ग्रहों का विस्तृत कारकत्व Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra 9415 087 711 923 5722 996 1. सूर्य आत्मा, शक्ति, तीक्ष्णता, बल, प्रभाव, गर्मी, अग्नितत्व, धैर्य, राजाश्रय, कटुता, आक्रामकता, वृद्धावस्था, पशुधन, भूमि, पिता, अभिरूचि, ज्ञान, हड्डी, प्रताप, पाचन शक्ति, उत्साह, वन प्रदेश, आँख, वनभ्रमण, राजा, यात्रा, व्यवहार, पित्त, नेत्ररोग, शरीर, लकड़ी, मन की पवित्रता, शासन, रोगनाश, सौराष्ट्र देश, सिर के रोग, गंजापन, लाल कपड़ा, पत्थर, प्रदर्शन की भावना, नदी का किनारा, मूँग, लाल चन्दन, कॉटेदार झाडियाँ, उन, पर्वतीय प्रदेश, सोना, ताँबा, शस्त्र प्रयोग, विषदान, दवाई, समुद्र पार की यात्राएँ, समस्याओं का समाधान, गूढ़ मन्त्रणा आदि का कारक है। 2. चन्द्रमा कविता, फूल, खाने के पदार्थ, मणि, चाँदी, शंख, मोती आदि समुद्रोत्पन्न पदार्थ, नमकीन पानी, वस्त्राभूषण, स्त्री, घी, तेल, तिल, नींद, बुद्धि, रोग, आलस्य, कफ, प्लीहा, मनोभाव, हृदय, पाप पुण्य, खटाई, सुख, जलीय पदार्थ, चाँदी, गन्ना, गेहूँ, सर्दी से बुखार, यात्रा, कूआँ आदि स्थान, टी0बी0, सफेद रंग, बेल्ट, तगड़ी, काँसा, नमक, मन, मनोबल, शरद ऋतु, मुहूर्त, मुखशोभा, पेट, शहद, हँसी मजाक, परिहास कुशलता, तेज चाल, चंचलता, दही, यश, रोजगार लाभ, कन्धे की बीमारियों, राजसी चिन्ह, खून की शुद्धता, शरीर विकास, चमकीली चीजें मखमली कोमल कपड़े आदि का कारक है। 3. मंगल शूरता, वीरता, पराक्रम, आक्रामकता, युद्ध, शस्त्र उठाना, वीर्य हानि, चोरी, शत्रु, - लाल रंग, उद्यानपति होना, शोर, पशुधन, राजयोग, क्रोध, मूर्खता, विदेशयात्रा, धीरज, पालक पिता आदि, अग्नि, मौखिक कलह, चित्त, गर्मी, घाव, राजसेवा, रोग, प्रसिद्धि, अंगक्षति, कटुरस, युवावस्था, मिट्टी के पदार्थ, रुकावट, मांस भक्षण, दोष दर्शन, शत्रु पर विजय, तीखा भोजन, सोना धातु, गम्भीरता, पुरूषत्व, शील, मूत्र के रोग, जला हुआ प्रदेश, सूखे वन, धन, खून, काम, क्रोध, सेनापतित्व, वृक्ष, भाई, वन विभाग का अधिकारी, ठेकेदारी, कृषि भूमि, दण्डाधिकारी, सॉप, घर, वाहन सुख, खून बहना, पारा, बेहोशी आदि का कारक है। 4. बुध बुद्धि, विद्या, घोड़ा, खजाना, गणित, वाक्कला, सेवा, लेखन, नया वस्त्र, दुःस्वप्न, नपुंसकता, खाल, गीलापन, वैराग्य, सुन्दर भवन, डॉक्टर, गला, गान विद्या भिक्षु दृष्टि, हँसोड़पन, नम्रता, नृत्य, मन का संयम, नाभि, गोत्र वृद्धि, आन्ध्रप्रदेश की भाषा, विष्णु की भक्ति, शूद्र, पक्षी, बहन, भाषा का चमत्कार, नगरद्वार, धूल, गुप्तांग, व्याकरण, पुराण, साहित्य व वेदान्त विद्या, जौहरी, विद्वता, मामा, मन्त्र, तंत्र, आयुर्वेद, मन्त्रित्व, वनस्पति आदि का कारक बुध है। • जुड़वापन, 15. गुरू शुभ कर्म, धर्म, गौरव, महत्व, पोषण, शिक्षा, गर्भाधान, नगर, राष्ट्र, वाहन, आसन, - पद, सिंहासन, अन्न, गृह सुख, पुत्र, अध्यापन, कर्तव्य बोध, संचित धन, मीमांसा शास्त्र, दही, बड़ा शरीर, प्रताप, यश, तर्क, ज्योतिष, पुत्र, फौज, उदर रोग, दादा, बड़े मकान, बड़ा भाई, राजा क्रोध, रत्नों का व्यापार, स्वास्थ्य, परोपकार, राजकीय सम्मान, तपस्या, दान, गुरूभक्ति, मध्यम श्रेणी का कपड़ा, गृहसुख, धारणात्मक बुद्धि, सभा चतुरता, बर्तन, सुख, कफ, सुन्दर वाहन आदि का अधिपति वृहस्पति है। 16. शुक्र हीरा, मणि, विवाह, प्रेम प्रसंग दाम्पत्य सुख, आमदनी, स्त्री, मैथुन सुख व शक्ति, खटाई, फूल, यश, जवानी सुन्दरता, काव्य रचना, वाहन, चाँदी, खुजली, राजसी स्वभाव, सौन्दर्य प्रसाधन का व्यवसाय, गाना बजाना, आमोद प्रमोद आदि, तैराकी, विचित्र कविता, रसिकता, भाग्य, सौन्दर्य, आकर्षक, व्यक्तित्व, ऐश्वर्य, कम खाना, वसन्त ऋतु, वीर्य, जल क्रीड़ा, नाटक, अभिनय, आसक्ति, राजकीय मुद्रा, कमजोरी, काले बाल, रहस्य की बातें आदि का कारक शुक्र है। 7. शनि जड़ता, आलस्य, रूकावट, चमड़ा, कष्ट, दुःख, विपत्ति, विरोध, मृत्यु, दासी, गधा, खच्चर, चांडाल, हीनांग, वनचर, डरावने लोग, स्वामी, आयु, नपुंसकता, पक्षी, दासता, अधार्मिक कार्य, झूठ बोलना, वात रोग, बुढ़ापा, नसें, पैर, परिश्रम, मजदूरी, अवैध सन्तति, गन्दे व बुरे पदार्थ व विचार, लंगड़ापन, राख, लोहा, काले धान्य, कृषिजीवी, शस्त्रागार, जाति वहिष्कार, सीसा, शक्ति का दुरूपयोग, तुर्क, पुराना तेल, लकड़ी, तामासी गुण, व्यर्थ घूमना, डर, अटपटे बाल, बकरा, भैंस, सार्वभौम सत्ता कुत्ता, चोरी, कठोर हृदयता, मूर्ख नौकर व दीक्षा का कारक शनि है। 8. राहु- छत्र, चॅवर, राज्य, संग्रह, कुतर्क, मर्मच्छेदी वचन, शूद्र, पाप, स्त्री, सुसज्जित वाहन, अधार्मिक मनुष्य, गंगा स्नान, तीर्थ यात्रा, झूठ, भ्रम, मायाचार, कपट, रात की हवाएँ, रेंगने वाले कीड़े मकोड़े, गुप्त बातें, मृत्यु का समय, वायु का तेज दर्द, सॉस की बीमारी, दुर्गापूजा, पशुओं से मैथुन, उर्दू आदि भाषाएँ, कठोर भाषण, अचानक फल देना आदि का कारक राहु है । 9. केतु मोक्ष, शिवोपासना, डॉक्टरी, कुत्ता, मुर्गा, ऐश्वर्य, टी०बी० पीड़ा, ज्वर, ताप, वायु विकार, स्नेह, सम्पत्ति का हस्तान्तरण, पत्थर की चोट, कोटा, ब्रह्मज्ञान, आँख का दर्द, अज्ञानता, भाग्य, मौनव्रत, वैराग्य, भूख, उदरशूल, सींगों वाले पशु, ध्वज, शूद्रों की सभा, बन्धन की आज्ञा को रोकना, जमानत आदि का कारक केतु है। बलवान् कारक से उससे सम्बन्धित पदार्थों की प्राप्ति होती है। यदि भावेश भाव पदार्थ का कारक या स्वयं भाव तीनों ही निर्बल या पीडित हों तो उस भाव से सम्बन्धित फल की प्राप्ति नहीं होती है। साधारणत: जो ग्रह जिस भाव का कारक हो उसी स्थान में बैठकर प्रायः भाव की हानि करता है। शनि इसका अपवाद है। अर्थात् अष्टम भाव में शनि आयु नाशक न होकर आयु को प्रदान करता है। । भाव, भावेश व कारक ये तीनों बली हों तो भाव का पूरा फल, दो ही बली होने से थोड़ा कम अर्थात् 2/3 फल होता है तथा एक बली होने से 1/3 फल ही प्राप्त होता है। अन्य प्रकार से कारकत्व जन्म लग्न या चन्द्र से 1,4,7,10 भावों में जितने ग्रह स्वोच्च व मूल त्रिकोण व स्वराशि में स्थित हों तो वे परस्पर कारक होते हैं, तथा एक दूसरे को बल प्रदान कर शुभप्रद होते हैं। इनमें भी दशम भावगत ग्रह विशेषतया कारक अर्थात् फलकारक होता है। अथवा कहीं भी स्वोच्च, मूलत्रिकोण या स्वराशि में स्थित ग्रह या स्वोच्चादि नवांशगत ग्रह भी कारक अर्थात् शुभ फल देने वाले होते हैं। अथवा केन्द्र स्थानों में किसी भी राशि में स्थित ग्रह कारक होते हैं। इस प्रकार कारक ग्रहों की अधिकता होने से जातक साधारण कुलोत्पन्न होकर भी प्रधानता पाता है, तब राजकुल आदि में पैदा होने पर तो विशिष्ट प्रधानता पाता ही है। कारकों की फल प्राप्ति सभी कारक ग्रह अपने से सम्बन्धित या समस्त या कुछ शुभ फल - यथावसर इन वर्षों में या इसके उपरान्त देते हैं - सूर्य 22 वर्ष मंगल 28 वर्ष, बुध 32 वर्ष, गुरू 16 वर्ष, शुक्र 25 वर्ष, शनि 36 वर्ष, - राहु केतु के 42 वर्ष भाग्योदय वर्ष होते हैं। जिस भाव से जो जो विचार किया जाता है वह वस्तु या बातें उन भावों का कारकत्व कहलाता है। 1. लग्न भाव शरीर, शरीरोग, सुख, दुःख, बुढ़ापा, ज्ञान, जन्म स्थान, कीर्ति, स्वप्न, बल, गौरव, राज्य, नम्रता, स्वभाव, आयु, शान्ति, अवस्था, व्यक्तित्व, स्वाभिमान कार्य, चोट, निशान, अपमान, त्वचा, वर्ण, त्यागादि का विचार किया जाता है। 2. धन भाव वित्त, संचित धन, बचत, परिवार, कुटुम्ब, आँख, वाणी, मुख, विद्या, - वाचालता, भाषण कला, भोजन का स्वाद, क्रय विक्रय, दान, धनप्राप्ति का प्रयत्न, आस्तिकता, परिवार का उत्तरदायित्व, नाखून, चलने का ढंग, झूठ बोलना, नाक, जीभ, कपड़े, भोग विलास, मित्र, नौकर, मृत्यु, विचारधारा प्रसन्नता, धन धान्य व विनयशीलता, वैराग्य बदनामी, विद्या, यात्राएँ, मन की स्थिरता, आदि का विचार होता है - 3. तृतीय या सहज भाव भाई, पराक्रम, अनिष्ट पुरुषार्थ, परिश्रम, कान, मुँह, टॉगें, भुजा, चित्त की बेचैनी, स्वर्ग, पर सन्ताप, स्वप्न, बहादुरी, मित्र, यात्रा, गला, कुभोजन, धन का बंटवारा, आभूषण, गुण, अभिरूचियाँ लाभ, शरीर की बढ़ोत्तरी कुल का स्तर, नौकर, सहयोगी, वाहन, छोटी यात्राएँ महान कार्य, पिता की मृत्यु, छाती, मामा आदि का विचार इस भाव से किया जाता है। 4. चतुर्थ या सुख स्थान सुख, सम्पत्ति, वाहन, माता, मित्र वर्ग, प्रसिद्धि, मकान, यात्राएँ, बन्धु बान्धव, मनोरथ, राजा, खजाना, श्वसुर, पशुधन, प्रेम प्रसंग बाह्य सुख, पिता का व्यवसाय, भोजन, निद्रा, सुख, सिंहासन, कन्धे, यश, जन सम्पर्क, झूठे आरोप, गड़ा धन, गृह त्याग, चोरी गई वस्तु की दिशा का स्थान, धान्य सम्पदा आदि का विचार होता है। 5. पंचम भाव विद्या, बुद्धि, प्रबन्ध कुशलता, मन्त्रणा शक्ति, गूढ़ तान्त्रिक क्रियाएँ, सन्तान, शिल्प कला कौशल, महान कार्य, पैतृक धन, दूरदर्शिता, रहस्य, नम्रता, लगन, - समालोचना शक्ति धन कमाने का ढंग, परम्परा से प्राप्त मन्त्री पद, गर्भ, पेट, भोजन की मात्रा, लेखन शक्ति आदि का विचार होता है। 6. षष्ठ या शत्रु भाव- शत्रु, रोग, मामा, युद्ध, सृजन, पागलपन, फुंसी फोड़े, कंजूसी, परिश्रम, ऋण, गर्मी, जख्म, नेत्ररोग, विषपान, निन्दा, चोरी, विपत्ति, भाइयों से झगड़ा, अंग - भंग, नाभि, कमर, मूत्ररोग, भिक्षावृत्ति आदि का विचार होता है। 7. सप्तम भाव पत्नी, दाम्पत्य सुख, दैनिक आय, मृत्यु, व्यभिचार, काम शक्ति, स्त्री से - शत्रुता, रास्ता भटकना, पौष्टिक भोजन, पान खाना, सुगन्ध प्रयोग, सजने की प्रवृत्ति, भूल, कपड़े प्राप्त करना, वीर्य, पवित्रता, गुप्तांग, दत्तक पुत्र, अन्य देश, अन्य स्त्री से उत्पन्न पुत्रादि व बाबा का विचार सप्तम भाव से होता है। 8. अष्टम् भाव आयु, मृत्यु का कारण मृत्यु प्रकार, शवगति, गड़ा धन, वैराग्य, सुख, कष्ट, झगड़ा, मुसीबत, गुप्तरोग, पत्नी का शारीरिक कष्ट, नाश, ऋण, राजकोप, पाप, शरीर कटना, शल्य चिकित्सा, क्रूर कार्य, जीवनरक्षा, मरणोपरान्त गति, गढ़ विजय, चोरी की आदत, वेतन, सूदखोरी, आलस्य आदि अष्टम भाव से देखे जाते है। 9. नवम भाव – दान, धर्म, त्याग, बलिदान, तीर्थयात्रा, तपस्या, गुरूभक्ति, चिकित्सा, मन की शुद्धि, ऐश्वर्य, पुत्र, पुत्री, पैतृक धन, राज्याभिषेक, जाँघ, सभी प्रकार की सफलता आदि का विचार नवम भाव से किया जाता है। 10. दशम भाव राज्य, आज्ञा मान सम्मान प्रतिष्ठा, राज्यप्राप्ति, राजपद, सवारी, यश, धन रखना, वृद्धजन, कार्य विस्तार, औषधि, कमर, सफलता, ख्याति, गौरव, नियन्त्रण, प्रशासन, आज्ञा, कृषि, रोजगार, खानदान, संन्यास, आकाश, वायुमार्ग की यात्रा, घुटना, आदि का विचार होता है। 11. एकादश भाव लाभ, असफलता, सब प्रकार की उपलब्धि, बड़ा भाई, गुलामी, - आमदनी, विद्या, धन कमाने की शक्ति, घुटने, पदवी, सुखलाभ, धननाश, प्रेमिका की भेंट, मंत्रीपद, ससुर से लाभ, भाग्योदय, मनोरथ सिद्धि, आशा, कान, माता की आयु, निपुणता, कन्याएँ, पुत्रवधू, चाचा आदि का विचार इस भाव से किया जाता है। 12. द्वादश भाव सब प्रकार की हानि, नेत्र, धननाश, धन का निवेश, भोग, निद्रा, विस्तर का सुख, विवाह में विलम्ब, पदयात्रा, कर्ज, मोक्ष, जन विरोध, अंग भंग, अधिकार नाश, पदावनति, कैद, बन्धन, शरीर हानि, क्रोध, अन्य देश में बसना, पत्नी का नाश, गरीबी, कष्ट, शरीर विकार आदि का विचार द्वादश भाव से होता है। धनेशो धनभावस्थ: केन्द्रकोणगतोऽपि वा। धनवृद्धिकरो ज्ञेयनिकस्थो धनहानिकृत् ।। धनदश्च धने सौम्य: पापो धनविनाशकृत् । धनाधिपो गुरूर्यस्य धनभावगतो भवेत् ॥ भौमेन सहितो वाऽपि धनवान स नरो भवेत् । धनेशे लाभभावस्थे लाभेशे वा धनं गते ॥ तावुभौ केन्द्रकोणस्थौ धनवान स नरो भवेत् । धनेशे केन्द्रराशिस्थे लाभेशे तत्रिकोणगे ॥ गुरुशुक्रयुते दृष्टे धनलाभमुदीरयेत् । धनेश यदि धनभाव में ही हो अथवा केन्द्र त्रिकोण में हो तो धन की वृद्धि होती है और धनेश यदि त्रिक (6,8,12) स्थान में हो तो धन की हानि होती है। धनस्थान में शुभ ग्रह धन देने वाले और पाप ग्रह धननाशककारक होते है। जिसका धनेश गुरू होकर धनभाव में ही स्थित हो या भौम के साथ हो तो वह मनुष्य धनवान होता है। धनेश लाभस्थान में हो अथवा लाभेश धनस्थान में हो अथवा लाभेश और धनेश केन्द्र त्रिकोण में हो तो जातक धनाढ्य होता है। धनेश केन्द्र में हो और त्रिकोण में लाभेश हो या गुरु शुक्र से युक्त अथवा दृष्ट हो तो धनलाभ होता है। Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra Siddhi Vinayak Jyotish AVN vastu Anusandhan Kendra Vibhav khand 2 Gomti Nagar AVN vedraj Complex purana RTO Chauraha latouche Road Lucknow 9415 087 711 923 5722 996