✒ क्या आपने कभी भगवान को अपने सामने भोग लगाते हुए देखा है? कभी सोचा है हम मन्दिर में घी का दीपक क्यों जलाते हैं? रोशनी के लिए!! ईश्वर को प्रकाश दिखाने के लिए!! क्या ये सम्भव है कि हम दीपक से, दिन में भगवान् को रोशनी दिखाएँ? Tubelight या मोमबत्ती भी तो जला सकते हैं!!
मैं जब छोटा था और हमारे घर में जब कोई पिताजी से किसी ख़ास समस्या के लिए सहायता माँगता था जैसे न्यायालय में वाद जीतने के लिए, तो पिताजी हम लोगों से एक बड़ा घी का दीपक् जलवाते थे तथा हमारा दायित्त्व होता था कि उस दीपक में घी समाप्त नहीं होना चाहिए (सहस्त्रबाहू का दीपक)।
7 दिन, 10 दिन या 15 दिन के लिए वो दीपक जलता था। तब समझ नहीं आता था कि इससे क्या होता है। पर आश्चर्यजनक रूप से परिणाम उस आदमी के पक्ष में ही आता था।
याज्ञवल्क्य पुराण में अग्निदेव की स्तुति है जिसमें उनकी अनेक जिह्वा बताई गयी हैं तथा उनको देवताओं का मुख कहा गया है। जब हम दीपक जलाते हैं तो मुख्यरूप से हम ईश्वर को, उस घी का, जिससे वो दीपक जल रहा है, उसका भोग लगा रह होते हैं। अग्निदेव उसी समय उस घी को ग्रहण कर लेते हैं।
आपने ये भी सुना होगा कि कुछ लोग हविष्यान्न ही खाते हैं अर्थात जो कुछ हवनकुण्ड से बचता है उसी को खाते हैं क्योंकि वह ही असल में ईश्वर का बचा हुआ उच्छिष्ट है, जिसे हमें प्रसाद स्वरूप ग्रहण करना चाहिए।
इसीलिए प्रातः काल तथा सन्ध्या को वेदों में अग्नि की स्थापना का विधान है कि ईश्वर को भोग लगा कर ही दिन का आरम्भ करना चाहिए। अब क्योंकि लोग हवन नहीं कर सकते हैं (या नहीं करते हैं) तो भी घी का दीपक अवश्य जलाना चाहिए।
आगे अग्निदेवता की स्तुति में कहा गया है कि वो पवित्र और अपवित्र सभी वस्तुओं का भोग लगाते हैं क्योंकि उनका स्पर्श कर सब वस्तुएँ स्वयं ही पवित्र हो जाती हैं। इसलिए अग्निदेव के लिए कुछ भी पवित्र अथवा अपवित्र नहीं है। आपने ध्यान दिया होगा कि हवन के बाद पण्डित जी, हवन भस्म को शरीर पर लगाने के लिए कहते हैं क्योंकि वह परम पवित्र है। इसमें भी सबसे पवित्र क्या, पञ्चभूतों की भस्म। पञ्चभूतों की भस्म यानि चिता की भस्म। चिता की भस्म किसको सबसे प्रिय है? शंकर जी को। क्यों, क्योंकि अग्निदेव पञ्चभूतों को भस्म करके उसे भी पवित्र बना देते हैं तथा वो विशिष्ट भस्म है क्योंकि वो पञ्चभूतों के समुदाय को जलाकर ही उत्पन्न हुई है तथा यही भगवान् रुद्र की विशेष प्रिय है क्योंकि यही जीवन के विनाश का प्रतीक है तथा रुद्र भगवन का प्रिय कर्म है। चिता भस्म जीवन की क्षणभंगुरता का प्रतीक है इसीलिए सबसे विशिष्ट प्रसाद है।
यस्य आज्ञा जगत्सृष्टा, विरंचि पालको हरिः।
संहर्ता कालरुद्राख्यो, नमस्तस्यै पिनाकिने॥
"जिनकी आज्ञा से ब्रह्माजी संसार की सृष्टि करते हैं, जिनकी आज्ञा से श्रीहरि विष्णु जगत का पालन करते हैं तथा रुद्र संसार का संहार करते हैं, ऐसे भगवान पिनाकिन (पिनाक धनुष को धारण करने वाले, भगवान् शिव) को मैं नमस्कार करता हूँ।"
बोलिये, शंकर भगवान की जय....
नोट - इसीलिए सनातन धर्म में घी के दीपक की महत्ता है, मोमबत्ती जलाने की नहीं। मोमबत्ती में आप अग्नि देवता को Chemical खिला रहे हैं, जो कि अन्न नहीं है। अतः दीपावली पर दीपक ही जलाएं, बिजली के दीपक या मोमबत्ती नहीं। 🌏
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