ग्रहण योग जय श्री काशी विश्वनाथ👏 Jyotish Aacharya Dr Uma Shankar Mishra 94 150 877 11 923 5722 996 👏👏 ग्रहण योग को कुंडली में बनने वाला एक अशुभ योग माना जाता है जिसका किसी कुंडली में निर्माण जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं पैदा कर सकता है। वैदिक ज्योतिष में ग्रहण योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ राहु अथवा केतु में से कोई एक स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है। कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि किसी कुंडली में यदि सूर्य अथवा चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु में से किसी ग्रह का दृष्टि आदि से भी प्रभाव पड़ता हो, तब भी कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यदि किसी कुंडली में सूर्य अथवा चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु का स्थिति अथवा दृष्टि से प्रभाव पड़ता है तो कुंडली में ग्रहण योग का निर्माण हो जाता है जो जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसे भिन्न भिन्न प्रकार के कष्ट दे सकता है। ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है खा जाना तथा इसी प्रकार यह माना जाता है कि राहु अथवा केतु में से किसी एक के सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ स्थित हो जाने से ये ग्रह सूर्य अथवा चन्द्रमा का कुंडली में फल खा जाते हैं जिसके कारण जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आइए अब किसी कुंडली में ग्रहण योग के निर्माण का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करते हैं। राहु तथा केतु प्रत्येक राशि में लगभग 18 मास तक रहते हैं, सूर्य एक राशि में लगभग एक महीने तक रहते हैं तथा चन्द्रमा एक राशि में लगभग अढ़ाई दिन तक रहते हैं। मान लीजिए कि राहु एक समय में वृश्चिक राशि में स्थित हैं तथा केतु वृष राशि में स्थित हैं। जब जब सूर्य गोचर करते हुए इन दोनों राशियों में से किसी एक राशि में आएंगे तथा एक महीने तक इस राशि में रहेंगे, इस बीच संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक जातक की कुंडली में ग्रहण योग होगा क्योंकि सब जातकों की कुंडलियों में सूर्य राहु अथवा केतु के साथ ही स्थित होंगें। इसी प्रकार चन्द्रमा भी गोचर करते हुए जब जब इन दोनों राशियों में से किसी एक में आएंगे तो कुंडली में ग्रहण योग का निर्माण हो जाएगा। सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों के ही 12 राशियों में से किन्ही दो विशेष राशियों में स्थित होने की संभावना 6 में से 1 अर्थात हर छठी कुंडली में होगी इसलिए हर छठी कुंडली में सूर्य तथा हर छठी कुंडली में ही चन्द्रमा के कारण बनने वाला ग्रहण योग बनेगा। सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों में से किसी एक के राहु केतु के साथ स्थित होने की संभावना लगभग हर तीसरी कुंडली में बनती है तथा यदि इस ग्रहण योग की परिभाषा में वर्णित राहु केतु के दृष्टि प्रभाव को भी गिन लिया जाए तो लगभग 75% कुंडलियों में ग्रहण योग बन जाता है। इसका अर्थ यह निकलता है कि संसार के लगभग सभी जातक ही ग्रहण योग से पीड़ित होते हैं तथा इस योग के कारण कष्टों का सामना करते हैं। यह आंकड़े निश्चिय ही वास्तविकता से बहुत परे हैं तथा इसी लिए किसी कुंडली में ग्रहण योग का निर्माण होने के लिए उपर बताए गए नियमों के अतिरिक्त अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी कुंडली में राहु अथवा केतु द्वारा ग्रहण योग का निर्माण करने के लिए सबसे पहले उस कुंडली में राहु तथा केतु का अशुभ होना अति आवश्यक है क्योंकि शुभ होने की स्थिति में ये ग्रह सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ स्थित होकर भी ग्रहण योग नहीं बनाएंगे बल्कि कुंडली में कोई शुभ योग भी बना सकते हैं। इसके अतिरिक्त राहु, केतु तथा सूर्य चन्द्रमा की कुंडली में स्थिति, बल तथा इन सभी ग्रहों पर अन्य शुभ अशुभ ग्रहों का प्रभाव भी देखा जाता है जो ग्रहण योग के निर्माण तथा फलादेश में बहुत अंतर पैदा कर सकता है। इसके अतिरिक्त भी कुंडली में से कुछ अन्य आवश्यक तथ्यों का निरीक्षण किया जाता है तथा तत्पश्चात ही कुंडली में ग्रहण योग के निर्माण तथा फलों का निर्णय लिया जाता है। मैने ऐसी अनेक कुंडलियों का अध्ययन किया है जिनमें ग्रहण योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार इस योग के बनने के पश्चात भी वास्तव में यह दोष कुंडली में या तो बनता ही नहीं है या फिर इसका बल बहुत कम होता है जिसके कारण यह योग जातक को कोई विशष अशुभ फल नहीं दे पाता। यहां पर इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी कुंडली में राहु अथवा केतु के सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ बनने वाले कुछ संयोग कुंडली में ग्रहण योग न बना कर कोई शुभ अथवा बहुत शुभ योग भी बना सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में शुभ केतु का शुभ सूर्य के साथ संबंध जातक को किसी सरकारी संस्था में लाभ, प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व वाला पद दिलवा सकता है तथा यह योग जातक को बहुत योग्य तथा सक्षम पुत्र भी प्रदान कर सकता है जो जातक के लिए बहुत भाग्यशाली तथा शुभ सिद्ध होते हैं। इसी प्रकार किसी कुंडली में शुभ राहु के चन्द्रमा के साथ स्थित हो जाने पर शक्ति योग बन सकता है तथा इस प्रकार का शक्ति योग जातक को ऐश्वर्य, सुख सुविधा, किसी सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्था में लाभ तथा प्रभुत्व वाला कोई पद आदि भी प्रदान कर सकता है। इस प्रकार चन्द्र राहु से बनने वाले शक्ति योग के प्रभाव में आने वाले जातक ग्रहण योग के अशुभ फलों से बिल्कुल विपरीत शक्ति योग के शुभ फल प्राप्त करते हैं जिससे एक बार फिर यह सिद्ध हो जाता है कि किसी कुंडली में राहु अथवा केतु का सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ संबंध कुंडली में केवल ग्रहण योग ही नहीं बनाता बल्कि यह संबंध कुंडली में किसी शुभ योग का निर्माण भी कर सकता है। इसलिए किसी कुंडली में केवल राहु अथवा केतु के सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ संबंध के आधार पर ही कुंडली में ग्रहण योग के बनने का निर्णय नहीं लेना चाहिए तथा कुंडली में राहु, केतु, सूर्य और चन्द्रमा के बल, स्वभाव तथा स्थिति का भली भांति निरीक्षण करने के पश्चात ही यह निर्णय लेना चाहिए कि कुंडली में इन ग्रहों के संयोग से ग्रहण योग बन रहा है अथवा शक्ति योग जैसा कोई शुभ योग। ग्रहण योग के निवारण के कुछ सामान्य उपाय- जब कभी सूर्य या चंद्र का ग्रहण हो उसी समय महामृत्युंजय मंत्र के जाप करे या करवाए। ग्रहण की छांया पड़े हुए जल से नहाये। कपिला गाय का दान करे। राहू सूर्य या राहू चंद्र के जाप करवाए। समय समय पर शिवजी का रुद्राभिषेक करवाते रहे। तीर्थ यात्रा में जाकर राहु-सूर्य-चंद्र के दान करे। “ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:” अथवा “ॐ सों सोमाय नम:” का जाप करना अच्छे परिणाम देता है। ये वैदिक मंत्र हैं, इस मंत्र का जाप जितनी श्रद्धा से किया जाएगा यह उतना ही फलदायक होगा। नारियल, जौ, कच्चा कोयला, बादाम आदि की पोटली बनाकर अपने ऊपर से उसारा करके ग्रहणकाल में जल प्रवाहित किया जाना चाहिए। जातक का कान- केतु है और सोना- गुरु ग्रह है। इसलिए कान में सोना धारण करने से गुरू कायम हो जाता है। गुरू ग्रह केतु ग्रह का मित्र है और चंद्रमा का भी मित्र है दोनों का मित्र गुरू अब चंद्र और केतु की भी मित्रता करा देगा। अर्थात् चंद्र केतु को ठीक रखेगा और आपस में समझौता करवा देगा जिससे पीड़ित जातक को सुख शान्ति मिलेगी। इस प्रकार के योग वाले जातक का पैसा लोग लेकर दबा लेते हैं और उनके पैसे मारे जाते हैं। चंद्र-केतु वाले जातक को सर्दी, जुकाम और नजला की शिकायत अधिक होती है। इन सबके लिए उपाय है कि चांदी के दो कडे़ बनवाकर अपने बच्चे के पैर में या गाय के बछडे़ के पैर में पहना दें। अब अगर प्रतीक रूप में देखे तो जातक का संतान केतु है, पैर भी केतु है। चांदी चंद्रमा है। उसके पैर में पहनाने से चन्द्र-केतु का झगडा समाप्त हो जाता है जिससे बुरा प्रभाव भी शान्त होगा।