1. भवन का मुख्य द्वार सदैव पूर्व या उत्तर में ही होना चाहिए
पं वेद प्रकाश तिवारी ज्योतिष एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
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1=ऐसा ना हो तो घर के मुखय द्वार पर सोने चांदी अथवा तांबे या पंच धतु से निर्मित 'स्वास्तिक' को प्राण प्रतिष्ठा करवाकर लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है और घर से वास्तु दोष दूर होते है ।
2. नेत्रत्य और दक्षिण दिशा की दीवारें ईशान और उत्तर की दीवारों से मोटी होनी चाहिए।
3. भवन में पानी की टंकी छत के ऊपर नेत्रत्य कोण में ही रखनी चाहिए । इसके अतिरिक्त नेत्रत्य कोण में कोई एंटीना अथवा लोहे का डंडा भी अवश्य ही लगवाना चाहिए जिससे वह दिशा सदैव भवन में सबसे ऊँची और भारी रहे ।
4. भवन में दक्षिण की जगह उत्तर और पश्चिम की जगह पूर्व में अधिक खाली स्थान रहने से भवन स्वामी को शुभ फल प्राप्त होते है ।
5. भवन के पानी की निकासी उत्तर पूर्व अथवा पूर्व उत्तर की तरफ से ही होनी चाहिए ।
6. भवन में दक्षिण की तुलना में उत्तर और पश्चिम की तुलना में पूर्व अधिक नीँचा रहना चाहिए, ईशान दिशा सबसे नीची होनी चाहिए ।
7. भवन के पूर्व, ईशान, उत्तर एवं वायव्य में हल्का सामान रखे और दक्षिण और नैत्रत्य दिशा में भारी सामान रखे इससे भवन में संतुलन बना रहता है और नकारत्मक ऊर्जा उत्पन्न नहीं होती है ।
8. भवन के नेत्रत्य कोण को हमेशा ऊँचा और भारी रखें । भवन के मुखिया का कक्ष भी यहीं पर बनवाएं इससे उसका घर पर प्रभुत्व बना रहता है और सम्मान एवं धन की भी प्राप्ति होती है । इसके अतिरिक्त भवन में रहने वाले बूढ़े बुजुर्गों का कमरा भी नैत्रत्य अथवा दक्षिण में ही बनवाएं ।
9. भवन के पूर्व और उत्तर में ऊँचे भवन, निर्माण और ऊँचे बड़े पेड़ उस भवन स्वामी को दरिद्र बनाते है लेकिन दक्षिण और पश्चिम में बड़े भवन और बड़े पेड़ घर में सुख और समृद्धि लाते है। अत: अगर घर में या घर से मिले हुए पूर्व और उत्तर में ऊँचा निर्माण है तो या तो अपनी नैत्रत्य दिशा ( दक्षिण पश्चिम ) को ऊँचा करवा लें अथवा नैत्रत्य दिशा में कोई ऊँचा ऐन्टीना अथवा ऊँची लोहे की राड लगवा दें जिससे वह सबसे ऊँचा हो जाय, इससे जीवन में धन, यश की प्राप्ति के साथ ही आपके प्रभुत्व में भी वृद्धि होगी ।
10. कभी भी पूजाघर, रसोईघर और शौचालय एक दूसरे के पास नहीं बनाना चाहिए
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