किसे करना चाहिए शनिवार का व्रत, जानिए 10 खास बातें
*ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा 9415087711
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शनिवार का ग्रह शनि ग्रह है। *ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा ने साझा किया कि शनिवार की प्रकृति दारुण है। यह भगवान भैरव और शनि का दिन है। शनि हमारे जीवन में अच्छे कर्म का पुरस्कार और बुरे कर्म के दंड देने वाले हैं। कहते हैं कि जिसका शनि अच्छा होता है वह राजपद या राजसुख पाता है। यदि कुंडली में शनि की स्थिति निम्निलिखित अनुसार है तो शनिवारका व्रत करना चाहिए। *ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा से जानते हैं कि किसे शनिवार का व्रत रखना चाहिए।
1. यदि आपकी राशि मकर और कुंभ है तो आपको शनिवार का उपवास करना चाहिए।
2. यह ग्रह तुला में उच्च और मेष में नीच का होता है। यदि आपका शनि नीच का है तो आपको भी शनिवार का उपवास करना चाहिए।
3. यदि आपकी कुंडली में शनि सातवें भाव या ग्यारहवें भाव में या शनि मकर, कुंभ और तुला में है तो कोई बाद नहीं परंतु इसके अलावा किसी भाव में है तो शनिवार का उपवास करना चाहिए।
4. शनि के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षति ग्रस्त हो जाता है, नहीं तो कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है। यदि ऐसा है तो आपको शनिवार का उपवास करना चाहिए।
5 . अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं। अचानक आग लग सकती है। धन, संपत्ति का किसी भी तरह नाश होता है। समय पूर्व दांत और आंख की कमजोरी है तो आपको शनिवार के उपवास करना चाहिए।
6. यदि आपको लगाता है कि शनि की साढ़ेसाती या ढैया चल रही है तो भी आपको शनिवार का उपवास करना चाहिए।
7. यदि कुंडली में किसी भी प्रकार से पितृदोष है तो भी आपको शनिवार का उपवास करना चाहिए।
8. यदि आप बुरा कार्य और बुरे कर्म करते हैं और अब सुधरना चाहते हैं तो आपको शनिवार के उपाय के साथ ही शनिवार का व्रत रखना चाहिए।
9. शनि यदि कुंडली में सूर्य या केतु के साथ स्थिति है तो भी आपको शनिवार के उपवास करना चाहिए।
10. यदि आप जीवन में किसी तरह से भी मृत्यु तुल्य कष्ट नहीं चाहते हैं तो उपाय के सात ही शनिवार का व्रत रखना चाहिए।
शनि को यह पसंद नहीं : शनि को पसंद नहीं है जुआ-सट्टा खेलना, शराब पीना, ब्याजखोरी करना, परस्त्री गमन करना, अप्राकृतिक रूप से संभोग करना, झूठी गवाही देना, निर्दोष लोगों को सताना, किसी के पीठ पीछे उसके खिलाफ कोई कार्य करना, चाचा-चाची, माता-पिता, सेवकों और गुरु का अपमान करना, ईश्वर के खिलाफ होना, दाँतों को गंदा रखना, तहखाने की कैद हवा को मुक्त करना, भैंस या भैसों को मारना, सांप, कुत्ते और कौवों को सताना। शनि के मूल मंदिर जाने से पूर्व उक्त बातों पर प्रतिबंध लगाएं।
उपाय : सर्वप्रथम भगवान भैरव की उपासना करें। शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं। तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ, और जूता दान देना चाहिए। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलावे। छायादान करें, अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसो का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापो की क्षमा मांगते हुए रख आएं। दांत साफ रखें। अंधे-अपंगों, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखें।
सावधानी : कुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में हो तो भिखारी को तांबा या तांबे का सिक्का कभी दान न करें अन्यथा पुत्र को कष्ट होगा। यदि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला का निर्माण न कराएं। अष्टम भाव में हो तो मकान न बनाएं, न खरीदें।
*ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा 9415087711
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