ॐ त्र्यंबकम् मंत्र के 33 अक्षर 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा 9415087711 Parijat apartment near Avadh bus adda Faizabad Road Lucknow Astroexpertsolution.com Astrovinayakam.com जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 देवताआं के घोतक हैं। उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन तैंतीस देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं । साथ ही वह नीरोग, ऐश्व‍र्य युक्ता धनवान भी होता है । महामृत्युंरजय का पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है । भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस निरन्तंर बरसती रहती है। • त्रि - ध्रववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है। • यम - अध्ववरसु प्राण का घोतक है, जो मुख में स्थित है। • ब - सोम वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण कर्ण में स्थित है। • कम - जल वसु देवता का घोतक है, जो वाम कर्ण में स्थित है। • य - वायु वसु का घोतक है, जो दक्षिण बाहु में स्थित है। • जा- अग्नि वसु का घोतक है, जो बाम बाहु में स्थित है। • म - प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है। • हे - प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित है। • सु -वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है। • ग -शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है। • न्धिम् -गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है। • पु- अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्तह के मध्य भाग में स्थित है। • ष्टि - अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है, बाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है। • व - पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है। • र्ध - भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है, बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है। • नम् - कपाली रुद्र का घोतक है । उरु मूल में स्थित है। • उ- दिक्पति रुद्र का घोतक है । यक्ष जानु में स्थित है। • र्वा - स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है। • रु - भर्ग रुद्र का घोतक है, जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है। • क - धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है। • मि - अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है। • व - मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है। • ब - वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है। • न्धा - अंशु आदित्यद का घोतक है । वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है। • नात् - भगादित्यअ का बोधक है । वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है। • मृ - विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है। • र्त्यो् - दन्दाददित्य् का बोधक है । वाम पार्श्वि भाग में स्थित है। • मु - पूषादित्यं का बोधक है । पृष्ठै भगा में स्थित है । • क्षी - पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है । नाभि स्थिल में स्थित है। • य - त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है । गुहय भाग में स्थित है। • मां - विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्व्रुप दोनों भुजाओं में स्थित है। • मृ - प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है। • तात् - अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है। उपर वर्णन किये स्थानों पर उपरोक्त देवता, वसु आदित्य आदि अपनी सम्पुर्ण शक्तियों सहित विराजत हैं । जो प्राणी श्रध्दा सहित महामृत्युजय मंत्र का पाठ करता है उसके शरीर के अंग - अंग ( जहां के जो देवता या वसु अथवा आदित्यप हैं ) उनकी रक्षा होती है ।