➡️ कुलदेवता शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ और कुलदेवता का नाम जपने के लाभ
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🔸 #कुल अर्थात आप्तसंबंधों से एकत्र आए एवं एक रक्त-संबंध के लोग।
🔸जिस कुलदेवता की उपासना आवश्यक होगी, उस कुल में व्यक्ति जन्म लेता है।
🔸कुल अर्थात ▶️ मूलाधारचक्र, शक्ति अथवा कुंडलिनी।
🔸कुल + देवता अर्थात ऐसे देवता जिसकी उपासना से मूलाधारचक्र में विद्यमान कुंडलिनीशक्ति जागृत होती है तथा आध्यात्मिक प्रगति आरंभ होती है।
🔸 कुलदेवता, अर्थात कुलदेव अथवा #कुलदेवी, दोनों।
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▶️ कुलदेवता की उपासना का इतिहास
🔸कुलदेवता की उपासना का आरंभ वेदोत्तर एवं पुराणपूर्व काल में हुआ।
🔸कुलदेवता की साधना द्वारा आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक उन्नति करने वाले एक सिद्ध उदाहरण हैं, छत्रपति शिवाजी महाराज।
🔸 #शिवाजीमहाराज के गुरु समर्थ रामदासस्वामी जी ने उन्हें उनकी कुलदेवी #भवानीमाता की ही उपासना बताई थी।
🔸 #संततुकाराममहाराज ने जिस पांडुरंग की अनन्यभक्ति कर सदेह मुक्ति प्रप्त की, वह #विठोबा उनके कुलदेवता ही थे।
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▶️कुलदेवता का नाम जप करने का महत्व
🔸हम गंभीर रोगों में स्वयं निर्धारित औषधि नहीं लेते।
🔸ऐसे में उस क्षेत्र के अधिकारी व्यक्ति अर्थात, डॉक्टर के पास जाकर उनके परामर्शनुसार औषधि लेते हैं।
🔸उसी प्रकार भवसागर के गंभीर रोगों से बचने हेतु अर्थात, अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए, आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत व्यक्तियों के मार्गदर्शन अनुसार साधना करना आवश्यक है
🔸परंतु ऐसे उन्नत व्यक्ति समाज में बहुत अल्प होते हैं। 90 प्रतिशत तथा कथित गुरु वास्तव में गुरु होते ही नहीं।
🔸अतः यह प्रश्न उठता है, कि कौन सा नाम जपना चाहिए
🔸परंतु इस संदर्भ में भी प्रत्येक को उसकी उन्नति हेतु आवश्यक, ऐसे उचित कुल में ही भगवान ने जन्म दिया है।
🔸अस्वस्थ होने पर हम अपने फैमिली डॉक्टर के पास जाते हैं, क्योंकि उन्हें हमारी शरीर प्रकृति एवं रोग की जानकारी रहती है।
🔸यदि किसी कार्यालय में शीघ्र काम करवाना हो, तो हम परिचित व्यक्तिद्वारा काम करवा लेते हैं।
🔸उसी प्रकार अनेक देवताओं में से कुलदेवता ही हमें अपने लगते हैं। वे हमारी पुकार सुनते हैं, एवं आध्यात्मिक उन्नति हेतु उत्तरदायी होते हैं।
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▶️जब ब्रह्मांड के सर्व तत्त्व पिंड में लाए जाते हैं, तब साधना पूर्ण होती है।
🔸सर्व प्राणियों में से केवल गाय में ही ब्रह्मांड के सर्व देवताओं की स्पंदन-तरंगें ग्रहण करने की क्षमता है। (इसीलिए गाय के उदर में तैंतीस करोड देवता वास करते हैं, ऐसा कहा जाता है।)
🔸उसी प्रकार ब्रह्मांड के सर्व तत्त्वों को आकर्षित कर, उन सभी में 30 प्रतिशत वृद्धि करने का सामर्थ्य केवल कुलदेवता के जप में है।
🔸इसके विपरीत श्रीविष्णुु, शिव, श्री गणपति आदि देवताओं का नाम जप केवल विशिष्ट तत्त्व की वृद्धि हेतु है, जैसे शक्तिवर्धक के रूप में जीवनसत्त्व अ, ब (विटामिन ए, बी) इत्यादि लेते हैं।
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▶️कुलदेवता का रुष्ट होना
🔸यदि कोई विद्यार्थी बुद्धिमान होेते हुए भी पढाई न करता हो, तो पाठशाला में शिक्षक उसे डांटते हैं।
🔸उसी प्रकार आध्यात्मिक उन्नति करने की क्षमता होने पर भी यदि कोई व्यक्ति साधना नहीं करता, तो कुलदेवता उस पर क्रोधित होते हैं; परंतु सामान्यतः उस व्यक्ति को इस क्रोध का भान नहीं होता
🔸इसलिए कुलदेवता कुछ व्यावहारिक अडचनें उत्पन्न करते हैं, बहुत प्रयत्न करने पर भी उन अडचनों का निराकरण न कर पाने पर, वह व्यक्ति किसी उन्नत पुरुष से (संत अथवा गुरुसे) पूछताछ करता है।
🔸उन्नत पुरुषद्वारा कुलदेवता की उपासना बताए जाने पर एवं उसके अनुसार उपासना आरंभ करने पर कुलदेवता अडचनों का निराकरण करते हैं एवं उपासना में सहायता भी करते हैं।
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▶️किसका नाम जप करना चाहिए-कुलदेवता का अथवा कुलदेवी का?
🔸केवल कुलदेवता होने पर उन्हीं का एवं केवल कुलदेवी के होने पर कुलदेवी का नामजप करना चाहिए।
🔸यदि किसी के कुलदेव एवं कुलदेवी दोनों हों, तो उन्हें कुलदेवी का जप करना चाहिए। इसके निम्नलिखित कारण हैं।
🔸बचपन में माता-पिता दोनों के होते हुए हम माता के साथ ही अधिक हठ करते हैं, क्योंकि मां हमारे हठ को शीघ्र पूर्ण कर देती है। उसी प्रकार, कुलदेवता की अपेक्षा कुलदेवी शीघ्र प्रसन्न होती हैं।
🔸कुलदेवता की अपेक्षा कुलदेवी पृथ्वीतत्त्व से अधिक संबंधित होती हैं।
🔸आध्यात्मिक प्रगति के लिए परात्पर गुरु का दिया नाम 100 प्रतिशत, कुलदेवी का 30 प्रतिशत तो कुलदेवता का नाम 25 प्रतिशत पूरक होता है।
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▶️कुलदेवता का नाम जप करने की पद्धति
🔸कुलदेवता के नाम से पूर्व ‘श्री’ लगाएं, नामको संस्कृत व्याकरणानुसार चतुर्थी का त्यय लगाएं एवं अंतमें ‘नमः’ बोलें
🔸उदा.🔻 कुलदेवता गणेश हों, तो ‘श्री गणेशाय नमः।
🔸कुलदेवी दुर्गा हों, तो ‘श्री दुर्गायै नमः।’ बोलना कठिन है, इसलिए ‘देव्यै’ त्यय लगाकर ‘श्री दुर्गादेव्यै नमः।’ बोलें।
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▶️नामजप कितना करना चाहिए?
🔸कुलदेवता का नाम जप प्रतिदिन न्यूनतम १ से २ घंटे एवं अधिकतम अर्थात निरंतर करना चाहिए।
▶️कुलदेवता के नाम जप संबंधी प्रायः पूछे जानेवाले प्रश्न
▶️कुलदेवता यदि ज्ञात न हो, तो क्या करें ?
➡️यदि कुलदेवता ज्ञात न हो तो कुटुंब के ज्येष्ठ, अपने उपनामवाले बंधु, जातिबंधु, गांव के लोग, पुरोहित इत्यादि से कुलदेवता की जानकारी प्राप्त करने का प्रयत्न करें।
🔸कुलदेवता के संदर्भ में जानकारी न मिलने से इष्टदेवता के नामका जप करना चाहिए अथवा ‘श्री कुलदेवतायै नमः।’ यह जप करना चाहिए। यह जप पूर्ण होते ही कुलदेवता का नाम बतानेवाले मिलते हैं।
🔸देवता के रूप की कल्पना न होने के कारण मात्र ‘श्री कुलदेवतायै नमः ऐसा जप करना, अधिकांश लोगों के लिए कठिन हो जाता है। इसके विपरीत, प्रिय देवता को रूप ज्ञात होने के कारण उनका जप करना सहज लगता है।
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▶️कुलदेवता का नामजप करने से क्या लाभ होता है?
🔸कुलदेवता का आवश्यक जप पूर्ण होने पर गुरु साधक के जीवन में स्वयं आकर गुरु मंत्र देते हैं।
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▶️कुलदेवता यदि श्री गणेश-पंचायतन जैसे हो, तो नामजप कैसे करें?
🔸किसी के कुलदेवता श्री गणेश-पंचायतन अथवा श्रीविष्णुु-पंचायतन (पंचायतन अर्थात पांच देवता) इस प्रकार के हों, तो पंचायतन के प्रमुख देवता को क्रमशः श्री गणेश अथवा श्रीविष्णुु को ही कुलदेवता मानें।
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▶️विवाहित स्त्री ससुराल के अथवा मायके के कुलदेवता का नाम जपें?
🔸सामान्यतः विवाहोपरांत स्त्री का नाम परिवर्तित होता है। मायके का सबकुछ त्यागकर स्त्री ससुराल आती है। एक अर्थ से यह उसका पुनर्जन्म ही होता है; इसीलिए विवाहित स्त्री को अपने ससुराल के कुलदेवता का जप करना चाहिए। यदि कोई स्त्री बचपन से ही नामजप करती हो एवं प्रगत साधक हो, तो विवाह के पश्चात भी वही नामजप जारी रखने में कोई हानि नहीं।
🔸यदि गुरु ने किसी स्त्री को उसके विवाह पूर्व नामजप दिया हो, तो उसे वही नाम जपना चाहिए।
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