राम रक्षा स्त्रोत एवं राम रक्षा स्त्रोत पढ़ने की विधि रामरक्षा स्तोत्र के पढ़ने से प्रयोजन की सिद्धि ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 94150 87711 राम रक्षा स्त्रोत को ग्यारह बार एक बार में पढ़ लिया जाए तो पूरे दिन तक इसका प्रभाव रहता है। अगर आप रोज ४५ दिन तक राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करते हैं तो इसके फल की अवधि बढ़ जाती है। इसका प्रभाव दुगुना तथा दो दिन तक रहने लगता है और भी अच्छा होगा यदि कोई राम रक्षा स्त्रोत को नवरात्रों में प्रतिदिन ११ बार पढ़े । सरसों के दाने एक कटोरी में दाल लें। कटोरी के नीचे कोई ऊनी वस्त्र या आसन होना चाहिए। राम रक्षा मन्त्र को ११ बार पढ़ें और इस दौरान आपको अपनी उँगलियों से सरसों के दानों को कटोरी में घुमाते रहना है। ध्यान रहे कि आप किसी आसन पर बैठे हों और राम रक्षा यंत्र आपके सम्मुख हो या फिर श्री राम कि प्रतिमा या फोटो आपके आगे होनी चाहिए जिसे देखते हुए आपको मन्त्र पढ़ना है। ग्यारह बार के जाप से सरसों सिद्ध हो जायेगी और आप उस सरसों के दानों को शुद्ध और सुरक्षित पूजा स्थान पर रख लें। जब आवश्यकता पड़े तो कुछ दाने लेकर आजमायें। सफलता अवश्य प्राप्त होगी। वाद विवाद या मुकदमा हो तो उस दिन सरसों के दाने साथ लेकर जाएँ और वहां दाल दें जहाँ विरोधी बैठता है या उसके सम्मुख फेंक दें।  सफलता आपके कदम चूमेगी। खेल या प्रतियोगिता या साक्षात्कार में आप सिद्ध सरसों को साथ ले जाएँ और अपनी जेब में रखें। अनिष्ट की आशंका हो तो भी सिद्ध सरसों को साथ में रखें। यात्रा में साथ ले जाएँ आपका कार्य सफल होगा। राम रक्षा स्त्रोत से पानी सिद्ध करके रोगी को पिलाया जा सकता है परन्तु पानी को सिद्ध करने कि विधि अलग है।  इसके लिए ताम्बे के बर्तन को केवल हाथ में पकड़ कर रखना है और अपनी दृष्टि पानी में रखें और महसूस करें कि आपकी सारी शक्ति पानी में जा रही है। इस समय अपना ध्यान श्री राम की स्तुति में लगाये रखें। मन्त्र बोलते समय प्रयास करें कि आपको हर वाक्य का अर्थ ज्ञात रहे। श्रीरामरक्षास्तोत्र ॐ श्रीगणेशाय नमः अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमंत्रस्य बुधकौशिक ऋषिः  श्रीसीतारामचंद्रो देवता . अनुष्टुप् छंदः  सीता शक्तिः . श्रीमद् हनुमान कीलकम्  श्रीरामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः अथ ध्यानम् ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थम्  पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्  वामांकारूढ सीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभम्  नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामंडनं रामचंद्रम् इति ध्यानम् चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् .. १ ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम् .. २ सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् स्वलीलया जगत्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम् .. ३ रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् शिरोमे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः .. ४ कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियश्रुती घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः .. ५ जिव्हां विद्यानिधिः पातु कंठं भरतवंदितः स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः .. ६ करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः .. ७ सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् .. ८ जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोखिलं वपुः .. ९ एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् .. १० पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः .. ११ रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् नरो न लिप्यते पापैः भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति .. १२ जगजैत्रैकमंत्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् यः कंठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः .. १३ वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम् .. १४ आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षांमिमां हरः तथा लिखितवान् प्रातः प्रभुद्धो बुधकौशिकः .. १५ आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान् स नः प्रभुः .. १६ तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ पुंडरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ .. १७ फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ .. १८ शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् रक्षः कुलनिहंतारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ .. १९ आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम् .. २० सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा गच्छन्मनोरथोस्माकं रामः पातु सलक्ष्मणः .. २१ रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघुत्तमः .. २२ वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः जानकीवल्लभः श्रीमान् अप्रमेय पराक्रमः .. २३ इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशयः .. २४ रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् स्तुवंति नामभिर्दिव्यैः न ते संसारिणो नरः .. २५ रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् राजेंद्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिम् वंदे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् .. २६ रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः .. २७ श्रीराम राम रघुनंदन राम राम, श्रीराम राम भरताग्रज राम राम श्रीराम राम रणकर्कश राम राम, श्रीराम राम शरणं भव राम राम .. २८ श्रीरामचंद्रचरणौ मनसा स्मरामि, श्रीरामचंद्रचरणौ वचसा गृणामि श्रीरामचंद्रचरणौ शिरसा नमामि, श्रीरामचंद्रचरणौ शरणं प्रपद्ये .. २९ माता रामो मत्पिता रामचंद्रः, स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्रः सर्वस्वं मे रामचंद्रो दयालुः, नान्यं जाने नैव जाने न जाने .. ३० दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनंदनम् .. ३१ लोकाभिरामं रणरंगधीरम्,राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् कारुण्यरूपं करुणाकरं तम् श्रीरामचंद्रम् शरणं प्रपद्ये .. ३२ मनोजवं मारुततुल्यवेगम् जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् वातात्मजं वानरयूथमुख्यम् श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये .. ३३ कूजंतं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम् आरुह्य कविताशाखां वंदे वाल्मीकिकोकिलम् .. ३४ आपदां अपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् .. ३५ भर्जनं भवबीजानां अर्जनं सुखसम्पदाम् तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम् .. ३६ रामो राज-मणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे   रामेणाभिहता निशाचर-चमू रामाय तस्मै नमः   रामान्नास्ति परायणं पर-तरं रामस्य दासोऽस्म्यहम्   रामे चित्त-लयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर .. ३७ राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ..३८ इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् श्रीसीतारामचंद्रार्पणमस्तु