बृहस्पति(गुरु) शुक्र का सम्बन्ध-
Jyotish Aacharya Dr Uma Shankar Mishra 9415 087 711 923 5722 996
बृहस्पति शुक्र दोनों ही गुरु है बृहस्पति देव गुरु है तो शुक्र दैत्य गुरु।बृहस्पति शुक्र में कई असमानताएं है तो कई समानताएं भी है।बृहस्पति पुरुष ग्रह है तो शुक्र स्त्री ग्रह है।बृहस्पति विष्णु भगवान का स्वरुप तो शुक्र भगवती लक्ष्मी का स्वरुप है कह सकते है।जिन जातको की कुंडली में बृहस्पति शुक्र का सम्बन्ध होता है ऐसे व्यक्तियो के अंदर गजब की चुम्बकीये शक्ति होती है विपरीत लिंग के व्यक्ति इन जातको की और बहुत जल्द आकर्षित हो जाते है। लोग इन जातको के पीछे स्वतः ही खीचे आते है।बृहस्पति नैसर्गिक रूप एक बहुत शुभ और शक्तिशाली ग्रह है तो शुक्र भी नैसर्गिक रूप से अत्यंत शुभ ग्रह है।बृहस्पति शुक्र की बलवान युति या दृष्टि सम्बन्ध होने से बृहस्पति शुक्र का मूल्य बहुत अधिक बड़ा देता है।शुक्र सांसारिक सुख सुविधा, भोग विलास, संसार का कारक है तो बृहस्पति पारलौकिक और सांसारिक दोनों के सुख देने में सक्षम है।बृहस्पति शुक्र के सम्बन्ध से जातक भोगी और आध्यात्मिक दोनों बन जाता है ऐसे जातक में भौतिक इच्छाओ की कामना भी अधिक होती है तो आध्यामिक भी बहुत होते है।बृहस्पति शुक्र के सम्बन्ध में शुक्र से अधिक बृहस्पति अधिक बली होने से जातक संसार के भौतिक सुख भी प्राप्त करता है और आध्यात्मिकता की और भी अधिक अपना झुकाब रखता है इससे कभी कभी ऐसे जातक कभी कभी परेशान भी हो जाते है कि इन्हें संसार भोगो की अधिक और मुड़ना चाहिए या पारलौकिक सुख प्राप्त करने के प्रयास करने चाहिए।लेकिन जातक सोचे इनमे से कुछ भी यदि बृहस्पति शुक्र दोनों बली हो बारहवां और नवम भाव भी शुभ प्रभाव में हो तब लोक-परलोक दोनों सुख इन जातको को मिल जाते है।बृहस्पति और नवम भाव के शुभ प्रभाव में होने से या नवम भाव का सम्बन्ध बृहस्पति से होने से जातक देवताओ की उपासना अधिक करता है ऐसे जातको की किसी एक देव में विशेष आस्था होती है।बृहस्पति शुक्र दोनों विवाह कारक भी है यदि इनकी स्थिति बहुत ख़राब हो तो जातक के वैवाहिक जीवन में समस्या रह सकती है या वैवाहिक जीवन का सुख कम मिलता है बृहस्पति स्त्रियों के लिए पति है तो शुक्र पुरुषो के लिए पत्नी।जिन जातको शुक्र बहुत कमजोर होता है या कमजोर होकर शुक्र शनि राहु आदि जैसे ग्रहो के साथ हो या इनसे द्रष्ट हो तब पत्नी को तब पत्नी सुख में कमी रहती है स्त्रियों की कुंडली में यह नियम गुरु पर लागू होगा।बृहस्पति शुक्र का केंद्र-त्रिकोण पर स्वामित्व अधिकार होकर सम्बन्ध बनने से जातक की जीवन रेखा से जो हतेली में शुक्र छेत्र के पास ही होती है से कुछ रेखाएं ऊपर बृहस्पति पर्वत की ओर जाती है जो जातक को जीवन में आगे बढ़ने उन्नति का अवसर प्राप्त करता है जितनी बार जीवन रेखा जीवन रेखा की जिस जिस आयु में यह रेखाएं निकलती है जीवन की उसी आयु में जातक को उन्नति के अवसर प्राप्त होते।ऐसी स्थिति में यह बात ध्यान में रखनी चाहिए बृहस्पति शुक्र दोनों बली होने चाहिए विशेष रूप से शुक्र से अधिक बृहस्पति बली होना चाहिए यदि बृहस्पति शुक्र दोनों में से कोई भी कमजोर, अशुभ, पाप ग्रहो से पीड़ित, राशि अंशो में कमजोर या अन्य प्रकार से दूषित होने से ऐसी स्थिति हाथ में होना असंभव है।कभी कभी लग्न या लग्नेश का सम्बन्ध बृहस्पति से होने पर भी ऐसी रेखाएं जीवन रेखा से ऊपर को निकलने लगती है जिनका फल शुभ उन्नति कारक ही होता है।
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