वट सावित्री अमावस्या आज
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आदर्श नारीत्व का प्रतीक है यह व्रत
आज यानी 10 जून को महिलाएं वट-सावित्री व्रत-पूजन करेंगी। वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को किया जाता है। महिलाएं यह व्रत सौभाग्य की कामना एवं संतान प्राप्ति के लिए करती हैं। भारतीय संस्कृति में वट सावित्री व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक माना गया है।
वट सावित्री व्रत कथा
स्कन्द पुराण के अनुसार, भद्र देश के राजा अश्वपति को कोई संतान नहीं था, जिस कारण राजा अश्वपति सदैव कुण्ठित रहते थे। तत्पश्चात उन्होंने अपने राज्य पुरोहित से इस संदर्भ में कोई माध्यम बताने का अनुरोध किया। राज्य पुरोहित ने कहा, हे राजन आप सावित्री देवी की पूजा करें।
माँ सावित्री प्रसन्न होकर आपको मनोवांछित वर अवश्य देंगी। राजा अश्वपति ने संतान प्राप्ति के लिए कई वर्षों तक तपस्या की जिससे माँ सावित्री अति प्रसन्न हुईं। माँ सावित्री ने प्रकट होकर उन्हें पुत्री प्राप्ति का वर दिया। तदोपरांत राजा अश्वपति के घर में एक पुत्री का जन्म हुआ। राजा अश्वपति ने माँ सावित्री के नाम पर अपनी पुत्री का नाम भी सावित्री रखा।
समय के साथ सावित्री बड़ी होती गई। सावित्री सब गुणों से सम्पन्न कन्या थी। जिस कारण राजा अश्वपति को सावित्री के योग्य वर नही मिल पा रहा था। कुछ समय पश्चात राजा ने सावित्री को स्वंय वर तलाशने के लिए कहा। सावित्री अपने वर की तलाश में एक वन में जा पहुंची जहां उसकी मुलाकात साल्व देश के राजा द्युमत्सेन से हुई।
द्युमत्सेन का राज छिन गया था जिस कारण साल्व के राजा अपने परिवार सहित उसी वन में रहते थे। सावित्री ने जब राजा के पुत्र सत्यवान को देखा तो सावित्री ने उन्हें देखते ही पति रूप में वरण कर लिया। यह बात जब महर्षि नारद को ज्ञात हुई तो उन्होंने इस सन्दर्भ में राजा अश्वपति को बताया कि आपकी कन्या को वर ढूंढने में भारी भूल हुई है।
राजकुमार सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा हैं परन्तु सत्यवान अल्पायु है एवं एक वर्ष पश्चात उसकी मृत्यु हो जाएगी। जिससे राजा अश्वपति पुन: चिंतित हो गए। उन्होंने अपनी बेटी सावित्री को समझाया कि कोई और वर चुन लो परन्तु सावित्री बोली, पिताजी आर्य कन्याएं अपने पति का वरण सिर्फ एक बार करती हैं तथा कन्यादान भी एक बार ही किया जाता है। अब भगवान की जो इच्छा हो, मैं सत्यवान की हीं अद्र्धांगिनी बनूँगी।
इसके बाद राजा अश्वपति ने दोनों को परिणय सूत्र में बांध दिया। सावित्री ससुराल पहुंच कर सास-ससुर की सेवा में रत हो गई। समय के साथ वो दिन भी आ गया जिस दिन राजकुमार की मृत्यु विधान के अंतर्गत सुनिश्चित थी। सत्यवान उस दिन भी जंगल में लकड़ी काटने चला गया। सावित्री भी अपने सास-ससुर से आज्ञा लेकर अपने पति के साथ पास पहुंच गयी।
सत्यवान वृक्ष पर चढ़ कर जैसे ही लकड़ी काटने लगा, तभी सत्यवान का सर चकराने लगा, वह तुरंत वृक्ष से नीचे उतर आया। उस समय सावित्री ने उसे अपने गोद में सुला लिया, तभी यमराज आकर सत्यवान के जीवन को लेकर जाने लगा तब सावित्री भी उसके पीछे-पीछे चल दी। यम ने मुड़कर सावित्री को जाने को कहा, सावित्री फिर भी चलती रही।
तत्पश्चात यम ने कहा तुम्हें क्या चाहिए? मनवांछित फल मांगो। सावित्री ने अपने सास-ससुर की काया तथा राजपाट मांग लिया। यम ने कहा ऐसा ही होगा। फिर यम आगे बढ़ा तो सावित्री भी पीछे-पीछे चलती रही। यम ने फिर मुड़कर सावित्री को जाने के लिए कहा। सावित्री बोली मैं साथ में जाउंगी। यम ने कहा, तुम्हे और क्या चाहिए?
सावित्री बोली, मुझे सौ पुत्रों की माँ बनना है। यम ने कहा तथास्तु! फिर भी सावित्री यम के पीछे चलती रही। यम ने कहा अब क्या चाहिए? तुम्हारे कहे अनुसार मैंने तुम्हें मनवांछित वर दे दिया है, अब लौट जाओ। सावित्री बोली, हे यम देव पत्नीव्रता के कत्र्तव्य का निर्वाह कर रही हूँ। आपने तो सौ पुत्रों का माँ बनने का वरदान दे दिया परन्तु मैं पति के बिना माँ कैसे बनूँगी। अत: आप अपने दिए गए वरदान को पूरा करें। तत्पश्चात यम सोचने लगे अब क्या करें, अंत में यमराज ने सत्यवान के प्राण को मुक्त कर दिया। सावित्री अपने पति के प्राण को लेकर उस वृक्ष के नीचे पहुंची जहाँ वह बेहोश हुआ था, वहां सावित्री ने देखा सत्यवान जीवित हो उठा यह। दोनों हर्षित होकर अपने माता-पिता के पास पहुंचे जहाँ उनके माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई थी। तथा उनका राजपाट भी वापस मिल गया था। कहते हैं कि आगे चिरकाल तक सावित्री तथा सत्यवान सुख भोगते रहे।
वट सावित्री पूजा महत्व
पीपल की भांति वट वृक्ष का भी विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से सौभाग्य एवं संतान की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता अनुसार वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का वास होता है। वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन करने और व्रत कथा सुनने से समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
वट सावित्री पूजन विधि
वट सावित्री व्रत के दिन माँ सावित्री के साथ यम देव की भी पूजा करनी चाहिए। कहते हैं कि इसी दिन सावित्री ने अपने मृत पति को धर्मराज यम से पुन: जीवित करने का वर प्राप्त किया था जिससे सावित्री का पति सत्यवान जीवित हो उठा था। इस दिन व्रती को मिट्टी से निर्मित माँ सावित्री तथा यमराज की प्रतिमा का पूजन विधि-विधान पूर्वक करना चाहिए।
वट सावित्री की पूजा वट वृक्ष के नीचे करनी चाहिए। माँ सावित्री की पूजा रोली, केसर, सिंदूर, धूप-चन्दन आदि से करें एवं सती सावित्री की कथा सुनें।
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