।।#पितृदोषमहानसमस्या।।
Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra 9415 087 711 923 5722 996
अपने कुल के जो पूर्वज जो #निसंतान चले गए हैं वे पितृयोनि में रहते हैं।
जिनकी अपमृत्यु हो गई है तथा जिनका क्रियाकर्म शास्त्र विधि से नहीं हुआ है वे #प्रेत योनि में चले जाते हैं।
जिसका परिणाम आज घर घर में सामने आ रहा है।
पारिवारिक कलह,रोग,बरकत न होना, #पुत्र संतान न होना , ये कारण प्रेतदोष के होते हैं।
और ध्यान दें कि देवताओं की पूजा से भी पहले पितृपूजन आवश्यक है अन्यथा देवपूजन का अधिकार नहीं मिलता है।
राम,कृष्ण, शिव, विष्णु आदि
देवता पूजा न करें तो बुरा भी नहीं मानते हैं क्योंकि इनकी पूजा वैश्विक स्तर पर हर जगह हो जाती है ।
लेकिन आपके पूर्वजों की पूजा आपकी जिम्मेदारी है कोई दूसरा उनको क्यों पूजेगा ??
इसलिए घर को पितृदोष से अवश्य बचाएं तथा सुख,शांति चाहिए तो आगामी पीढियों को भी इस गंभीर विषय के अनुपालन की महत्ता बताएं यदि बरबाद होने से बचना चाहते हैं तो।
क्योंकि कितनी ही अनाप-शनाप कमाई कर लिजिए यदि---
*संतान नहीं हुई
* संतान नालायक हुई
* असाध्य रोग
*मुकदमेबाजी
ये पितृदोष के लक्षण यदि आपके घर में हैं तो आपकी वह कमाई देखते ही देखते नष्ट हो जाएगी।
(#सेठों को देखकर ही कुछ सीख लिजिए। सारे सेठ ब्राह्मणों/कुलपुरोहितों से सदियों से संपर्क बनाए हुए हैं धार्मिक और खुशहाल जीवन जी रहे हैं)
इसके लिए कुलपुरोहित/विद्वान से परामर्श लें तथा अपने कुल में पिंडदान और तर्पण से पितृपूजन की परम्परा नष्ट न होने दें।
यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप और आपकी संतान इस विषय की महत्ता समझें।
अपने घर में अपनी जाति की बहु ही लाएं अन्यथा #वर्णसंकर पैदा होंगे जो समस्त पूर्वजों और आपको नरक में धकेल देंगे।
गीता में स्पष्ट लिखा है कि---
#संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।। 1/42 ।।
लुप्त हुई पिण्ड और जल की क्रिया वाले अर्थात् श्राद्ध और तर्पण से वंचित इनके पितर लोग भी अधोगति को प्राप्त होते हैं ।
प्रश्न- ‘कुलघाती’ किनको कहा गया है और इस श्लोक में ‘कुलस्य’ पद के साथ ‘च’ अव्यय का प्रयोग करके क्या सूचित किया गया है?
उत्तर- ‘कुलघाती’ उनको कहा गया है, जो युद्धादि में अपने कुल का संहार करते हैं और ‘कुलस्य’ पद के साथ ‘च’ अव्यय का प्रयोग करके यह सूचित किया गया है कि वर्णसंकर सन्तान केवल उन कुलघातियों को ही नरक पहुँचाने में कारण नहीं बनती, वह उनके समस्त कुल को भी नरक में ले जाने वाली होती है।
प्रश्न- ‘लुप्त हुई पिण्ड और जल की क्रिया वाले इनके पितरलोग भी अधोगति को प्राप्त हो जाते है’ इसका क्या भाव है?
उत्तर- श्राद्ध में जो पिण्डदान किया जाता है और पितरों के निमित ब्राह्मण-भोजनादि कराया जाता है वह ‘पिण्डक्रिया’ है और तर्पण में जो जलांजलि दी जाती है वह ‘उदकक्रिया’ है; इन दोनों के समाहार को पिण्डोदक क्रिया कहते हैं। इन्हीं का नाम श्राद्ध-तपर्ण है। शास्त्र और कुल-मर्यादा को जानने-माननेवाले लोग श्राद्ध-तर्पण किया करते हैं। परंतु कुलघातियों के कुल में धर्म के नष्ट हो जाने से जो वर्णसंकर उत्पन्न होते हैं, वे अधर्म से उत्पन्न और अधर्माभिभूत होने से प्रथम तो श्राद्ध-तर्पणादि क्रियाओं को जानते ही नहीं, कोई बतलाता भी है तो श्रद्धा न रहने से करते नहीं और यदि कोई करते भी हैं तो शास्त्र-विधि के अनुसार उनका अधिकार न होने से वह पितरों को मिलती नहीं। इस प्रकार जब पितरों को संतान के द्वारा पिण्ड और जल नहीं मिलता तब उनका पतन हो जाता है।
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