।। नारायण नारायण ।। देवर्षि नारद जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं Jyotish Aacharya Dr Uma Shankar Mishra 94150 877 11 नारद मुनि भगवान विष्णु के परम भक्त हैं। इसलिए नारद जयंती के अवसर पर भगवान विष्‍णु और माता लक्ष्‍मी की पूजा करने के बाद ही नारद मुनि की पूजा की जाती है. ऐसा करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है। भगवान विष्णु के परम भक्त नारद मुनि का जन्म ब्रह्मा जी की गोद में हुआ था। नारद मुनि ब्रम्हांड में घट रही सभी घटनाओं की जानकारी एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया करते थे। नारद मुनि का आदर केवल देवता ही नहीं बल्कि असुर भी किया करते थे। शास्त्रों में उल्लेख के अनुसार 'नार' शब्द का अर्थ जल है। ये सबको जलदान, ज्ञानदान करने एवं तर्पण करने में निपुण होने की वजह से नारद कहलाए। अथर्ववेद में भी अनेक बार नारद नाम के ऋषि का उल्लेख है। प्रसिद्ध मैत्रायणी संहिता में नारद को आचार्य के रूप में सम्मानित किया गया है। कुछ स्थानों पर नारद का वर्णन बृहस्पति के शिष्य के रूप में भी मिलता है। अविरल भक्ति के प्रतीक और ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाने वाले देवर्षि नारद का पुराणों में विस्तार से बारम्बार वर्णन आता है। आम आदमी नारद को भिड़ाऊ और कलह- विशेषज्ञ मानता है, परंतु इनकी यह छवि सर्वथा असत्य है क्योंकि नारद का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक भक्त की पुकार भगवान तक पहुंचाना है। नारद विष्णु के महानतम भक्तों में माने जाते हैं और इन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त है। हालांकि इस अवस्था को प्राप्त करने के पूर्व नारद के भी अनेक जन्म होना बताया गया है। भगवान विष्णु की कृपा से ये सभी युगों और तीनों लोकों में कहीं भी प्रकट हो सकते हैं। सनकादिक ऋषियों के साथ भी नारदजी का उल्लेख आता है। भगवान सत्यनारायण की कथा में भी उनका उल्लेख है। नारद अनेक कलाओं में निपुण माने जाते हैं। ये वेदांतप्रिय, योगनिष्ठ, संगीत शास्त्री, औषधि ज्ञाता, शास्त्रों के आचार्य और भक्ति रस के प्रमुख माने जाते हैं। ये भागवत मार्ग प्रशस्त करने वाले देवर्षि हैं और 'पांचरात्र' इनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ है। वैसे 25 हजार श्लोकों वाला प्रसिद्ध नारद पुराण भी इन्हीं द्वारा रचा गया है। पुराणों में इन्हें भगवान के गुण गाने में सर्वोत्तम और अत्याचारी दानवों द्वारा जनता के उत्पीड़न का वृतांत भगवान तक पहुंचाने वाला त्रैलोक्य पर्यटक माना गया है। कई शास्त्र इन्हें विष्णु का अवतार भी मानते हैं और इस नाते नारदजी त्रिकालदर्शी हैं। नारद एक ऐसे पौराणिक चरित्र हैं, जो तत्वज्ञान में परिपूर्ण हैं। भागवत के अनुसार नारद अगाध बोध, सकल रहस्यों के वेत्ता, वायुवत सबके अंदर विचरण करने वाले और आत्म साक्षी हैं। नारद मुनि के जन्म की कथा - पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद मुनि भगवान ब्रम्हा की गोद से पैदा हुए थे. लेकिन इसके लिए उन्हें अपने पिछले जन्मों में कड़ी तपस्या से गुजरना पड़ा था. कहते हैं पूर्व जन्म में नारद मुनि गंधर्व कुल में पैदा हुए थे और उनका नाम 'उपबर्हण' था. पौराणिक कथाओं के अनुसार उन्हें अपने रूप पर बहुत ही घमंड था. एक बार कुछ अप्सराएं और गंधर्व गीत और नृत्य से भगवान ब्रह्मा की उपासना कर रहे थे. तब उपबर्हण स्त्रियों के साथ श्रृंगार भाव से वहां आया. ये देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित हो उठे और उस उपबर्हण को श्राप दे दिया कि वह 'शूद्र योनि' में जन्म लेगा. ब्रह्मा जी के श्राप से उपबर्हण का जन्म एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में हुआ. दोनों माता और पुत्र सच्चे मन से साधू संतो की सेवा करते. पांच वर्ष की आयु में उसकी मां की मृत्यु हो गई. मां की मृत्यु के बाद उस बालक ने अपना पूरा जीवन ईश्वर की भक्ति में लगाने का संकल्प लिया. कहते हैं एक दिन जब वह बालक एक वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठा था तब अचानक उसे भगवान की एक झलक दिखाई पड़ी जो तुरंत ही अदृश्य हो गई. इस घटना ने नन्हें बालक के मन में ईश्वर को जानने और उनके दर्शन करने की इच्छा जाग गई. निरंतर तपस्या करने के बाद एक दिन अचानक आकाशवाणी हुई कि इस जन्म में उस बालक को भगवान के दर्शन नहीं होंगे बल्कि अगले जन्म में वह उनके पार्षद के रूप उन्हें पुनः प्राप्त कर सकेगा. अपने अगले जन्म में यही बालक ब्रह्मा जी के ओरस पुत्र कहलाए और पूरे ब्रम्हांण में नारद मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए. ब्रह्मा जी के श्राप से नारद मुनि रह गए अविवाहित कहते हैं सृष्टि में लगातार खबरों का प्रचार करने वाले नारद मुनि जीवनभर अविवाहित रहे. उनके अविवाहित रहने के पीछे भी एक कथा प्रसिद्ध है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को सृष्टि के कामों में उनका हाथ बटाने और विवाह करने के लिए कहा था किन्तु नारद जी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने से इंकार कर दिया था. ब्रह्मा जी ने उन्हें लाख समझाया लेकिन देवऋृषि ने उनकी बात नहीं मानी तब गुस्से में भरे हुए ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को जीवनभर अविवाहित रहने का श्राप दे दिया. देवऋृषि नारद जीवनभर कभी एक जगह टिक कर नहीं रह पाए. वो हमेशा इधर-उधर विचरण करते रहे. ऐसा करना उनकी आदत नहीं थी बल्कि इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है. दरअसल, राजा दक्ष की पत्नी आसक्ति ने 10 हज़ार पुत्रों को जन्म दिया था. लेकिन इनमें से किसी ने भी उनका राज पाट नहीं संभाला क्योंकि नारद जी ने सभी को मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया था. इसके बाद उन्होंने पंचजनी से विवाह किया और उन्होंने एक हजार पुत्रों को जन्म दिया. नारद जी ने दक्ष के इन पुत्रों को भी सभी प्रकार के मोह माया से दूर रहकर मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया. इस बात से राजा दक्ष को बहुत क्रोध आया, जिसके बाद उन्होंने नारद मुनि को श्राप दे दिया और कहा कि वह हमेशा इधर-उधर भटकते रहेंगे और एक स्थान पर ज्यादा समय तक नहीं टिक पाएंगे. जिसके बाद नारद मुनि कभी एक जगह पर नहीं टिक पाए. ।। आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो ।।