अनिष्ट निवारण के लिए महामृत्युंजय मंत्र का विशेष महत्व क्यों? 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा 9415087711 Parijat apartment near Avadh bus adda Faizabad Road Lucknow Astroexpertsolution.com Astrovinayakam.com शास्त्रों एवं पुराणों में असाध्य रोगों से मुक्ति एवं अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय जप करने का विशेष उल्लेख मिलता है। महामृत्युंजय भगवान् शिव को प्रसन्न करने का मंत्र है। इसके प्रभाव से व्यक्ति मौत के मुंह में जाते-जाते बच जाते हैं, मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की अद्भुत कृपा से जीवन पा लेते हैं। भावी बीमारी, दुर्घटना, अनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभावों को दूर करने, मृत्यु को टालने आयुवर्धन के लिए सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र जाप करने का विधान है। जब व्यक्ति स्वयं जप न कर सके, तो मंत्र जाप किसी योग्य पंडित द्वारा भी कराया जा सकता है। सागर मंथन के बहुप्रचलित आख्यान में देवासुर संग्राम के समय शुक्राचार्य ने अपनी यज्ञशाला में इसी महामृत्युंजय के अनुष्ठानों का प्रयोग करके देवताओं द्वारा मारे गए दैत्यों को जीवित किया था। अतः इसे 'मृतसंजीवनी के नाम से भी जाना जाता है। ऋग्वेद (4/59/12) में महामृत्युंजय मंत्र इस प्रकार है। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॥ जिसे सम्पुट युक्त मंत्र बनाने के लिए इस प्रकार पढ़ा जाता है ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्धनम । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॐ भूर्भुवः स्व सः जूं हौं ॐ ॥ अर्थात हम त्रयम्बक यानी तीन नेत्रों वाले शिव भगवान की पूजा करते हैं। हमारी शक्ति व कीर्ति की सुगंध सर्वत्र फैले। मैं पुष्टिवर्धक खरबूजे की भांति मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाऊ, अमृत से नहीं। जन्म-मृत्यु के चक्कर से हमारी मुक्ति होकर हमें मोक्ष मिले। सर्प बाधा या कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति महाशिवरात्रि के दिन यदि चांदी का नाग-नागिन का जोड़ा शिवलिंग पर चढ़ाए और रात्रि में महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण 1008 बार करे तो वह पूर्व जन्म के दोषों व पापों से मुक्त हो जाता है। पद्मपुराण में महर्षि मार्कण्डेय कृत महामृत्युंजय मंत्र व स्तोत्र का वर्णन मिलता है। जिसके अनुसार महामुनि मृकण्डु के कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने पत्नी सहित कठोर तप करके भगवान् शंकर को प्रसन्न किया। भगवान् शंकर ने प्रकट होकर कहा- 'तुमको पुत्र प्राप्ति होगी पर यदि गुणवान, सर्वत, यशस्वी, परम धार्मिक और समुद्र की तरह ज्ञानी पुत्र चाहते हो, तो उसकी आयु केवल 16 वर्ष की होगी और उत्तम गुणों से हीन, अयोग्य पुत्र चाहते हो, तो उसकी आयु 100 वर्ष होगी। इस पर मुनि मृकण्ड ने कहा-में गुण संपन्न पुत्र ही चाहता हूँ, भले ही उसकी आयु छोटी क्यों न हो। मुझे गुणहीन पुत्र नहीं चाहिए। "तथास्तु' कहकर भगवान् शंकर अंतर्धान हो गए। मुनि ने बेटे का नाम मार्कण्डेय रखा। वह बचपन से ही भगवान् शिव का परम भक्त था। उसने अनेक श्लोकों की रचना अपने बाल्यकाल में ही कर ली, जिसमें संस्कृत में महामृत्युंजय मंत्र य स्तोत्र की रचना प्रमुख थी। जब यह 16वें वर्ष में प्रवेश हुआ, तो मृकण्डु चिंतित हुए और उन्होंने अपनी चिंता को मार्कण्डेय को बताया। मार्कण्डेय ने कहा कि मैं भगवान शंकर की उपासना करके उनको प्रसन्न करूंगा और अमर हो जाऊंगा। 16 वे वर्ष के अंतिम दिन जब यमराज प्रकट हुए तो मार्कण्डेय ने उन्हें भगवान शंकर के महामृत्युंजय के स्तोत्र का पाठ पूरा होने तक रुकने को कहा यमराज ने गर्जना के साथ हठपूर्वक मार्कडेय को ग्रसना शुरू किया ही था कि मंत्र की पुकार पर भगवान् शंकर शिवलिंग में से प्रकट हो गए उन्होंने क्रोध से यमराज की ओर देखा, तब यमराज ने हारकर बालक मार्कण्डेय को न केवल बंधन मुक्त कर दिया, बल्कि अमर होने का वरदान भी दिया और भगवान शिव को प्रणाम करके चले गए। जाते समय यह भी कहा कि जो भी प्राणी इस मंत्र का जाप करेगा उसे अकाल मृत्यु और मृत्यु तुल्य कष्टों से छुटकारा मिलेगा। इस पौराणिक कथा का उल्लेख करने का उद्देश्य मात्र इतना है कि स्वयं भगवान् शंकर द्वारा बताई गई मृत्यु भी, उन्हीं के भक्त द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र के कारण टल गई और मार्कण्डेय अमर हो गए।