ज्योतिष में रोग विचार - Jyotish achary Dr Uma Shankar Mishra 94150 877 11 कुंडली के प्रथम भाव से शारीरिक कष्टों एवं स्वास्थ्य का विचार होता है और द्वितीय भाव व्यक्ति के खान पान का सूचक है तृतीय भाव से व्यक्ति के प्रारंभिक रोगों का विचार किया जाता है और कुंडली के षष्ठ भाव से व्यक्ति के स्वास्थ्य का रोग उत्पत्ति का विचार किया जाता है षष्ठ भाव का कारक ग्रह मंगल शनि हैं अष्टम भाव का कारक ग्रह शनि है इस भाव से आयु दुर्घटना मृत्यु और ऑपरेशन आदि का विचार किया जाता है और भावत भावं सिद्धांत के अनुसार छठा भाव रोग का है और छठे से छठा ग्यारहवां भाव होने के कारण इससे भी रोग का ही विचार किया जाता है तथा रोग का मूल कारक शनि ग्रह को माना जाता है रोग को समझने के लिए जन्मकुंडली में इन भावों और रोग कारक शनि की स्थिति व इस भाव पर पड़ने वाले ग्रहों की स्थिति को समझना अति आवश्यक है षष्ठ अष्टम एवं द्वादश भाव के स्वामी जिस भाव में होते हैं उससे सम्बंधित अंग में पीड़ा होती है किसी भी भाव का स्वामी 6-8 या 12वें में स्थित हो तो उस भाव से सम्बंधित अंगों में पीड़ा होती है