श्री बटुक Bhairav विशेष 〰️〰️🌸 Jyotish AVN anushthan visheshagya Dr Umashankar Mishra 94150 877 11〰️🌸 923 5722 996〰️🌸〰️〰️ बटुक भैरव प्रसन्न होकर सदा साधक के साथ रहते हैं और उसे सुरक्षा प्रदान करते हैं अकाल मौत से बचाते हैं। ऐसे साधक को कभी धन की कमी नहीं रहती और वह सुखपूर्वक वैभवयुक्त जीवन- यापन करता है। जो साधक बटुक भैरव की निरंतर साधना करता है तो भैरव बींब रूप में उसे दर्शन देकर उसे कुछ सिद्धियां प्रदान करते हैं जिसके माध्यम से साधक लोगों का भला करता है। भगवान भैरव अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति भैरव का व्रत रखता है, पूजन या उनकी उपासना करता है वह समस्त कष्टों से मुक्त हो जाता है। श्री बटुक भैरव अपने उपासक की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं। स्कंद पुराण के अवंति खंड के अंतर्गत उज्जैन में अष्ट महाभैरव का उल्लेख मिलता है। भैरव तंत्र का कथन है कि जो भय से मुक्ति दिलाए वह भैरव है। भय स्वयं तामस-भाव है। तम और अज्ञान का प्रतीक है यह भाव। जो विवेकपूर्ण है वह जानता है कि समस्त पदार्थ और शरीर पूरी तरह नाशवान है। आत्मा के अमरत्व को समझ कर वह प्रत्येक परिस्थिति में निर्भय बना रहता है। जहाँ विवेक तथा धैर्य का प्रकाश है वहाँ भय का प्रवेश हो ही नहीं सकता। वैसे भय केवल तामस-भाव ही नहीं, वह अपवित्र भी होता है। इसीलिये भय के देवता महाभैरव को यज्ञ में कोई भाग नहीं दिया जाता। कुत्ता उनका वाहन है। क्षेत्रपाल के रूप में उन्हें जब उनका भाग देना होता है तो यज्ञीय स्थान से दूर जाकर वह भाग उनको अर्पित किया जाता है, और उस भाग को देने के बाद यजमान स्नान करने के उपरांत ही पुन: यज्ञस्थल में प्रवेश कर सकता है। बटुक भैरव जन्म की संक्षिप्त कथा 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ आपद नाम का एक राक्षस था वैसे अभी भी आपद तो अभी भी परोक्ष रूप से ज़िंदा है। जो बिन बुलाये इन दिनों कभी भी आ जाती है।उस जमाने में आपद का अत्याचार बहुत बढ़ गया था तीनो लोकों के देवता देवी और मनुष्य अत्याचार से परेशान थे आपद को वरदान था कि उसे कोई देवी देवता नहीं मार सकता कोई वध नही कर सकता है। सिर्फ कोई पांच साल का बच्चा ही मार सकता है तब -  देवी देवताओं की प्रार्थना शिव जी ने सुनी देवी देवताओं की शक्ती से पांच साल के बालक की उत्त्पत्ति हुई जिसका नाम बटुक भैरव रखा गया उसने ही आपद नाक राक्षस का वध किया इसलिए आपके उपर कोई आफत आये तो कलियुग में बटुक भैरव की पूजा करनी चाहिए। साधना विधि एवं मंत्र 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ साधक को साधना से पूर्व स्नानादि से निवृत होकर लाल अथवा कला वस्त्र धारण करना चाहिए यथा सामर्थ्य पूजन सामग्री पहके ही इकट्ठा करके रखी चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा में चौकी पर श्री बटुक भैरव का यंत्र भैरवजी के चित्र के समीप रखें। दोनों को लाल वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर यथास्थिति में रखें। लाल अथवा काले कंबल के आसन पर बैठकर आचमन कर शरीर एवं आसान शुद्धिकर पंचोपचार से यंत्र को स्नान कराये उसका पूजन निम्न मंत्रो द्वारा करें ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये घ्रापयामि नमः। ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये निवेदयामि नमः। ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः। अब धूप दीप लड्डुओं का नैवैद्य अर्पण कर जप का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद बटुक भैरव का ध्यान करें ध्यान मंत्र 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्। दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥ दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्। हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल -दण्डौ दधानम्॥ अर्थात् भगवान् श्री बटुक-भैरव बालक रुपी हैं। उनकी देह-कान्ति स्फटिक की तरह है। घुँघराले केशों से उनका चेहरा प्रदीप्त है। उनकी कमर और चरणों में नव मणियों के अलंकार जैसे किंकिणी, नूपुर आदि विभूषित हैं। वे उज्जवल रुपवाले, भव्य मुखवाले, प्रसन्न-चित्त और त्रिनेत्र-युक्त हैं। कमल के समान सुन्दर दोनों हाथों में वे शूल और दण्ड धारण किए हुए हैं। भगवान श्री बटुक-भैरव के इस सात्विक ध्यान से सभी प्रकार की अप-मृत्यु का नाश होता है, आपदाओं का निवारण होता है, आयु की वृद्धि होती है, आरोग्य और मुक्ति-पद लाभ होता है। ध्यान के बाद जप आरम्भ करें। जप मंत्र 〰️🌸〰️ ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा उक्त मंत्र की रात्रि कम से कम 21 माला करे इसके बाद प्रतिदिन 11 माला जब तक सवालाख जप पूर्ण ना हो जाये करें। अपनी सामर्थ्य अनुसार अधिक जप भी कर सकते है। सवालाख जप पूर्ण होने के बाद इसका दशांश यानी 12500 मंत्रो से हवन में आहुति देना चाहिए।भैरव की पूजा में जप के आरम्भ व अंत मे श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली का पाठ भी करना चाहिए। मंत्र जाप के बाद अपराध-क्षमापन स्तोत्र का पाठ करें। अंत मे श्री बटुक भैरव अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र का पाठ करें। ॥ श्री बटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्र ॥ 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ जीवन में आने वाली समस्त प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए भैरव आराधना का बहुत महत्व है। जप के बाद श्री बटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्र का पाठ करें, तो निश्चित ही आपके सारे कार्य सफल और सार्थक हो जाएंगे, साथ ही आप अपने व्यापार, व्यवसाय और जीवन में आने वाली समस्या, विघ्न, बाधा, शत्रु, कोर्ट कचहरी, और मुकदमे में पूर्ण सफलता प्राप्त करेंगे : – ॥ मूल-स्तोत्र ॥ ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः। क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट् ॥ श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्। रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः॥ कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः। त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः॥ शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः। अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी – पतिः॥ धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्। नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्॥ कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः। त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्॥ त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय। बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग -वर – धारकः॥ भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः। धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु – लोचनः॥ प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः। अष्ट -मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान- चक्षुस्तपो-मयः॥ अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः। भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः॥ कपाल-धारी मुण्डी च , नाग- यज्ञोपवीत-वान्। जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा॥ शुद्द – नीलाञ्जन – प्रख्य – देहः मुण्ड -विभूषणः। बलि-भुग्बलि-भुङ्- नाथो, बालोबाल – पराक्रम॥ सर्वापत् – तारणो दुर्गो, दुष्ट- भूत- निषेवितः। कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी वश-कृद्वशी॥ जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया – मन्त्रौषधी -मयः। सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ – विष्णुरितीव हि॥ ॥फल-श्रुति॥ अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः। मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम्॥ य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट – शतमुत्तमम्। न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा॥ न शत्रुभ्यो भयंकिञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्। पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः॥ मारी-भये राज-भये, तथा चौ राग्निजे भये। औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नज भये॥ बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः। सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव – कीर्तनात्॥ श्रीबटुक भैरव चालीसा 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ॥ दोहा ॥ विश्वनाथ को सुमिर मन, धर गणेश का ध्यान, भैरव चालीसा पढू , कृपा करिए भगवान ॥ बटुकनाथ भैरव भजूं , श्री काली के लाल, [मुझ दास] पर कृपा कर , काशी के कुतवाल ॥ ॥ चौपाई ॥ जय जय श्री काली के लाला रहो दास पर सदा दयाला भैरव भीषण भीम कपाली क्रोधवंत लोचन में लाली कर त्रिशूल है कठिन कराला गल में प्रभु मुंडन की माला कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला पीकर मद रहता मतवाला रूद्र बटुक भक्तन के संगी प्रेमनाथ भूतेश भुजंगी त्रैल तेश है नाम तुम्हारा चक्रदंड अमरेश पियारा शेखर चन्द्र कपल विराजे स्वान सवारी पर प्रभू गाजे शिव नकुलश चंड हो स्वामी बैजनाथ प्रभु नमो नमामी अश्वनाथ क्रोधेश बखाने भैरव काल जगत ने जाने गायत्री कहे निमिष दिगंबर जगन्नाथ उन्नत आडम्बर छेत्रपाल दश्पाणि कहाए मंजुल उमानंद कहलाये चक्रनाथ भक्तन हितकारी कहे त्रयम्बकं सब नर नारी संहारक सुन्दर सब नामा करहु भक्त के पूरण कमा नाथ पिशाचन के हो प्यारे संकट मटहू सकल हमारे कात्यायु सुन्दर आनंदा भक्तन जन के काटहु फन्दा कारन लम्ब आप भय भंजन नमो नाथ जय जनमान रंजन हो तुम मेष त्रिलोचन नाथा भक्त चरण में नावत माथा तुम असितांग रूद्र के लाला महाकाल कालो के कला ताप मोचन अरिदल नासा भाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा श्वेत काल अरु लाल शरीरा मस्तक मुकुट शीश पर चीरा काली के लाला बलधारी कहं लगी शोभा कहहु तुम्हारी शंकर के अवतार कृपाला रहो चकाचक पी मद प्याला काशी के कुतवाल कहाओ बटुकनाथ चेटक दिखलाओ रवि के दिन जन भोग लगावे धुप दीप नवेद चढ़ावे दर्शन कर के भक्त सिहावे तब दारू की धर पियावे मठ में सुन्दर लटकत झाबा सिद्ध कार्य करो भैरव बाबा नाथ आप का यश नहीं थोडा कर में शुभग शुशोभित कोड़ा कटी घुंघरा सुरीले बाजत कंचन के सिंघासन राजत नर नारी सब तुमको ध्यावत मन वांछित इक्छा फल पावत भोपा है आप के पुजारी करे आरती सेवा भारी भैरव भात आप का गाऊं बार बार पद शीश नवाऊ आपही वारे छीजन धाये ऐलादी ने रुदन मचाये बहीन त्यागी भाई कह जावे तो दिन को मोहि भात पिन्हावे रोये बटुकनाथ करुणाकर गिरे हिवारे में तुम जाकर दुखित भई ऐलादी वाला तब हर का सिंघासन हाला समय ब्याह का जिस दिन आया परभू ने तुमको तुरंत पठाया विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ तीन दिवस को भैरव जाओ दल पठान संग लेकर धाया ऐलादी को भात पिन्हाया पूरण आस बहिन की किन्ही सुख चुंदरी सीर धरी दीन्ही भात भात लौटे गुणगामी नमो नमामि अंतर्यामी मैं हुन प्रभु बस तुम्हारा चेरा करू आप की शरण बसेरा ॥ दोहा ॥ जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार, कृपा दास पर कीजिये शंकर के अवतार ॥ जो यह चालीसा पढे प्रेम सहित सत बार, उस घर सर्वानन्द हो वैभव बढे अपार ॥ बटुक भैरव जी की आरती 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ॐ जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा, सुर नर मुनि सब करते, प्रभु तुम्हरी सेवा ॥ तुम्ही पाप उद्धारक दुःख सिन्धु तारक, भक्तो से सुख कारक, भीषण वपु धारक ॥ वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी, महिमा अमित तुम्हारी, जय जय भयहारी ॥ तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे, चतुरवर्तिका दीपक, दर्शन दुःख खोवे ॥ तेल चटकी दधि मिश्रित भाषावाली तेरी, कृपा कीजिये भैरव, करो नहीं देरी ॥ पाँव घुँघरू बाजत अरु डमरू डमकावत, बटुकनाथ बन बालक, जन मन हरषावत ॥ श्रीभैरव की आरती जो कोई नर गावे, सो नर जग में निश्चित नर मनवांछित फल पावे ॥ साधना का समय👉 शाम 7 से 11 बजे के बीच। साधना की चेतावनी👉 इस साधना को बिना गुरु की आज्ञा के ना करें। साधना के दौरान खान-पान शुद्ध रखें। सहवास से दूर रहें। वाणी की शुद्धता रखें और किसी भी कीमत पर क्रोध न करें। साधना नियम व सावधानी 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ 1. भैरव साधना किसी मनोकामना पूर्ति के लिए की जाती है इसलिए अपनी मनोकामना अनुसार संकल्प बोलें और फिर साधना शुरू करें। 2. यह साधना दक्षिण दिशा में मुख करके की जाती है। 3. रुद्राक्ष या हकीक की माला से मंत्र जप किया जाता है। 4. भैरव की साधना रात्रिकाल में ही करें। 5. भैरव पूजा में केवल सरसो के तेल के दीपक का ही उपयोग करना चाहिए। 6. साधक लाल या काले वस्त्र धारण करें। 7. लड्डू के भोग का प्रशाद चढ़ाए तथा साधना के बाद में थोड़ा प्रशाद स्वरूप ग्रहण करें शेष लड्डुओं को कुत्तों को खिला दें। 8. भैरव को अर्पित नैवेद्य को पूजा के बाद उसी स्थान पर ग्रहण करना चाहिए। 9. भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य दिनों के अनुसार किया जाता है, जैसे रविवार को चावल-दूध की खीर, सोमवार को मोतीचूर के लड्डू, मंगलवार को घी-गुड़ अथवा गुड़ से बनी लापसी या लड्डू, बुधवार को दही-बूरा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने, शनिवार को तले हुए पापड़, उड़द के पकौड़े या जलेबी का भोग लगाया जाता है। 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️