बजरंग बाण तुलसीदास जी कृत है ! आजकल पुस्तको में उसकी भी कुछ चौपाइयां अधूरी है! सभी के सम्मुख यह पूर्ण बजरंग बाण Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra फ़्लैट सo A 3/ 7 0 2 पारिजात अपार्टमेंट , विक्रांत खण्ड शहीदपथ , अवधबस स्टेशन के समीप Mob - 9415 087 711 Mob- 923 5722 996 🙏🙏 यह बजरंग बाण प्राचीन पाण्डुलिपियों के आधार पर पाठ संशोधनपूर्वक प्रस्तुत किया जा रहा है । साधकों मेंप्रसिद्ध गोकुलभवन अयोध्या के श्रीराममंगलदास जी महाराज के यहाँ से प्रकाशित पुस्तक तथा बीकानेर लाइब्रेरीकी पाण्डुलिपियों का सहयोग इसके स्वरूप प्रस्तुति में मूल कारण है । बाज़ार में उपलब्ध बजरंगबाण में २१चौपाइयांछूटी हुई हैं । जिनमें दैन्यभाव की झलक के साथ इसके अनुष्ठान का दिग्दर्शन होता है ।-- TulasiDas जी महlराज बजरंगबाण का यह पाठक्रम प्रामाणिकऔर अनुभूत है । उपलब्ध पुस्तकों में लगभग २१ चौपाइयाँ छूटी हुई हैं । निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान । तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ।। जय हनुमन्त सन्त हितकारी । सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ।। जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।२।। जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा । सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।। आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ।।४।। जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा । अति आतुर यम कातर तोरा ।।६।। अक्षय कुमार को मारिसंहारा । लूम लपेटि लंक को जारा ।। लाह समान लंक जरि गई । जै जै धुनि सुर पुर में भई ।।८।। अब विलंब केहि कारण स्वामी । कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी ।। जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता । आतुरहोई दुख करहु निपाता ।।१०।। जै गिरधर जै जै सुख सागर । सुर समूह समरथ भट नागर ।। ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले । बैिरहिं मारू बज्र के कीलै ।।१२।। गदा बज्र तै बैरिहीं मारो । महाराज निज दास उबारो ।। सुनि हंकार हुंकार दै धावो । बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।।१४।। ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा । ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा ।। सत्य होहु हरि शपथ पायके । राम दुत धरू मारू धायके ।।१६।। जै हनुमन्त अनन्त अगाधा । दुःख पावत जन केहि अपराधा ।। पूजा जप तप नेम अचारा । नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ।।१८।। वन उपवन मग गिरि गृह माहीं । तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं ।। पाँय परौं कर जोरि मनावौं । अपने काज लागि गुण गावौं ।। २०। ।जय अंजनि कुमार बलवन्ता । शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।। बदन कराल काल कुल घालक । राम सहाय सदा प्रतिपालक ।।२२। ।भूत प्रेत पिशाच निशाचर । अग्नि बैताल काल मारी मर ।। इन्हें मारु तोहि शपथ राम की । राखुनाथ मर्जाद नाम की ।।२४। ।जनकसुतापति-दास कहावौ । ताकी शपथ विलम्ब न लावौ । ।जय जय जय धुनि होत अकाशा । सुमिरत होत दुसहु दुःख नाशा ।।२६। ।चरन पकरि कर जोरि मनावौं | एहि अवसर अब केहि गोहरावौं । ।उठु-उठु चलु तोहि राम दोहाई पाँय परौं कर जोरि मनाई ।।२८। ।ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता । ॐ हनु हनुहनु हनु हनु हनुमंता । ।ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल । ॐ सं सं सहमि पराने खलदल ।।३०।। अपने जन को तुरत उबारौ । सुमिरत होतअनन्द हमारौ । ।ताते विनती करौं पुकारी । हरहु सकल प्रभु विपति हमारी ।।३२। ।ऐसो प्रबल प्रभाव प्रभु तोरा । कस नहरहु दुःख संकट मोरा ।। हे बजरंग, बाण सम धावो । मेटि सकल दुःख दरस दिखावो ।।३४।। हे कपिराज काज कब ऐहौ । अवसर चूकि अन्त पछितैहौ ।। जन की लाज जात ऐहि बारा । धावहु हे कपि पवन कुमारा ।।३६।। जयति जयति जय जय हनुमाना । जयति जयति गुणज्ञान निधाना ।। जयति जयति जय जय कपिराई । जयति जयतिजय जय सुखदाई ।।३८।। जयति जयति जय राम पियारे । जयति जयति जय सिया दुलारे ।। जयति जयति मुद मंगलदाता ।। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता ।।४०।। यहि प्रकार गावत गुण शेषा । पावत पार नहीं लवलेषा ।। राम रूप सर्वत्र समाना । देखत रहत सदा हर्षाना ।।४२।। विधि शारदा सहित दिनराती । गावत कपि के गुण गण पांती ।। तुम सम नही जगत् बलवाना । करि विचारदेखेउं विधि नाना ।।४४।। यह जिय जानि शरण तव आई । ताते विनय करौं चित लाई ।। सुनि कपि आरत वचन हमारे । मेटहु सकलदुःख भ्रम सारे ।।४६।। यहि प्रकार विनती कपि केरी । जो जन करै लहै सुख ढेरी ।। याके पढ़त वीर हनुमाना । धावत बाण तुल्य बलवाना ।।४८।। मेटत आय दुःख क्षण मांहीं । दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं ।। पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षाकरै प्राण की ।।५०।। डीठ, मूठ, टोनादिक नासै । परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे ।। भैरवादि सुर करै मिताई । आयसु मानि करैं सेवकाई ।।५२।। प्रण करि पाठ करैं मन लाई । अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई ।। आवृति ग्यारह प्रतिदिन जापै । ताकी छाँह काल नहिं चांपै ।।५४।। दै गूगल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेशा ।। यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहौ फिर कौन उबारै ।।५६।। शत्रु समूह मिटै सब आपै । देखत ताहिसुरासुर काँपै ।। तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई । रहै सदा कपिराज सहाई ।।५८।। प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान ।। तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान ।। इति श्रीगोस्वामितुलसीदासविरचितः बजरंगबाणः जय श्री राम