आषाढ़ गुप्त नवरात्रि विशेष 〰️〰️🌼 Jyotish Aacharya Dr Umashankar Mishra〰️〰️🌼 9415 087 711 923 5722 996〰️〰️ आषाढ़ मास में मनाई जाने वाली गुप्त नवरात्रि इस बार प्रतिपदा 11 जुलाई से शुरू होंगी और 18 जुलाई तक रहेगी। इस तरह नवरात्रि का पर्व 08 दिन मनाया जाएगा। पुराणों की मान्यता के अनुसार गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गे की 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है। वर्ष में 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें दो प्रत्यक्ष और दो अप्रत्यक्ष। बता दें, अप्रत्यक्ष नवरात्रि को ही गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। प्रत्यक्ष तौर पर चैत्र और आश्विन की महीने में मनाई जाती हैं, और अप्रत्यक्ष यानी कि गुप्त आषाढ़ और माघ मास में मनाई जाती हैं। गुप्त नवरात्रि में साधक गुप्त साधनाएं करने शमशान व गुप्त स्थान पर जाते हैं। नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं। सभी नवरात्रों में माता के सभी 51पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं। माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजिनक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है । आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है । वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है । ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है। जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते “सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित: । मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: ॥” प्रत्यक्ष फल देते हैं गुप्त नवरात्र 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ गुप्त नवरात्र में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी । इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्रों में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुलदेवी निकुम्बाला की साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है…गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रों से एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है एक समय ऋषि श्रृंगी भक्त जनों को दर्शन दे रहे थे अचानक भीड़ से एक स्त्री निकल कर आई और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं। जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती मेरा पति मांसाहारी हैं, जुआरी है । लेकिन मैं मां दुर्गा कि सेवा करना चाहती हूं। उनकी भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूं। ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं । जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है प्रकट नवरात्रों में नौ देवियों की उपासना हाती है और गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है । इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है । यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं । लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती । उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्र की पूजा की मां प्रसन्न हुई और उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा, घर में सुख शांति आ गई । पति सन्मार्ग पर आ गया और जीवन माता की कृपा से खिल उठा । यदि आप भी एक या कई तरह के दुर्व्यसनों से ग्रस्त हैं और आपकी इच्छा है कि माता की कृपा से जीवन में सुख समृद्धि आए तो गुप्त नवरात्र की साधना अवश्य करें । तंत्र और शाक्त मतावलंबी साधना के दृष्टि से गुप्त नवरात्रों के कालखंड को बहुत सिद्धिदायी मानते हैं। मां वैष्णो देवी, पराम्बा देवी और कामाख्या देवी का का अहम् पर्व माना जाता है। हिंगलाज देवी की सिद्धि के लिए भी इस समय को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ ने बहुत प्रयास किए लेकिन उनके हाथ सिद्धि नहीं लगी । वृहद काल गणना और ध्यान की स्थिति में उन्हें यह ज्ञान हुआ कि केवल गुप्त नवरात्रों में शक्ति के इन स्वरूपों को सिद्ध किया जा सकता है। गुप्त नवरात्रों में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी । इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्र में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुल देवी निकुम्बाला कि साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है मेघनाद ने ऐसा ही किया और शक्तियां हासिल की राम, रावण युद्ध के समय केवल मेघनाद ने ही भगवान राम सहित लक्ष्मण जी को नागपाश मे बांध कर मृत्यु के द्वार तक पहुंचा दिया था ऐसी मान्यता है कि यदि नास्तिक भी परिहासवश इस समय मंत्र साधना कर ले तो उसका भी फल सफलता के रूप में अवश्य ही मिलता है । यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है यदि आप मंत्र साधना, शक्ति साधना करना चाहते हैं और काम-काज की उलझनों के कारण साधना के नियमों का पालन नहीं कर पाते तो यह समय आपके लिए माता की कृपा ले कर आता है गुप्त नवरात्रों में साधना के लिए आवश्यक न्यूनतम नियमों का पालन करते हुए मां शक्ति की मंत्र साधना कीजिए । गुप्त नवरात्र की साधना सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं गुप्त नवरात्र के बारे में यह कहा जाता है कि इस कालखंड में की गई साधना निश्चित ही फलवती होती है। इस समय की जाने वाली साधना की गुप्त बनाए रखना बहुत आवश्यक है। अपना मंत्र और देवी का स्वरुप गुप्त बनाए रखें। गुप्त नवरात्र में शक्ति साधना का संपादन आसानी से घर में ही किया जा सकता है। इस महाविद्याओं की साधना के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है गुप्त व चामत्कारिक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है। धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्र देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है। दरअसल इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता है। आयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है नवरात्र के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्र में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है। देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है । यह दमन या अंत होता है शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं । यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में जाप शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है सभी’नवरात्र’ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप और उपवास का प्रतीक है- ‘नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते’ । देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं। नवरात्र के नौ दिनों तक समूचा परिवेश श्रद्धा व भक्ति, संगीत के रंग से सराबोर हो उठता है। धार्मिक आस्था के साथ नवरात्र भक्तों को एकता, सौहार्द, भाईचारे के सूत्र में बांधकर उनमें सद्भावना पैदा करता है शाक्त ग्रंथो में गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही माहात्म्य गाया गया है। मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधनाकाल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ‘दुर्गावरिवस्या’ नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं । ‘शिवसंहिता’ के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं। देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है । ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है । इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं। मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई। इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है। गुप्त नवरात्र पूजा विधि 〰️〰️🌸〰️🌸〰️〰️ घट स्थापना, अखंड ज्योति प्रज्ज्‍वलित करना व जवारे स्थापित करना-श्रद्धालुगण अपने सामर्थ्य के अनुसार उपर्युक्त तीनों ही कार्यों से नवरात्रि का प्रारंभ कर सकते हैं अथवा क्रमश: एक या दो कार्यों से भी प्रारम्भ किया जा सकता है। यदि यह भी संभव नहीं तो केवल घट स्थापना से देवी पूजा का प्रारंभ किया जा सकता है। मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए। गुप्तनवरात्री पूजा तिथि 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ प्रतिपदा तिथि 〰️〰️〰️〰️ 11 जुलाई 2021 Ravivar माँ काली और माँ शैलपुत्री पूजा घटस्थापना। कलश स्थापना मुहूर्त👉 घटस्थापना मुहूर्त - प्रातः 05:32 से 07:45 तक रहेगा इसके बाद लाभ और अमृत का चौघड़िये में कलश स्थापना प्रातः काल 9.07 मिनट से 12.31 मिनट तक की जा सकती है। अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापना दिन 12.05 मिनट से 12.57 मिनट तक कर सकेंगे। द्वितीया,12 जुलाई 👉 चंद्रदर्शन, माँ तारा और माँ ब्रह्मचारिणी पूजन, श्री जगन्नाथ यात्रा पुरी। तृतीया, 13 जुलाई 👉 माँ त्रिपुरसुंदरी और माँ चंद्रघंटा पूजा, वरद विनायक अंगारक चतुर्थी। चतुर्थी, 14 जुलाई 👉माँ भुवनेश्वरी माँ कुष्मांडा पूजन। पंचमी 15 जुलाई 👉नवरात्रि के पांचवे दिन माँ छिन्नमस्ता और माँ स्कन्द की पूजा स्कन्द कुमार षष्ठी। षष्ठी 16 जुलाई 👉 षष्ठी, मां त्रिपुर भैरवी और माँ कात्यायनी पूजन, सप्तमी तिथि क्षय, माँ धूमावतीमां और माँ कालरात्रि पूजन, संक्रान्ति। अष्टमी 17 जुलाई, 👉मां बगलामुखी और मां महागौरी पूजन। नवमी, 18 जुलाई 👉मां मतांगी और मां सिद्धिदात्री पूजन, गुप्त नवरात्रि पूर्ण, नवरात्रि पारण। नवरात्रि में दस महाविद्या पूजा 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ पहला दिन- मां काली👉 गुप्त नवरात्रि के पहले दिन मां काली की पूजा के दौरान उत्तर दिशा की ओर मुंह करके काली हकीक माला से पूजा करनी है. इस दिन काली माता के साथ आप भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से आपकी किस्मत चमक जाएगी. शनि के प्रकोप से भी छुटकारा मिल जाएगा. नवरात्रि में पहले दिन दिन मां काली को अर्पित होते हैं वहीं बीच के तीन दिन मां लक्ष्मी को अर्पित होते हैं और अंत के तीन दिन मां सरस्वति को अर्पित होते हैं. मां काली की पूजा में मंत्रों का उच्चारण करना है। मंत्र- क्रीं ह्रीं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा। ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा। दूसरी महाविद्या👉 मां तारा- दूसरे दिन मां तारा की पूजा की जाती है. इस पूजा को बुद्धि और संतान के लिये किया जाता है. इस दिन एमसथिस्ट व नीले रंग की माला का जप करने हैं। मंत्र- ऊँ ह्रीं स्त्रीं हूं फट। तीसरी महाविद्या👉 मां त्रिपुरसुंदरी और मां शोडषी पूजा- अच्छे व्यक्ति व निखरे हुए रूप के लिये इस दिन मां त्रिपुरसुंदरी की पूजा की जाती है. इस दिन बुध ग्रह के लिये पूजा की जाती है. इस दिन रूद्राक्ष की माला का जप करना चाहिए। मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीये नम:। चौथी महाविद्या👉 मां भुवनेश्वरी पूजा- इस दिन मोक्ष और दान के लिए पूजा की जाती है. इस दिन विष्णु भगवान की पूजा करना काफी शुभ होगा. चंद्रमा ग्रह संबंधी परेशानी के लिये इस पूजा की जाती है। मंत्र- ह्रीं भुवनेश्वरीय ह्रीं नम:। ऊं ऐं ह्रीं श्रीं नम:। पांचवी महाविद्या👉 माँ छिन्नमस्ता- नवरात्रि के पांचवे दिन माँ छिन्नमस्ता की पूजा होती है. इस दिन पूजा करने से शत्रुओं और रोगों का नाश होता है. इस दिन रूद्राक्ष माला का जप करना चाहिए. अगर किसी का वशीकरण करना है तो उस दौरान इस पूजा करना होता है. राहू से संबंधी किसी भी परेशानी से छुटकारा मिलता है. इस दिन मां को पलाश के फूल चढ़ाएं। मंत्र- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैररोचनिए हूं हूं फट स्वाहा। छठी महाविद्या👉 मां त्रिपुर भैरवी पूजा- इस दिन नजर दोष व भूत प्रेत संबंधी परेशानी को दूर करने के लिए पूजा करनी होती है. मूंगे की माला से पूजा करें. मां के साथ बालभद्र की पूजा करना और भी शुभ होगा. इस दिन जन्मकुंडली में लगन में अगर कोई दोष है तो वो सभ दूर होता है। मंत्र- ऊँ ह्रीं भैरवी क्लौं ह्रीं स्वाहा। सांतवी महाविद्या👉 मां धूमावती पूजा- इस दिन पूजा करने से द्ररिता का नाश होता है. इस दिन हकीक की माला का पूजा करें। मंत्र- धूं धूं धूमावती दैव्ये स्वाहा। आंठवी महाविद्या👉 मां बगलामुखी- माँ बगलामुखी की पूजा करने से कोर्ट-कचहरी और नौकरी संबंधी परेशानी दूर हो जाती है. इस दिन पीले कपड़े पहन कर हल्दी माला का जप करना है. अगर आप की कुंडली में मंगल संबंधी कोई परेशानी है तो मा बगलामुखी की कृपा जल्द ठीक हो जाएगा। मंत्र-ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं, पदम् स्तम्भय जिव्हा कीलय, शत्रु बुद्धिं विनाशाय ह्रलीं ऊँ स्वाहा। नौवीं महाविद्या👉 मां मतांगी- मां मतांगी की पूजा धरती की ओर और मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुंह करके पूजा करनी चाहिए. इस दिन पूजा करने से प्रेम संबंधी परेशानी का नाश होता है. बुद्धि संबंधी के लिये भी मां मातंगी पूजा की जाती है। मंत्र- क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा। दसवी महाविद्या👉 मां कमला- मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए. दरअसल गुप्त नवरात्रि के नौंवे दिन दो देवियों की पूजा करनी होती है। मंत्र- क्रीं ह्रीं कमला ह्रीं क्रीं स्वाहा नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन पूर्णाहुति हवन एवं कन्याभोज कराकर किया जाना चाहिए। पूर्णाहुति हवन दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों से किए जाने का विधान है किन्तु यदि यह संभव ना हो तो देवी के 'नवार्ण मंत्र', 'सिद्ध कुंजिका स्तोत्र' अथवा 'दुर्गाअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र' से हवन संपन्न करना श्रेयस्कर रहता है। लग्न अनुसार घटस्थापना का फल 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ देवी पूजा में शुद्ध मुहूर्त एवं सही व शास्त्रोक्त पूजन विधि का बहुत महत्व है। शास्त्रों में विभिन्न लग्नानुसार घट स्थापना का फल बताया गया है- 1. मेष- धन लाभ 2. वृष- कष्ट 3. मिथुन- संतान को कष्ट 4. कर्क- सिद्धि 5. सिंह- बुद्धि नाश 6. कन्या- लक्ष्मी प्राप्ति 7. तुला- ऐश्वर्य प्राप्ति 8. वृश्चिक- धन लाभ 9. धनु- मान भंग 10. मकर- पुण्यप्रद 11. कुंभ- धन-समृद्धि की प्राप्ति 12. मीन- हानि एवं दुःख की प्राप्ति होती है। मेष राशि👉 इस राशि के लोगों को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें। वृषभ राशि👉 इस राशि के लोग देवी के महागौरी स्वरुप की पूजा करें व ललिता सहस्त्रनाम का पाठ करें। मिथुन राशि👉 इस राशि के लोग देवी यंत्र स्थापित कर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। इससे इन्हें लाभ होगा। कर्क राशि👉 इस राशि के लोगों को मां शैलपुत्री की उपासना करनी चाहिए। लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ भी करें। सिंह राशि👉 इस राशि के लोगों के लिए मां कूष्मांडा की पूजा विशेष फल देने वाली है। दुर्गा मन्त्रों का जाप करें। कन्या राशि👉 इस राशि के लोग मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। लक्ष्मी मंत्रो का विधि-विधान पूर्वक जाप करें। तुला राशि👉 इस राशि के लोगों को महागौरी की पूजा से लाभ होता है। काली चालीसा का पाठ करें। वृश्चिक राशि👉 स्कंदमाता की पूजा से इस राशि वालों को शुभ फल मिलते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। धनु राशि👉 इस राशि के लोग मां चंद्रघंटा की आराधना करें। साथ ही उनके मन्त्रों का विधि-विधान से जाप करें। मकर राशि👉 इस राशि वालों के लिए मां काली की पूजा शुभ मानी गई है। नर्वाण मन्त्रों का जाप करें। कुंभ राशि👉 इस राशि के लोग मां कालरात्रि की पूजा करें। नवरात्रि के दौरान रोज़ देवी कवच का पाठ करें। मीन राशि👉 इस राशि वाले मां चंद्रघंटा की पूजा करें। हल्दी की माला से बगलामुखी मंत्रो का जाप भी करें। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2021 11 जुलाई २०२० से 19 जुलाई , २०२१ तक दस महाविद्या साधना १) 11 जुलाई : महा देवी काली २) 12 जुलाई : माँ तारा ३) 13 जुलाई : माँ भुवनेश्वरी ४) 14 जुलाई : माँ छिन्मस्तिका ५) 15 जुलाई : माँ षोडशी श्रीगुप्तदुर्गा देवी (श्री कुल ) ६) 16 जुलाई : माँ भैरवी ७) 17 जुलाई : माँ धूमावती ८) 18 जुलाई : माँ बंगलामुखी ९) 19 जुलाई : माँ मातंगी १०) ( 20 जुलाई : माँ कमला ) गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्र के दौरान साधक मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं। गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। माघ नवरात्री उत्तरी भारत में अधिक प्रसिद्ध है, और आषाढ़ नवरात्रि मुख्य रूप से दक्षिणी भारत में लोकप्रिय है प्रथम दिन की महा देवी काली स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को उत्तर की ओर मुख करके करनी चाहिए इनका महा मंत्र – क्रीं ह्रीं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा: इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है। दस महाविद्या की साधना करनेवाले सभी साधको को ९ दिन फलहार में रहना चाहिए तथा किसी एक रंग के वस्त्र को नौ दिन धारण करना चाहिए। रंगों में तीन रंग प्रमुख हैं- काला (उत्तम ), लाल (मध्य ), सफ़ेद (निम्न)। इस प्रकार का साधना विशेष साधको के लिए है। परन्तु सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस म़हामंत्र का जाप 108 बार करें तो उनके घरमें सुख शान्ति बनी रहती है और आकाल मृत्यु नही होती है. द्वितीय दिन: माँ तारा की साधना. दूसरे दिन की महा देवी माँ तारा स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को ईशान कोने की ओर मुख करके करनी चाहिए। ईशान कोन उत्तर पूर्व दिशा के बीच के कोन को कहते हैं. इनका महा मंत्र -क्रीं ह्रीं तारा ह्रीं क्रीं स्वाहा. इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है। सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो उनके पुत्र के कष्टों का नाश होता है. अथवा अगर पुत्रहीन स्त्रियाँ यह जाप करें तो उन्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इस मन्त्र के जाप से दुश्मनों पर विजय की प्राप्ति भी होती है. तीसरा दिन: माँ भुवनेश्वरी तीसरे दिन की महा देवी माँ भुवनेश्वरी स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को पूरब की ओर मुख करके करनी चाहिए। इनका महा मंत्र क्रीं ह्रीं भुवनेश्वरी ह्रीं क्रीं स्वाहा. इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है। सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम १०८ -१०८ बार इस मंत्र का जाप करें तो भुवन के सभी प्रकार की सुख सुविधाएँ उसे प्राप्त होती हैं तथा दरिद्र व्यक्तियों का इनकी आराधना करना सबसे उचित माना गया है. चौथा दिन: माँ छिन्मस्तिका काली चौथा दिन की महा देवी माँ छिन्मस्तिका काली स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को दक्षिण कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। इनका महा मंत्र -क्रीं ह्रीं छिन्मस्तिका ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो दुष्टों का नाश होता है तथा उस व्यक्ति के तमो गुन और रजो गुन का भी नाश होता है। साथ ही साथ जो पुरूष या महिला इस मंत्र का जाप करते हैं उनके काम वासना को नियंत्रित करता है. पांचवा दिन माँ षोडशी पांचवा दिन की महा देवी माँ षोडशी स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को अग्नि कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। अग्नि कोन पूर्व दक्षिण दिशा के बीच के कोन को कहते हैं।-क्रीं ह्रीं षोडशी ह्रीं क्रीं स्वाहा: इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो उनका यौवन बना रहता है तथा उस व्यक्ति मैं आकर्षण की शक्ति बढती है। साथ ही साथ जो पुरूष या महिला इस मंत्र का जाप करते हैं उन्हें कार्तिक के सामान वीर पुत्र की प्राप्ति होती है। छठा दिन: माँ भैरवी छठे दिन की महा देवी माँ भैरवी स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को नैरित कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए।नैरित कोण दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच का कोण होता है।इनका महा मंत्र -क्रीं ह्रीं भैरवी ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो दुष्टों का नाश होता है तथा अकाल मृत्यु , दुष्टात्मा के प्रभाव से बचाव होता है सातवाँ दिन: माँ धूमावती सातवें दिन की महा देवी माँ धूमावती स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को पश्चिम कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। इनका महा मंत्र – क्रीं ह्रीं धूमावती ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो उनके घर से रोग, कलह, दरिद्रता का नाश होता है. आठवां दिन: माँ बंगलामुखी आठवे दिन की महा देवी माँ बंगलामुखी स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को भंडार कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। भंडार कोण पश्चिम और उत्तर दिशा के बीच का कोण होता है।इनका महा मंत्र – क्रीं ह्रीं बंगलामुखी ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें। माँ बंगलामुखी का जाप ऐसे व्यक्ति को करना चाहिए जिनके ऊपर किसी तांत्रिक क्रिया को कराया जा रहा हो और जिस से वो परेशान हो। इस मंत्र का जाप करने से वैसे दुष्ट व्यक्तियों का नाश होता है। इनका जाप करते समय साधक को पीला वस्त्र धारण करना चाहिए और पीले माला से जाप करना चाहिए। उस माला को जाप ख़त्म होने के बाद किसी पीपल के पेड़ पर टांग देना चाहिए. नौवां दिन: माँ मातंगी नौवे दिन की महा देवी माँ मातंगी स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को पृथ्वी की ओर मुख करके करनी चाहिए। इनका महा मंत्र – क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें। माँ मातंगी का जाप ऐसे व्यक्ति को करना चाहिए जिनके जीवन में माता के प्रेम की कमी हो अथवा उनकी माता को कोई कष्ट हो। जो किसान आकाल या बाढ़ से पीड़ित होते है वे भी माँ मातंगी का अगर सामूहिक रूप से जाप करे तो अकाल या बढ़ का प्रभाव कम होता है. दसवां दिन: माँ कमला दसवें दिन की महा देवी माँ कमला स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को आकाश की ओर मुख करके करनी चाहिए।इनका महा मंत्र – क्रीं ह्रीं कमला ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें। माँ कमला का जाप दसो महाविद्या में सबसे श्रेष्ठ बताया गया है। इनका जाप करने वाले जीवन में कभी भी दरिद्र नही होते। शास्त्रों में कहा गया है की जो माँ कमला की साधना करते हैं उन्हे सभी प्रकार के भौतिक सुख प्राप्त होते हैं। तंत्र के क्षेत्र में सबसे प्रभावी हैं दस महाविद्या। उनके नाम हैं-काली, तारा, षोडषी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगला, मातंगी और कमला। गुण और प्रकृति के कारण इन सारी महाविद्याओं को दो कुल-कालीकुल और श्रीकुल में बांटा जाता है। साधकों का अपनी रूचि और भक्ति के अनुसार किसी एक कुल की साधना में अग्रसर हों। ब्रह्मांड की सारी शक्तियों की स्रोत यही दस महाविद्या हैं। इन्हें शक्ति भी कहा जाता है। मान्यता है कि शक्ति के बिना देवाधिदेव शिव भी शव के समान हो जाते हैं। भगवान विष्णु की शक्ति भी इन्हीं में निहित हैं। सिक्के का दूसरी पहलू यह भी है कि शक्ति की पूजा शिव के बिना अधूरी मानी जाती है। इसी तरह शक्ति के विष्णु रूप में भी दस अवतार माने गए हैं। किसी भी महाविद्या के पूजन के समय उनकी दाईं ओर शिव का पूजन ज्यादा कल्याणकारी होता है। अनुष्ठान या विशेष पूजन के समय इसे अनिवार्य मानना चाहिए। उनका विवरण निम्न है——– महाविद्या————–शिव के रूप 1-काली——————- महाकाल 2-तारा——————– अक्षोभ्य 3-षोडषी—————— कामेश्वर 4-भुवनेश्वरी————— त्रयम्बक 5-त्रिपुर भैरवी———— दक्षिणा मूर्ति 6-छिन्नमस्ता———— क्रोध भैरव 7-धूमावती————— चूंकि विधवा रूपिणी हैं, अत: शिव नहीं हैं 8-बगला—————– मृत्युंजय 9-मातंगी—————- मातंग 10-कमला————— विष्णु रूप दस महाविद्या से ही विष्णु के भी दस अवतार माने गए हैं। उनके विवरण भी निम्न हैं– महाविद्या———– विष्णु के अवतार 1-काली——————–कृष्ण 2-तारा———————मत्स्य 3-षोडषी——————–परशुराम 4-भुवनेश्वरी—————-वामन 5-त्रिपुर भैरवी————–बलराम 6-छिन्नमस्ता————–नृसिंह 7-धूमावती—————–वाराह 8-बगला———————कूर्म 9-मातंगी——————–राम 10-कमला—————–बुद्धविष्णु का कल्कि अवतार दुर्गा जी का माना गया है। दस महाविद्या के बारे में कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। सारी शक्ति एवं सारे ब्रह्मांड की मूल में हैं ये दस महाविद्या। मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक जिन जालों में उलझा रहता है और जिस सुख तथा अंतत: मोक्ष की खोज करता है, उन सभी के मूल में मूल यही दस महाविद्या हैं। दस का सबसे ज्यादा महत्व है। संसार में दस दिशाएं स्पष्ट हैं ही, इसी तरह 1 से 10 तक के बिना अंकों की गणना संभव नहीं है। ये दशों महाविद्याएं आदि शक्ति माता पार्वती की ही रूप मानी जाती हैं। कथा के अनुसार महादेव से संवाद के दौरान एक बार माता पार्वती अत्यंत क्रुद्ध हो गईं। क्रोध से माता का शरीर काला पडऩे लगा। यह देख विवाद टालने के लिए शिव वहां से उठ कर जाने लगे तो सामने दिव्य रूप को देखा। फिर दूसरी दिशा की ओर बढ़े तो अन्य रूप नजर आया। बारी-बारी से दसों दिशाओं में अलग-अलग दिव्य दैवीय रूप देखकर स्तंभित हो गए। तभी सहसा उन्हें पार्वती का स्मरण आया तो लगा कि कहीं यह उन्हीं की माया तो नहीं। उन्होंने माता से इसका रहस्य पूछा तो उन्होंने बताया कि आपके समक्ष कृष्ण वर्ण में जो स्थित हैं, वह सिद्धिदात्री काली हैं। ऊपर नील वर्णा सिद्धिविद्या तारा, पश्चिम में कटे सिर को उठाए मोक्षा देने वाली श्याम वर्णा छिन्नमस्ता, वायीं तरफ भोगदात्री भुवनेश्वरी, पीछे ब्रह्मास्त्र एवं स्तंभन विद्या के साथ शत्रु का मर्दन करने वाली बगला, अग्निकोण में विधवा रूपिणी स्तंभवन विद्या वाली धूमावती, नेऋत्य कोण में सिद्धिविद्या एवं भोगदात्री दायिनी भुवनेश्वरी, वायव्य कोण में मोहिनीविद्या वाली मातंगी, ईशान कोण में सिद्धिविद्या एवं मोक्षदात्री षोडषी और सामने सिद्धिविद्या और मंगलदात्री भैरवी रूपा मैं स्वयं उपस्थित हूं। उन्होंने कहा कि इन सभी की पूजा-अर्चना करने में चतुवर्ग अर्थात- धर्म, भोग, मोक्ष और अर्थ की प्राप्ति होती है। इन्हीं की कृपा से षटकर्णों की सिद्धि तथौ अभिष्टि की प्राप्ति होती है। शिवजी के निवेदन करने पर सभी देवियां काली में समाकर एक हो गईं। महाविद्या के शिव हिन्दू धर्म में देवों के देव महादेव पुकारे जाने वाले भगवान शिव मूर्त या सगुण और अमूर्त या निर्गुण रूप में पूजे जाते हैं। ऐसा शास्त्रों में वर्णन आता है की शिव बिना उनकी शक्ती के शव हैं और शक्ति बिना शिव में शून्य है। भगवान शंकर और मूल शक्ति (देवी) के दस प्रमुख स्वरूपों के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है। वेदों के अनुसार शिव का एक नाम ‘रुद्र’ भी है। रुद्र का अर्थ है भयानक तथा दुख से मुक्ति दिलाने वाला। भगवान शंकर संहार के देवता हैं। साथ ही साथ शिव परम कल्याणकारी हैं। शास्त्रों के अनुसार शिव के दस रुद्रावतार व्यक्ति को सुख, समृद्धि, भोग, मोक्ष प्रदान करने वाले एवं व्यक्ति की दसों दिशाओं से रक्षा करने वाले हैंं। 1. महाकालेश्वर रुद्रावतार: शिव के दस रुद्रावतारों में पहला अवतार महाकाल माने जाते हैं। महाकेश्वर का स्वरुप श्यामवर्णी है और ये काल के भी काल कहे जाते हैं। महाकालेश्वर अवतार की शक्ति महाविद्या महाकाली मानी जाती हैं। उज्जैन में महाकाल नाम से ज्योतिर्लिंग प्रख्यात है। उज्जैन तीर्थ के गढ़कालिका क्षेत्र में मां कालिका उपखंड शक्तिपीठ स्थित है। मूल महाकाली महाविद्या शक्तिपीठ पश्चिमबंगाल के कलकत्ता स्थित महाकाली मंदिर है। 2. तारकेश्वर रुद्रावतार: शिव के दस रुद्रावतारों में दूसरा अवतार तारकेश्वर (तार) नाम से प्रचलित है। तारकेश्वर का स्वरुप तारे की भांति पीतांबर है अर्थात नीलम लिए हुए पीला। तारकेश्वर अवतार की शक्ति देवी तारा मानी जाती हैं। तारा पीठ पश्चिम बंगाल के वीरभूम में स्थित द्वारका नदी के पास महाश्मशान में स्थित है। 3.भुवनेश्वर रुद्रावतार: शिव के दस रुद्रावतारों में तीसरा रुद्रावतार है भुवनेश्वर अर्थात बाल भुवनेश। भुवनेश्वर का स्वरुप शीतल श्वे़त है। भुवनेश्वर अवतार की शक्ति को भुवनेश्वरी (बाला भुवनेशी) कहा जाता है। दस महाविद्या में से एक देवी भुवनेश्वरी की शक्तिपीठ उत्तराखंड में है। 4. षोडेश्वर रुद्रावतार: शिव के दस रुद्रावतारों में चौथा अवतार है षोडेश्वर अर्थात षोडश श्रीविद्येश। षोडेश्वर का स्वरुप सोलह कलाओं वाला है। षोडेश्वर अवतार की शक्ति महाविद्या षोडशी श्रीविद्या को माना जाता है। ‘दस महा-विद्याओं’ में तीसरी महा-विद्या भगवती षोडशी है, अतः इन्हें तृतीया भी कहते हैं। 5. भैरवनाथ रुद्रावतार: शिव के दस रुद्रावतारों में पांचवें रुद्रावतार भैरवनाथ अर्थात भैरव माने गए हैं। भैरवनाथ के 52 स्वरुप माने गए हैं तथा मूलतः भैरव तामसिक देव कहे जाते हैं और इन्हें दिशाओं का रक्षक माना जाता है। भैरवनाथ अवतार की शक्ति भैरवी मानी गई हैं। दशमहाविद्या की सारिणी में इस आदिशक्ति को त्रिपुर भैरवी गिरिजा भैरवी कहा गया है। शक्तिपीठों के वर्णन में जहां देवी के ओष्ठ गिरे थे उस स्थान को उज्जैन के शिप्रा नदी तट स्थित भैरव पर्वत पर मां भैरवी का शक्तिपीठ माना गया है। 6. दमोदेश्वर रुद्रावतार: शिव के दस रुद्रावतारों में छठा अवतार दमोदेश्वर अर्थात छिन्नमस्तक नाम से प्रचलित है। इस अवतार की शक्ति देवी छिन्नमस्ता मानी जाती हैं। छिनमस्तिका मंदिर प्रख्यात तांत्रिक पीठ है। दस महाविधाओं में से एक छिन्नमस्तिका का विख्यात मंदिर चिंतपूर्णी नाम से भी प्रसिद्द है। शास्त्रों के अनुसार दामोदर-भैरवी नदी के संगम पर स्थित इस पीठ को शक्तिपीठ माना जाता है। दामोदर को शिव व भैरवी को शक्ति माना जाता है। 7. धूमेश्वर रुद्रावतार: शिव के दस प्रमुख रुद्र अवतारों में सातवां अवतार धूमेश्वर अर्थात द्यूमवान नाम से प्रख्यात है। धूमेश्वर का स्वरुप धुम्रवर्ण अर्थात धुएं जैसा है। धूमेश्वर अवतार की महाविद्या को देवी धूमावती माना गया है। संपूर्ण भारत में धूमावती का एकमात्र मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ ‘पीताम्बरा पीठ’ के प्रांगण में स्थित है। 8. बग्लेश्वर रुद्रावतार: शिव के दस प्रमुख रुद्र अवतारों में आठवां रुद्र अवतार बग्लेश्वर अर्थात बगलामुख नाम से प्रचलित है। बग्लेश्वर का स्वरुप पीला है। इस अवतार की महाविद्या को देवी बगलामुखी माना जाता है। दस महाविद्याओं में से एक बगलामुखी का सबसे प्रचलित मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित बगलामुखी मंदिर है। 9. मतंगेश्वर रुद्रावतार: शिव के दस प्रमुख रुद्र अवतारों में नौवां अवतार मातंग है। मतंगेश्वर का स्वरुप हरा है। मतंगेश्वर अवतार की शक्ति को महाविद्या देवी मातंगी माना जाता है। देवी मातंगी सनातन धर्म में उच्छिष्ट चंडालिनी के रूप पूजी जाती है। देवी मातंगी का एकमात्र मंदिर मध्यप्रदेश में झाबुआ शहर में स्थित है। ये देवी ब्राह्मणों की कुल देवी भी कहलाई जाती है। 10. कमलेश यां कमलेश्वर रुद्रावतार: शिव के दस प्रमुख रुद्र अवतारों में दसवां अवतार कमलेश यां कमलेश्वर नाम से प्रचलित है। कमलेश्वर का स्वरुप कमल की भांति अष्टदल कारी है अर्थात 64 कलाओं वाला है। इन्हें शिव का कमल स्वरुप भी कहा जाता hi Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra Siddhivinayak Jyotish evam Vastu Anusandhan Kendra Vibhav khand 2 Gomti Nagar AVN vedraj complex purana RTO Chauraha latouche Road Lucknow 9415 087 711 923 5722 996