देवाधिदेव महादेव भगवान आशुतोष शिव की पूजा में सबसे श्रेष्ठ पार्थिव पूजा है,महादेव की इस पूजा से रोग, शोक, पाप और दुखों का नाश होता है। श्रद्धा और समर्पण भाव से शिव की उपासना करने से शिवत्व तो जागृत होता ही है शिव तत्व की प्राप्ति भी होती है। भगवान शिव स्वरूप समग्रता का प्रतीक है यह उनके जीवन का वह दर्शन प्रदान करता है, जो मनुष्य को उसके व्यक्तित्व के उच्चतम शिखर तक ले जाता है।
भगवान शिव की उपासना करने से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है। भगवान शिव स्वरूप से विषम जैसे आभासित होने पर भी परम शांत, एक रूप और कृपा सागर कहलाए। अनिष्टकारक दुर्योगों में शिव की सहस्त्रनामावली, रूद्वाष्टाध्यायी, शिवमहिम्न , दारिद्रयदहन स्त्रोत का पाठ, महामृत्युंजय मंत्र, षडाक्षर एवं पंचाक्षर का श्रद्वा व विश्वास के साथ पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं। पूर्वार्जित प्रारब्ध से प्राप्त ग्रहजन्य की बाधा दूर हो जाती है और सभी दिव्य सुख मिलते हैं।
Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra 941 5087 711
सौभाग्य प्रदान करने वाले शिव काल के भी काल हैं और महाकाल नियन्ता है। भगवान शिव परम कल्याणकारी हैं और श्रद्धा भाव से जो भी उनके दरबार में आया उसको अपना लेते हैं। भगवान शिव को जल की धारा के साथ ही मन की धारा भी अर्पित करने से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है। शिव की पूजा में सबसे श्रेष्ठ पार्थिव पूजा है, इस पूजा से रोग, शोक, पाप और दुखों का नाश होता है। श्रद्धा और समर्पण भाव से शिव की उपासना करने से शिवत्व तो जागृत होता ही है शिव तत्व की प्राप्ति भी होती है।
भगवान शिव का व्यक्तित्व एवं स्वरूप समग्रता का प्रतीक है यह उनके जीवन का वह दर्शन प्रदान करता है, जो मनुष्य को उसके व्यक्तित्व के उच्चतम शिखर तक ले जाता है। भगवान शिव का यह चरित्र मानवीय जीवन के उच्चतम आदर्शों की पराकाष्ठा है। महादेव गृहस्थ भी हैं और वीतरागी आदियोगी भी, उनका यह गुण संदेश देता है कि योग के मार्ग पर चलने के लिए ,ईश्वर की भक्ति के लिए संसार त्याग आवश्यक नहीं है। त्याग तो स्वयं की दुष्प्रवृत्तियों का, आसत्ति व अहंकार का करना चाहिए, ताकि अंतःकरण को योग के अनुकूल बनाया जा सके।
कैलाशवासी भगवान शिव एक ओर तो परम पवित्र हिमालय में तपस्या में लीन रहते हैं तो दूसरी ओर भूतगणों के साथ श्मशान में निवास करते भी माने जाते हैं। इसका व्यावहारिक आशय यह है कि पवित्र और श्रेष्ठ के संपर्क में रहना श्रेयकर है, किंतु घृणित और पापी किसी को नहीं समझा जाना चाहिए। सब परमात्मा की ही संतान हैं एवं वे स्वयं सबको बराबर स्नेह करते हैं। शिव यहाँ सम्यक दृष्टि व मैत्री की शिक्षा देते हैं।
अनेकानेक विरोधाभासों का अतिसुंदर समन्वय भगवान शिव के जीवन में देखने को मिलता है एक ओर वे परम कल्याणकारी, भोले, भंडारी हैं तो दूसरी ओर तांडव करने वाले महारुद्र भी, उन्हीं की भाँति मनुष्य को भी श्रेष्ठ का संरक्षक व अनिति का संहारक होना चाहिए। शुभ व सत्य के प्रति संवेदनशील व अशुभ के प्रति कठोर होना चाहिए।
नारायण श्रीनारायण
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