पापमोचनी एकादशी व्रत ==================== पापमोचनी एकादशी व्रत Aaj ०७ अप्रैल २०२१, बुधवार को रखें। Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra 9415 087 711 पापमोचनी एकादशी पापों को नष्ट करने वाली एकादशी है। एक वर्ष में कुल चौबीस एकादशियां होती हैं, और पापमोचनी उनमें से एक है जिसे भगवान विष्णु के सम्मान में मनाया जाता है। शाब्दिक अर्थ में, पापमोचनी में दो शब्द शामिल होते हैं अर्थात् पाप ’का अर्थ’ अपराध ’और मोचनी’ ‘निष्कासन ’को दर्शाता है और साथ में यह संकेत करता है कि जो कोई भक्त पापमोचनी एकादशी का पालन करेगा वह सभी अतीत और वर्तमान के पापों से मुक्त हो जाता है। पापमोचिनी एकादशी प्रति वर्ष चैत्र मास में आती है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को ही पापमोचनी एकादशी तिथि के नाम से जाना जाता है। पापमोचनी एकादशी का महत्व ======================= धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि पापमोचनी एकादशी व्रत करने से व्रती के समस्त प्रकार के पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। इस व्रत को करने से भक्तों को बड़े से बड़े यज्ञों के समान फल की प्राप्ति होती है। पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से सहस्त्र अर्थात् हजार गायों के दान का फल मिलता है। ब्रह्म ह्त्या, सुवर्ण चोरी, सुरापान और गुरुपत्नी गमन जैसे महापाप भी इस व्रत को करने से दूर हो जाते हैं। इस एकादशी तिथि का बड़ा ही धार्मिक महत्व है और पौराणिक शास्त्रों में इसका वर्णन मिलता है। एकादशी तिथि शुरुआत* ==================== ०७ अप्रैल २०२१, बुधवार को सुबह ० 4: 38 से एकादशी तिथि समाप्त* - ===================== ०८ अप्रैल २०२१, गुरुवार को सुबह ० 4: 0 6 मिनट पे एकादशी व्रत पारण का समय - ======================= ०८ अप्रैल २०२१, गुरुवार को Subah ० 8: 0 0 से 11: 0 0 तक विशेष : ======== एकादशी का व्रत सूर्योदय तिथि arthat Aaj ०७ अप्रैल २०२१, बुधवार को ही रखें एकादशी व्रत विधि ==================================== पापमोचिनी व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। व्रती को दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए। मन से भोग-विलास की भावना त्यागकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए। संकल्प के उपरांत षोडषोपचार सहित श्री विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए। भगवान के समक्ष बैठकर भगवद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए। एकादशी व्रत के दिन झूठ या अप्रिय वचन न बोलें और प्रभु का स्मरण करें। पापमोचनी एकादशी व्रत कथा--- ========================== धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले- हे जनार्दन! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है❓तथा उसकी विधि क्या है❓ कृपा करके आप मुझे बताइए श्री भगवान बोले हे राजन् - चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पापमोचनी एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य के सभी पापों का नाश होता हैं। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस पापमोचनी एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधान कहिए। ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी पापमोचनी एकादशी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता हैं। एकादशी के पूरे दिन एवं रात्रि मे जागरण के लिए जहां तक संभव हो वहां तक टीवी चैनल पर प्रसारित होने वाली सभी धार्मिक- आध्यात्मिक चैनल जैसे कि आस्था टीवी चैनल ,आस्था भजन चैनल, संस्कार चैनल, सत्संग चैनल, शुभ चैनल, अरिहंत चैनल, ईश्वर चैनल दिशा चैनल,्श्रद्धा चैनल, वैदिक चैनल विगेरे...विगेरे... विविध प्रकार की सभी स्वदेशी चैनल जो कि पूरे दिन और रात्रि में यानी कि २४ घंटे आरती भजन- कीर्तन, हनुमानचालीसा ,सुंदरकांड ,श्रीमद् भागवत कथा ,शिव कथा, श्री राम कथा, श्री देवी भागवत कथा जो कि कई सालों से निरंतर प्रसारित करती है .....हम कोरोना के रहते.. यही सभी धार्मिक चैनलों के साथ जुड़कर रात्रि जागरण के लिए ...या फिर अपने समय के अनुकूल सभी धार्मिक चैनलों के साथ जुड़ के भक्ति में लीन हो सकते हैं। मेरा निवेदन रहेगा कि सभी सनातन प्रेमी हमारी स्वदेशी धार्मिक चैनलों का उपयोग अवश्य करें। एकादशी व्रत कथा =============== कथा के अनुसार प्राचीन समय में चित्ररथ नामक एक रमणिक वन था। इस वन में देवराज इन्द्र गंधर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित स्वच्छंद विहार करते थे। एक बार मेधावी नामक ऋषि भी वहाँ पर तपस्या कर रहे थे। वे ऋषि शिव उपासक तथा अप्सराएँ शिव द्रोहिणी अनंग दासी (अनुचरी) थी। एक बार कामदेव ने मुनि का तप भंग करने के लिए उनके पास मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। युवावस्था वाले मुनि अप्सरा के हाव भाव, नृत्य, गीत तथा कटाक्षों पर काम मोहित हो गए। और उसके साथ रति-क्रीडा करते हुए १८ वर्ष व्यतीत हो गए। एक दिन अप्सरा मंजुघोषा ने देवलोक जाने की आज्ञा माँगी। उसके द्वारा आज्ञा माँगने पर मुनि को भान आया और उन्हें आत्मज्ञान हुआ कि मुझे रसातल में पहुँचाने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजुघोषा ही हैं। क्रोधित होकर उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया। श्राप सुनकर मंजुघोषा ने काँपते हुए ऋषि से मुक्ति का उपाय पूछा। तब मुनिश्री ने पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने को कहा। और अप्सरा को मुक्ति का उपाय बताकर अपने पिता च्यवन के आश्रम में चले गए। पुत्र के मुख से श्राप देने की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने पुत्र की घोर निन्दा की तथा उन्हें पापमोचनी चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने की आज्ञा दी। व्रत के प्रभाव से मंजुघोष अप्सरा पिशाचनी देह से मुक्त होकर देवलोक चली गई। अत: हे नारद! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, उसके सारे पापों की मुक्ति होना निश्चित है। और जो कोई इस व्रत के माहात्म्य को पढ़ता और सुनता है उसे सारे संकटों से मुक्ति मिल जाती है।