Aaj सकट चौथ का व्रत , जानें पूजा का समय और मुहूर्त* ================================Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra फ़्लैट सo A 3/ 7 0 2 पारिजात अपार्टमेंट , विक्रांत खण्ड शहीदपथ , अवधबस स्टेशन के समीप Mob - 9415 087 711 Mob- 923 5722 996 🙏🙏 पंचांग के अनुसार Aajj३१ जनवरी को सकट चतुर्थी का पर्व है. सकट चौथ का विशेष धार्मिक महत्व माना गया है. इस पर्व को सकट चौथ, तिलकुटा चौथ, संकटा चौथ, माघी चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी के नामों से भी जाना जाता है। Aaj ३१ जनवरी का दिन धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है. इस दिन सकट चौथ का पर्व है. इस पर्व पर भगवान गणेश जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन व्रत रखने का भी विधान है. मान्यता है कि सकट चौथ पूर भगवान गणेश जी की पूजा करने और व्रत रखने से संतान को लंबी आयु प्राप्त होती है. वहीं संतान पर आने वाली वाधाएं भी दूर होती हैं. ऐसी मान्यता है यह व्रत संतान के लिए बहुत ही शुभ होता है. यह व्रत संतान को हर प्रकार की बाधाओं से दूर रखने वाला माना गया है. संतान की शिक्षा, सेहत और करियर में आने वाली परेशानियों को भी दूर करता है। सकट चौथ पर गणेश जी को करें प्रसन्न ========================= गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए सकट चौथ का पर्व शुभ माना जाता है. गणेश जी बुद्धि के दाता है. इसके साथ ही ग्रहों की अशुभता को दूर करते हैं. बुध ग्रह की अशुभता को दूर करने के लिए यह पर्व उत्तम माना गया है. इसके साथ के केतु के बुरे प्रभाव को भी कम करने में यह पूजा सहायक मानी गई है। गुड और तिल से बनी चीजों का सेवन करें ========================= सकट चतुर्थी पर तिल और गुड से बनी चीजों का खाने की विशेष परंपरा है. इसीलिए इसे कहीं कहीं तिलकुटा चौथ भी कहते हैं. हिंदी भाषी राज्यों में सकट चतुर्थी का पर्व बड़े ही श्रद्धा भाव से मनाया जाता है. जनवरी माह का यह अंतिम धार्मिक पर्व है। पंचांग के अनुसार सकट चौथ का मुहूर्त ========================= सकट चौथ का पर्व पंचांग के अनुसार Aaj ३१ जनवरी २०२१ को है. इस दिन चन्द्रोदय का समय रात्रि ०८ बजकर 20 मिनट है. चतुर्थी तिथि का प्रारंभ ३१ जनवरी २०२१ को रात्रि ० 9 बजकर 41 मिनट से होगा. इस तिथि का समापन ०१ फरवरी २०२१ को शाम ० 7 बजकर 57 मिनट पर होगा। संतान के लिए रखा जाता है सकट चौथ का व्रत, पढ़ें सकट चौथ व्रत कथा =========================== सकट चौथ व्रत हर महीने में पड़ता है। लेकिन सबसे खास सकट चौथ पुर्णिमांत पंचांग के अनुसार माघ के महीने में पड़ती है। इसे संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की सलामती के लिए व्रत रखती हैं। सुबह विघ्न हर्ता की पूजा करती हैं और शाम कों चंद्रमा को अर्घ्य देकर  व्रत खोलती हैं। यहां हम आपके बता रहे हैं। इस कथा को सुनकर मिलता है संकष्टी चतुर्थी व्रत का फल ================================== Aaj ३१ जनवरी २०२१ को संकष्टी चतुर्थी व्रत है। यह व्रत गणेश भगवान के लिए रखा जाता है। मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि संकष्टी चतुर्थी पर गणपति महाराज के आशीर्वाद से भक्तों के जीवन में चल रहे संकट दूर हो जाते हैं। हालांकि व्रती को इस व्रत का फल तभी प्राप्त होता है जब वह संकष्टी चतुर्थी की कथा को सुनता है। संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा इस प्रकार है।   पौराणिक कथा के अनुसार, कहा जाता है कि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह का निमंत्रण सभी देवी-देवताओं के पास गया। विवाह का निमंत्रण भगवान विष्णु जी की ओर से दिया गया था। बारात की तैयारी होने लगी। तभी सभी देवता बारात में जाने के लिए तैयार हो रहे थे, लेकिन सबने देखा कि गणेश जी इस शुभ अवसर पर उपस्थित नहीं है। यह चर्चा का विषय बन गया और वहां देवताओं ने भगवान विष्णु जी से इसका कारण पूछ लिया।  भगवान विष्णु जी कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेश जी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना भी उचित नहीं लगता। इस बीच किसी ने सुझाव दिया कि यदि गणेश जी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे।  यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी। जब गणेश जी वहां पहुंचे तो उन्हें घर की रखवाली करने को कह दिया गया। बारात चल दी, तब नारद जी ने देखा कि गणेश जी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेश जी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारद जी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके रथ धरती में धंस जाएगा, तब आपको सम्मान पूर्वक बुलाना पड़ेगा।  ये सुनते ही गणपति महाराज ने अपनी मूषक सेना आगे भेज दी और सेना ने वैसा ही किया। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। तब तो नारदजी ने कहा- आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए।  गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया गया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल तो गए, लेकिन वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन? पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने के पहले श्री गणेशाय नम: कहकर गणेश जी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया। तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेश जी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं।  आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेश की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा। ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मी जी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए।