यावत् जीवेत् सुखम् जीवेत्। ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्।
भस्मिभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः।
Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra 94150 8771 1923 57 22996
....चार्वाक इस श्लोक में कहता है की मनुष्य को एकही जन्म मिलता है इसीलिए जबतक हम जिंदा है तब तक सुख से अपना जीवन व्यतीत करें .... अगर आपको घी पीने की इच्छा हो तो कर्ज लेके पिए किंतु अवश्य पिए ( यानी की जीवन का उपभोग घेते वक्त कंजूस न बने)....ये कहकर चार्वाक अंतिम में कहता है इसीलिए जीवन का पूर्णत: उपभोग लीजिए क्योंकि भस्मीभूत शरीर यानी मरने के बाद ये शरीर थोडिही वापिस आयेगा???
🌹सारांश यह है कि बेटे पोतो के लीये शरीर की एनर्जी ज्यादा नष्ट करके धन इकट्ठा करने में कोई फायदा नहीं है, जिस दिन बेटा या पोता को धन की जरूरत होगी यदि उसके कर्म अच्छे होंगे तो परमात्मा उसकी व्यवस्था ऊसकी योग्यता वह कर्म के हिसाब से करवा ही देंगे - हे महान मानव ज्यादा टेंशन नहीं लो यार डिप्रेशन का शिकार होकर जीवन को मत जियो आजाद परिंदे की तरह जियो अपना कर्म करते रहो सौ वर्ष का पूर्ण जीवन जीये बस इसी में सार है 🌹
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