“अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: ” Jyotish Aacharya Dr Umashankar Mishra 94150 877 11 इस श्लोक के अनुसार अहिंसा ही मनुष्य का परम धर्म हैं और जब जब धर्म पर आंच आये तो उस धर्म की रक्षा करने के लिए की गई हिंसा उससे भी बड़ा धर्म हैं। - महाभारत धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ।। ‘‘जो पुरूष धर्म का नाश करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है । इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात् त्याग कभी न करना चाहिए प्रतिकृतिं कुर्यात हिंसेन प्रतिहिंसनम। तत्र दोषो न पतति दुष्टे दौष्ट्यं समाचरेत॥ उपकारी के साथ उपकार हिंसक के साथ प्रतिहिंसा दुष्ट के साथ दुष्टता अगर दुष्ट व्यक्ति के साथ अच्छे से बर्ताव करेंगे तो उसका दिमाग उड़ने लगेगा। इससे वह सामने वाले को कमजोर और डरपोक समझेगा। बुद्धि बल से सामने वाले के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए, जिससे ऐसा प्रतित हो कि सामने वाला कमजोर नहीं है।