साम्बं सर्वतत्त्वविदूरकम् । सर्वतत्त्वस्वरूपं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२८॥ सर्वलोकगुरुं स्थाणुं सर्वलोकवरप्रदम् । सर्वलोकैकनेत्रं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ी२९॥ मन्मथोद्धरणं शैवं भवभर्गं परात्मकम् । कमलाप्रियपूज्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३०॥ तेजोमयं महाभीमं उमेशं भस्मलेपनम् । भवरोगविनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३१॥ स्वर्गापवर्गफलदं रघुनाथवरप्रदम् । नगराजसुताकान्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३२॥ मञ्जीरपादयुगलं शुभलक्षणलक्षितम् । फणिराजविराजं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३३॥ निरामयं निराधारं निस्सङ्गं निष्प्रपञ्चकम् । तेजोरूपं महारौद्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३४॥ सर्वलोकैकपितरं सर्वलोकैकमातरम् । सर्वलोकैकनाथं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३५॥ चित्राम्बरं निराभासं वृषभेश्वरवाहनम् । नीलग्रीवं चतुर्वक्त्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३६॥ रत्नकञ्चुकरत्नेशं रत्नकुण्डलमण्डितम् । नवरत्नकिरीटं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३७॥ दिव्यरत्नाङ्गुलीस्वर्णं कण्ठाभरणभूषितम् । नानारत्नमणिमयं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३८॥ रत्नाङ्गुलीयविलसत्करशाखानखप्रभम् । भक्तमानसगेहं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३९॥ वामाङ्गभागविलसदम्बिकावीक्षणप्रियम् । पुण्डरीकनिभाक्षं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४०॥ सम्पूर्णकामदं सौख्यं भक्तेष्टफलकारणम् । सौभाग्यदं हितकरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४१॥ नानाशास्त्रगुणोपेतं स्फुरन्मङ्गल विग्रहम् । विद्याविभेदरहितं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४२॥ अप्रमेयगुणाधारं वेदकृद्रूपविग्रहम् । धर्माधर्मप्रवृत्तं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४३॥ गौरीविलाससदनं जीवजीवपितामहम् । कल्पान्तभैरवं शुभ्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४४॥ सुखदं सुखनाशं च दुःखदं दुःखनाशनम् । दुःखावतारं भद्रं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४५॥ सुखरूपं रूपनाशं सर्वधर्मफलप्रदम् । अतीन्द्रियं महामायं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४६॥ सर्वपक्षिमृगाकारं सर्वपक्षिमृगाधिपम् । सर्वपक्षिमृगाधारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४७॥ जीवाध्यक्षं जीववन्द्यं जीवजीवनरक्षकम् । जीवकृज्जीवहरणं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४८॥ विश्वात्मानं विश्ववन्द्यं वज्रात्मावज्रहस्तकम् । वज्रेशं वज्रभूषं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४९॥ गणाधिपं गणाध्यक्षं प्रलयानलनाशकम् । जितेन्द्रियं वीरभद्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५०॥ त्र्यम्बकं मृडं शूरं अरिषड्वर्गनाशनम् । दिगम्बरं क्षोभनाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५१॥ कुन्देन्दुशङ्खधवलं भगनेत्रभिदुज्ज्वलम् । कालाग्निरुद्रं सर्वज्ञं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५२॥ कम्बुग्रीवं कम्बुकण्ठं धैर्यदं धैर्यवर्धकम् । शार्दूलचर्मवसनं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५३॥ जगदुत्पत्तिहेतुं च जगत्प्रलयकारणम् । पूर्णानन्दस्वरूपं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५४॥ सर्गकेशं महत्तेजं पुण्यश्रवणकीर्तनम् । ब्रह्माण्डनायकं तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५५॥ मन्दारमूलनिलयं मन्दारकुसुमप्रियम् । बृन्दारकप्रियतरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५६॥ महेन्द्रियं महाबाहुं विश्वासपरिपूरकम् । सुलभासुलभं लभ्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ५७॥ बीजाधारं बीजरूपं निर्बीजं बीजवृद्धिदम् । परेशं बीजनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५८॥ युगाकारं युगाधीशं युगकृद्युगनाशनम् । परेशं बीजनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५९॥ धूर्जटिं पिङ्गलजटं जटामण्डलमण्डितम् । कर्पूरगौरं गौरीशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६०॥ सुरावासं जनावासं योगीशं योगिपुङ्गवम् । योगदं योगिनां सिंहं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६१॥ उत्तमानुत्तमं तत्त्वं अन्धकासुरसूदनम् । भक्तकल्पद्रुमस्तोमं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६२॥ विचित्रमाल्यवसनं दिव्यचन्दनचर्चितम् । विष्णुब्रह्मादि वन्द्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६३॥ कुमारं पितरं देवं श्रितचन्द्रकलानिधिम् । ब्रह्मशत्रुं जगन्मित्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६४॥ लावण्यमधुराकारं करुणारसवारधिम् । भ्रुवोर्मध्ये सहस्रार्चिं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६५॥ जटाधरं पावकाक्षं वृक्षेशं भूमिनायकम् । कामदं सर्वदागम्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६६॥ शिवं शान्तं उमानाथं महाध्यानपरायणम् । ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६७॥ वासुक्युरगहारं च लोकानुग्रहकारणम् । ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६८॥ शशाङ्कधारिणं भर्गं सर्वलोकैकशङ्करम् ी शुद्धं च शाश्वतं नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६९॥ शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणम् । गम्भीरं च वषट्कारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७०॥ भोक्तारं भोजनं भोज्यं जेतारं जितमानसम् ी करणं कारणं जिष्णुं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७१॥ क्षेत्रज्ञं क्षेत्रपालञ्च परार्धैकप्रयोजनम् । व्योमकेशं भीमवेषं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७२॥ भवज्ञं तरुणोपेतं चोरिष्टं यमनाशनम् । हिरण्यगर्भं हेमाङ्गं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७३॥ दक्षं चामुण्डजनकं मोक्षदं मोक्षनायकम् । हिरण्यदं हेमरूपं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७४॥ महाश्मशाननिलयं प्रच्छन्नस्फटिकप्रभम् । वेदास्यं वेदरूपं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७५॥ स्थिरं धर्मं उमानाथं ब्रह्मण्यं चाश्रयं विभुम् ी जगन्निवासं प्रथममेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७६॥ रुद्राक्षमालाभरणं रुद्राक्षप्रियवत्सलम् । रुद्राक्षभक्तसंस्तोममेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७७॥ फणीन्द्रविलसत्कण्ठं भुजङ्गाभरणप्रियम् ी दक्षाध्वरविनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७८॥ नागेन्द्रविलसत्कर्णं महीन्द्रवलयावृतम् । मुनिवन्द्यं मुनिश्रेष्ठमेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७९॥ मृगेन्द्रचर्मवसनं मुनीनामेकजीवनम् । सर्वदेवादिपूज्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८०॥ निधनेशं धनाधीशं अपमृत्युविनाशनम् । लिङ्गमूर्तिमलिङ्गात्मं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८१॥ भक्तकल्याणदं व्यस्तं वेदवेदान्तसंस्तुतम् । कल्पकृत्कल्पनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८२॥ घोरपातकदावाग्निं जन्मकर्मविवर्जितम् । कपालमालाभरणं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८३॥ मातङ्गचर्मवसनं विराड्रूपविदारकम् । विष्णुक्रान्तमनन्तं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८४॥ यज्ञकर्मफलाध्यक्षं यज्ञविघ्नविनाशकम् । यज्ञेशं यज्ञभोक्तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८५॥ कालाधीशं त्रिकालज्ञं दुष्टनिग्रहकारकम् । योगिमानसपूज्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८६॥ महोन्नतमहाकायं महोदरमहाभुजम् । महावक्त्रं महावृद्धं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८७॥ सुनेत्रं सुललाटं च सर्वभीमपराक्रमम् । महेश्वरं शिवतरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।८८॥ समस्तजगदाधारं समस्तगुणसागरम् । सत्यं सत्यगुणोपेतं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ८९॥ माघकृष्णचतुर्दश्यां पूजार्थं च जगद्गुरोः । दुर्लभं सर्वदेवानां एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९०॥ तत्रापि दुर्लभं मन्येत् नभोमासेन्दुवासरे । प्रदोषकाले पूजायां एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९१॥ तटाकं धननिक्षेपं ब्रह्मस्थाप्यं शिवालयम् कोटिकन्यामहादानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९२॥ दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम् । अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।९३॥ तुलसीबिल्वनिर्गुण्डी जम्बीरामलकं तथा । पञ्चबिल्वमिति ख्यातं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९४॥ अखण्डबिल्वपत्रैश्च पूजयेन्नन्दिकेश्वरम् । मुच्यते सर्वपापेभ्यः एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९५॥ सालङ्कृता शतावृत्ता कन्याकोटिसहस्रकम् । साम्राज्यपृथ्वीदानं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९६॥ दन्त्यश्वकोटिदानानि अश्वमेधसहस्रकम् । सवत्सधेनुदानानि एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।९७॥ चतुर्वेदसहस्राणि भारतादिपुराणकम् । साम्राज्यपृथ्वीदानं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९८॥ सर्वरत्नमयं मेरुं काञ्चनं दिव्यवस्त्रकम् । तुलाभागं शतावर्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९९॥ अष्टोत्तरश्शतं बिल्वं योऽर्चयेल्लिङ्गमस्तके । अधर्वोक्तं अधेभ्यस्तु एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१००॥ काशीक्षेत्रनिवासं च कालभैरवदर्शनम् । अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।१०१॥ अष्टोत्तरशतश्लोकैः स्तोत्राद्यैः पूजयेद्यथा । त्रिसन्ध्यं मोक्षमाप्नोति एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०२॥ दन्तिकोटिसहस्राणां भूः हिरण्यसहस्रकम् सर्वक्रतुमयं पुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।१०३॥ पुत्रपौत्रादिकं भोगं भुक्त्वा चात्र यथेप्सितम् । अन्ते च शिवसायुज्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०४॥ विप्रकोटिसहस्राणां वित्तदानाच्च यत्फलम् । तत्फलं प्राप्नुयात्सत्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०५॥ त्वन्नामकीर्तनं तत्त्वं तवपादाम्बु यः पिबेत् जीवन्मुक्तोभवेन्नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०६॥ अनेकदानफलदं अनन्तसुकृतादिकम् । तीर्थयात्राखिलं पुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०७॥ त्वं मां पालय सर्वत्र पदध्यानकृतं तव । भवनं शाङ्करं नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०८॥ 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰#शिवसेसम्बंधित_पर्व #सावन #महाशिवरात्रिऔरपूर्णिमाकावैज्ञानिकसचतथाज्यामितीयज्योतिषमेंसम्बन्ध- महाशिवरात्रि पर्व एक प्रकार से खगोलीय ग्रहों का घटनाक्रम है , जो प्रत्येक पूर्णिमा को घटित होता है , महाशिवरात्रि को इसकी स्थिति और प्रबल हो जाती है क्योंकि समयकाल की प्रबलता खगोलीय पृष्ठभूमि पर और प्रबल हो जाती है। आइए समझते है कि कैसे जीवन मे इस पूर्णिमा या अमावस्या का उपयोग इस मानव जीवन मे कर सकते है, इसके लिए सर्वप्रथम कुछ मानवीय ढांचे अर्थात #पंचतत्व से बने शरीर के बारे में समझते है , हमे ज्ञात है कि मनुष्य के शरीर मे लगभग #75% जल है, और सभी ग्रहों पर एक विशेष प्रकार का गुरुत्वाकर्षण है , तो पूर्णिमा के दिन पृथ्वी और उसके निकट स्थित ग्रह चन्द्रमा (पृथ्वी का उपग्रह) के मध्य की ज्यामितीय संरचना ऐसी होती है कि वह जल को गुरुत्वाकर्षण बल से ऊपर की ओर खींचता है , इसका अनुभव करने के लिए मनुष्य को पूर्णिमा के दिन समुद्र के किनारे बैठना चाहिए और अनुभव करना चाहिए कि चन्द्रमा के इसी गुण के कारण समुद्र की लहरें कितनी ऊपर तक उठती है। चूंकि ज्योतिष में चन्द्रमा जल तत्व है तो यह पूर्णिमा के दिन तरल पदार्थों पर खुले आसमान के नीचे विशेष प्रभाव डालता है, प्रभावी यह अन्य पर भी होता है परन्तु जल तत्व पर अधिक रूप से लागू होता है। अब चूंकि मनुष्य के शरीर में #जल_तत्व की प्रतिशतता अधिक है तो यह मनुष्य पर विशेष ज्यामितीय से असर डालता है। इसके लिए आवश्यक है व्यक्ति पूर्णिमा के दिन अधिक समय स्थिर आसन में बैठकर बिताए या जागकर बिताए और प्रसन्न रहे , क्योंकि यह पूर्णतयः बुरा असर नही डालता बल्कि मानव शरीर मे जो गुण वर्तमान में विद्यमान है उसे पूर्णिमा के दिन बढा देता है । तो बेहतर है प्रसन्न रहे वैदिक क्रियायों को सम्पन्न करे, जिससे जीवन की असीम सम्भावनाओ को #अवसर में बदल सके। अब बात करते है ज्योतिष गणना पर तो एक व्यक्ति जिसकी कुंडली मे चन्द्रमा 6,8,/6,12/8,12 से सम्बन्ध रखता है तो ऐसे जातक पूर्णिमा या अमावस्या के दिन सामान्यतः विशेष बदलाव महसूस करते है, यह बदलाव बुरे ही हो यह आवश्यक नही क्योंकि वो अन्य ग्रहों की स्थितियों और #महादशा पर निर्भर करता है, परन्तु विशेष अनुभव अवश्य करते होंगे , यदि गौर नही किया है तो अब करिएगा। अब यदि किसी जातक की दशा में ग्रहों की स्थिति उत्तम नही है तो , #पूर्णिमा के दिन वह अत्यधिक समस्या से गुजरेगा