हनुमान सम नहिं बड़भागी I
नहीं कोउ राम चरन अनुरागी ।।
Jyotish Aacharya Dr Umashankar Mishra 9415 087 711
आदरणीय मित्रगण यह प्रसंग उत्तर कांड मे है जहॉ श्री सरकार जी चारो भाइयो एवं हनुमान जी सहित बगीचे मे हैं | हनुमान जी पंखा झल रहे हैं यह देख पार्वती जी से भोला बाबा कह रहे हैं कि देखिए यहॉ *श्री सरकार अपने अन्य तीनो अंशो के साथ है और मै श्री सरकार को पंख झल रहा हू मेरे जैसा बड़भागी कौन होगा जो श्री सरकार के चरन अनुरागी है | श्री सरकार के अन्य तीनो भाई भी उन्ही के अंश है इसलिए वो चरन अनुरागी तो होगे नही न ,बचा मै हनुमान रुप मे तो यह मेरा बडे भाग्य की ही तो बात है |
पर केवल इसी कारण हनुमान जी बड़भागी और रामचरण अनुरागी नही है बल्कि
श्री हनुमानजी की सेवा भावना और परायणता ऐसी अद्भूत थी कि श्री सरकार, लखन लाल ,भरत जी, मईया सीता सहित समस्त अवध वासी भी उनके ऋणी बन गए थे |
इतना महान होकर भी बीर बजरंगी श्री सराकार जी के समक्ष सदैव निराभिमानता की प्रतिमूर्ति ही रहे | उनकी यह निरहंकारिता अनेक स्थलो पर देखने मे आती है | जब श्री पवन सुत लंका से मईया की खबर लेकर आते हैं और श्री सरकार सब जानकर उनकी सराहना करने लगते हैं तब दैन्य की मूर्ति अञ्जनी नंदन बडी विनम्रता से कहते हैं-
साखामृग कै बडि मनुसाई | साखा ते साखा पर जाई ||नाघि सिंधु हाटकपुर जारा | निसिचर गन बधि बिपिन उजारा ||सो सब तव प्रताप रघुराई | नाथ न कछू मोरि प्रभुताई||
ऐसे ही निरभिमानी श्रीहनुमानजी के प्रति सभी अवध वासी भी चिर ऋणी है | वनगमन के समय मईया कौशल्या कहती है कि
अवधि अंबु प्रिय परिजन मीना |तुम करुनाकर धरम धुरीना ||अस बिचारि सोइ करहु उपाई|सबहि जिअत जेहि भेंटहु आई ||
श्रीसरकार के वन गमन के बाद सब लोग उनके दर्शन हेतू नियम उपवास करने लगे-
राम दरस लगि लोग सब करत नेम उपबास | तजि तजि भूषण भोग सुख जिअत अवधि कीं आस ||
अब प्रतिज्ञावधि बीतने को आयी है एक दिन शेष रह गया है श्री भरत जी कुशासन पर बैठ कर प्रतीक्षा करने लगे-
रहेउ एक दिन अवधि अधारा | समुझत मन दुख भयउ अपारा ||
भरत जी सोच रहे हैं कि आज श्री सरकार नही आये तो अयोध्या वासी मर जाएगे | जल रुपी सरकार ही नही रहेगे तो प्रजा रुपी मछली कैसे जियेगी | यह सोच कर भरत जी ही अपने शरीर का सबसे पहले स्वंय त्याग करना चाहा ,उसी समय श्री हनुमान जी आकर देख रहे हैं-
बैठे देखि कुसासन जटा मुकुट कृस गात | राम राम रघुपति जपत स्रवत नयन जलजात ||
भरत जी की स्थिति देखकर हनुमान जी गदगद हो गये और पून श्री सरकार आगमन का समाचार सुनाकर श्री हनुमान जी ने न केवल भरत जी अपितु सम्पूर्ण अवध वासियो के जीवन की रक्षा की |जिस प्रकार से हनुमान जी के श्री भरत जी, माता कौशल्यादि जी तथा अवध वासीगण ऋणी हैं उसी प्रकार श्रीसरकार ,लखन जी, और सीता जी भी ऋणी हैं | संजीवनी बुटी लाकर जहॉ लखन जी का जीवन बचाए वही लखन जी के वियोग मे विलाप करते हूए श्री सरकार को भी प्रसन्न कर अपना ऋणी बनाए |
इसी प्रकार *कृतज्ञ हैं भगवती मईया भी हनुमान जी की | लंका विजय के बाद श्रीसरकार ने मईया के पास इनको भेजे जहॉ दर्शन और नमन के उपरान्त मईया से कहते हैं-
सब बिधि कुसल कोसलाधीसा | मातु समर जीत्यो दससीसा || अबिचल राजु बिभीषन पायो | सुनि कपि बचन हरष उर छायो ||
यह सुनते ही मईया के ह्रदय मे अत्यन्त हर्ष हुआ | उनका शरीर पुलकित हो गया और वो खुशी के आसु युक्त आखो मे भरे हुए बार बार बोलने लगी-
का देउँ तोहि त्रैलोक महँ कपि किमपि नहिं बानी समा |
वजरंग वलि कहते है क्या सो देखिए दूसरा दूत रहता तो क्या नही मांग लेता पर देखे
सुनु मातु मै पायो अखिल जग राजु आजु न संसयं | रन जीति रिपुदल बंधु जुत पस्यामि राममनामयं ||
मंगलमूर्ति हनुमानजी सकल अमंगलों को मूल से विनष्ट कर देते हैं । उनका चरित अपार है, अनंत है ।
हनुमानजी मानस में पंचप्राणों के रक्षक हैं । कंबराणमायण के अनुसार ये”मुख्यप्राण” हैं।
हमारे शरीर में पंचप्राण-प्राण,अपान,समान, व्यान और उदान हैं । *मानस के पंचप्राण -सीताजी,भरतजी, लक्ष्मणजी, सुग्रीवजी और बंदर हैं । हम जानते हैं कि सीता जी को अशोक बाटिका में जाकर, श्री राम वनगमन की अवधि पूरी होने पर भरतजी के लिए अयोध्या जाकर, लक्ष्मण जी के मूर्छित होने पर रातोंरात संजीवनी लाकर, सुग्रीव को जब लक्ष्मण क्रोधित होकर मारने आए तब समझाकर और प्यासे बानरों को गुफा में ले जाकर-इन सभी के प्राणों की रक्षा हनुमानजी ने की।
ऐसी महान सेवा से ही *श्री हनुमान जी ने सभी को ऋणी बना लिए |हनुमान जी जैसा भाग्यवान् कौन होगा ? इसलिए ही तो -
हनुमत सम नही कोउ बड़भागी!
नही कोउ राम चरण अनुरागी!!
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