!!!जीवन का रक्षा कवच हैं श्री गणेश के 12 पवित्र नाम!!!!!!!!
Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra
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भगवान गणेश के 12 नाम लेने से सभी प्रकार की मनोकामना पूरी होती है। यह 12 नाम सुनकर श्री गणेश विशेष प्रसन्न होते हैं। वास्तव में जीवन का रक्षा कवच है श्री गणेश के 12 पवित्र नाम। इन्हें श्री गणेश के सामने धूप व दीपक लगाकर बोलें -
गणपर्तिविघ्रराजो लम्बतुण्डो गजानन:।
द्वेमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिप:।।
विनायकश्चारुकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वाद्वशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।।
विश्वं तस्य भवे नित्यं न च विघ्नमं भवेद् क्वचिद्।
1- सुमुख - सुन्दर मुख वाले : - भगवान गणेश का बहुत सुंदर चेहरा भगवान शिव एवं माता पार्वती के तेज के कारण है जिसकी मुनियों ने वैज्ञानिक व्याख्या की है । भगवान गणेश का शरीर सूरज की तरह चमकदार होना बताया गया और चन्द्र मंडल में प्रवेश भी चंद्रमा की तरह शीतल होना दर्शाता है.चंद्रमा को सौंदर्य के भगवान के रूप में जाना जाता है।
चन्द्र मंडल में प्रवेश करने पर, यह भगवान में चमकदार अनुभाग गणेश उसके साथ चंद्रमा के सभी प्रमुख विशेषताओं के साथ जीवन के लिए आया था, और इसलिए नाम सुमुख दिया गया था। भगवान गणेश किसी भी शुभ अवसर की शुरुआत में पूजा की जाती है जब भी अपने पवित्र और सुंदर चेहरा हमेशा हमारे ध्यान का केंद्र है। उनकी छोटी आँखों गंभीरता को दर्शाता है।
लंबी नाक उसकी लंबी फ्लैट कानों चरम प्रकृति के अपने ज्ञान कौशल के रूप में सुझाव जहां उसकी बुद्धि और बुद्धि, पता चलता है। उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण हैं जो घटनाओं को सुनता है, इसलिए यह भी ध्यान से शिकायतों और उनके भक्तों की शिकायतों को सुनता है। दीर्घ कर्ण (लंबे कान) इस का मतलब है। उन्होंने यानी ब्रम्ह विष्णु और महेश ओमकार के एकीकृत प्रकृति भी इन सभी आयामों को एक साथ सुमु्रख के रूप में अपने नाम का औचित्य साबित होता है ।
2. एक दन्त - एक दांत वाले : - भगवान श्री गणेश जी की कोई प्रतिमा देखेंगे तो उसमे पाएंगे कि उनका एक दन्त खंडित है उनके एकदंती होने के पीछे एक कथा है । इस कथा के अनुसार तीनों लोकों की क्षत्रिय विहीन करने के पश्चात परशुराम जी अपने गुरुदेव भगवान शिव जी और गुरु माता से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे
उस समय भगवान शिव जी विश्राम कर रहे थे और भगवान श्री गणेश जी द्वार पर पहरेदार के रूप में बैठे थे । द्वार पर भगवान श्री गणेश को देख कर परशुराम जी ने उन्हें नमस्कार किया और अन्दर के ओर जाने लगे , इस पर भगवान श्री गणेशजी ने उनको अन्दर जाने से रोका ।
धीरे धीरे दोनों के मध्य विवाद बढ़ता चला गया । परशुराम जी ने अपने अमोध फरसे को , जो की उनको श्री शिव भगवान ने दिया था , चला दिया ।फरसे के वार से भगवान गणेश जी का एक दन्त खंडित हो गया द्य तब से भगवान गणेशजी एकदंत के नाम से भी जाने जाते हैं ।
और एक दूसरी कथा के अनुसार महाभारत विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है। महर्षि वेद व्यास के मुताबिक महाभारत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की कथा है। इस ग्रंथ को लिखने के पीछे भी रोचक कथा है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने स्वप्न में महर्षि व्यास को महाभारत लिखने की प्रेरणा दी थी।
महर्षि व्यास ने यह काम स्वीकार कर लिया, लेकिन उन्हें कोई इसे लिखने वाला न मिला। वे ऐसे किसी व्यक्ति की खोज में लग गए जो इसे लिख सके। महाभारत के प्रथम अध्याय में उल्लेख है कि वेद व्यास ने गणेशजी को इसे लिखने का प्रस्ताव दिया तो वे तैयार हो गए।
उन्होंने लिखने के पहले शर्त रखी कि महर्षि कथा लिखवाते समय एक पल के लिए भी नहीं रुकेंगे। इस शर्त को मानते हुए महर्षि ने भी एक शर्त रख दी कि गणेश भी एक-एक वाक्य को बिना समझे नहीं लिखेंगे। इस तरह गणेशजी के समझने के दौरान महर्षि को सोचने का अवसर मिल गया।
3 .कपिल : - जिनके श्री विग्रह से नीले और पीले वर्ण की आभा का प्रसार होता है
जिनके श्री विग्रह से नीले और पीले वर्ण की आभा का प्रसार होता है। ग्रे रंग का एक विशेषण साधन है शक्की ग्रे रंग की गाय कपिला कहा जाता है गाय इसी प्रकार भगवान गणेश के रूप में ज्ञान और दूध के रूप में ज्ञान के रूप में दही घी देता है वह रंग में ग्रे है, हालांकि आदि घी दूध, दही, जैसे उत्पादों देकर उसे स्वस्थ रखने के लिए एक आदमी की जरूरतों को संतुष्ट अभिव्यक्ति की।
उन्होंने कहा कि आदमी को स्वस्थ बनाता है उसके सभी बुराइयों को नष्ट कर देता है और अपनी चिंताओं से दूर साफ करता है। इसलिए उसका नाम कपिल यह किया जाता है, इस अर्थ में फिट बैठता है।
4. गजकर्णक - हाथी के कान वाले : - श्री गणेश लंबे एवं बड़े कानों वाले हैं। उनका एक नाम गजकर्ण भी है। लंबे कान वालों को भाग्यशाली भी कहा जाता है। श्री गणेश तो भाग्य विधाता और शुभ फल दाता हैं। गणेश जी के कानों से यह संदेश मिलता है कि मनुष्य को सुननी सबकी चाहिए, लेकिन अपने बुद्धि विवेक से ही किसी कार्य का क्रियान्वयन करना चाहिए।
गणेश जी के लंबे
कानों का एक रहस्य यह भी है कि क्षुद्र कानों वाला व्यक्ति सदैव व्यर्थ की बातों को सुनकर अपना ही अहित करने लगता है। इसलिए व्यक्ति को अपने कान इतने बड़े कर लेने चाहिए कि हजारों निन्दकों की भली-बुरी बातें उनमें इस तरह समा जाए कि वे बातें कभी मुंह से बाहर न निकल सकें।
5. लम्बोदर - लम्बे उदर (पेट) वाले : - भगवान् श्री गणेश का लम्बोदर अवतार सत्स्वरूप तथा ब्रह्मशक्ति का धारक है, भगवान लम्बोदर को क्रोधासुर का वध करने वाला तथा मूषक वाहन पर चलने वाला कहा जाता है । कथारू- एक बार भगवान विष्णु के मोहिनी रुप को देखकर भगवान शिव कामातुर हो गये ।
जब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप का त्याग किया तो कामातुर भगवान् शिव का मन दुखी हो गया । उसी समय उनका शुक्र धरती पर स्खलित हो गया । उससे एक प्रतापी काले रंग का असुर पैदा हुआ।
उसके नेत्र तांबे की तरह चमकदार थे । वह असुर शुक्राचार्य के पास गया और उनके समक्ष अपनी इच्छा प्रकट की । शुक्राचार्य कुछ क्षण विचार करने के बाद उस असुर का नाम क्रोधासुर रखा और उसे अपनी शिष्यता से अभिभूत किया । फिर उन्होंने शम्बर दैत्य की रूपवती कन्या प्रीति के साथ उसका विवाह कर दिया ।
एक दिन क्रोधासुर ने आचार्य के समक्ष हाथ जोड़कर कहा - ‘मैं आप की आज्ञा से सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों पर विजय प्राप्त करना चाहता हूँ । अतरू आप मुझे यश प्रदान करने वाला मन्त्र देने की कृपा करें ।’ शुक्राचार्य ने उसे सविधि सूर्य-मन्त्र की दीक्षा दी। क्रोधासुर शुक्राचार्य की आज्ञा लेकर वन मे चल गया । वहाँ उसने एक पैर पर खड़े होकर सूर्य-मन्त्र का जप किया ।
उस धैर्यशाली दैत्य ने निराहार रह कर वर्षा, शीत और धूप का कष्ट सहन करते हुए कठोर तप किया । असुर के हजारों वर्षो की तपस्या के बाद भगवान सूर्य प्रकट हुए । क्रोधासुर ने उनका भक्ति पूर्वक पूजन किया । भगवान सूर्य को प्रसन्न देख कर उसने कहा- ‘प्रभो ! मेरी मृत्यु न हो । मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों को जीत लूँ । सभी योद्धाओं में श्रेष्ठ सिद्ध होऊँ ।’ तथास्तु ! कहकर भगवान सूर्य अन्तर्धान हो गये ।
घर लोटकर क्रोधासुर ने शुक्राचार्य के चरणों में प्रणाम किया। शुक्राचार्य ने उसका आवेश्पुरी में दैत्यों के राजा के पद पर अभिषेक कर दिया । कुछ दिनों के बाद उसने असुरों से ब्रह्माण्ड विजय की इच्छा व्यक्त की। असुर बड़े प्रसन्न हुए । विजय यात्रा प्रारम्भ हुई। उसने पृथ्वी पर सहज ही अधिकार कर लिया। इसी प्रकार वैकुण्ठ और कैलाश पर भी उस महादैत्य का राज्य स्थापित हो गया । क्रोधासुर ने भगवान सूर्य के सूर्य लोक को भी जीत लिया।
वरदान देने के कारण उन्होंने भी सूर्यलोक का दुखी ह्रदय से त्याग कर दिया । अत्यंत दुखी देवताओं और ऋषियों ने आराधना की । इससे संतुष्ट होकर लम्बोदर प्रकट हुए । उन्होंने कहा - ’देवताओं और ऋषियों ! मैं क्रोधासुर का अहंकार चूर्ण कर दूंगा । आप लोग निश्चिंत हो जायें । लम्बोदर के साथ क्रोधासुर का भीषण संग्राम हुआ । देवगण भी असुरों का संहार करने लगे ।
क्रोधासुर के बड़े - बड़े योद्धा युद्ध भूमि में आहत होकर गिर पड़े । क्रोधासुर दुखी होकर लम्बोदर के चरणों में गिर गया तथा उनकी भक्ति भाव से स्तुति कर ने लगा । सहज कृपालु लम्बोदर ने उसे अभयदान दे दिया । क्रोधासुर भगवान लम्बोदर का आशीर्वाद और भक्ति प्राप्त कर शान्त जीवन लिए पाताल चला गया । देवता अभय और प्रसन्न होकर भगवान लम्बोदर का गुणगान करने लगे ।
6. विकट - सर्वश्रेष्ठ : - भगवान श्रीगणेश को विकट नाम से भी जाना जाता है। दरअसल यह बप्पा के एक अवतार का नाम है। उन्होंने यह अवतार कामासुर के संहार के लिए लिया था। कहते हैं कि भगवान विष्णु जब जालंधर के वध के लिए वृन्दा का तप नष्ट करने गए तभी उसी समय उनके शुक्र से अत्यंत तेजस्वी दैत्य कामासुर पैदा हुआ।
कामासुर ने अपनी पूरी शिक्षा दैत्यासुर शुक्राचार्य से ली। उन्हीं की आज्ञा पाकर वह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया। उसकी कठिन तप से खुश होकर। भगवान शिव उसके समक्ष प्रकट हुए। कामासुर ने वर मांगा कि उसे ब्रह्मांड का राज्य और शिवभक्ति प्रदान करें। इसके साथ ही उसे निर्भय और मृत्युंजयी होने का वरदान भी दें।
भगवान शिव ने कामासुर को यह वरदान दे दिया। कामासुर प्रसन्न होकर दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास लौट आया। शुक्राचार्य ने कामासुर से प्रसन्न होकर महिषासुर की रूपवती पुत्री तृष्णा के साथ उसका विवाह कर दिया। वहीं सभी दैत्यों ने भी कामासुर के अधीन रहने का आश्वासन दिया। कामासुर ने अत्यंत सुंदर शहर रतिद को अपनी राजधानी बनाई। उसने कई दैत्यों को अपनी सेना में प्रधान बनाया। उस महा असुर ने पृथ्वी के सभी राजाओं को जीत लिया और स्वर्ग पर चढ़ाई की।
इंद्र आदि देव भी उसके पराक्रम से घवरा कर हार गए। इस तरह चारों तरफ झूठ-कपट और छल का राज्य हो गया। चारों तरफ इस तरह का आतंक देखकर सभी देवता घबरा गए, तभी देवर्षि नारद वहां पहुंचे उन्होंने देवताओं को म
उन्हें रोक कर कहते हैं कि आप उधर नहीं जा सकते हैं।
महादेव ने बालक से पूछा की आप कौन है? बाल गणेश ने कहा में माता पार्वती का पुत्र हूँद्य महादेव ने कहा की में पार्वती का पति हूँ मुझे अंदर जाने दो। किन्तु गणेश ने अनुमति नही दी। महादेव अपना क्रोध शांत करके वहां से चले गये। महादेव ने अपने गण को वहां भेजा।
गणेश ने उनके साथ युद्ध किया गणेश ने उनकी ऐसी हालत कर दी की वह भगवान शिव की शरण में चले गये। उन्होंने अपनी व्यथा महादेव के आगे व्यक्त की। उनकी व्यथा सुनकर महादेव क्रोधित हो जाते हैं और पुनः वह गणेश से युद्ध करने चले जाते है। महादेव गणेश जी को रास्ते से हटने का कहते हैं किंतु गणेश जी अड़े रहते हैं तब दोनों में युद्ध हो जाता है।
युद्ध के दौरान क्रोधित होकर शिवजी बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। शिव के इस कृत्य का जब पार्वती को पता चलता है तो वे विलाप और क्रोध से प्रलय का सृजन करते हुए कहती है कि तुमने मेरे पुत्र को मार डाला। यह सुनकर महादेव को आश्चर्य होता हैद्य माता का रौद्ररूप देख महादेव अपने गण को कहते है की वह उत्तर दिशा की ओर जाये और कोई भी पहला प्राणी मिले तो उसका सर काटकर शाम होने से पूर्व ले आये।
शिवगण उत्तर की ओर जाते है। उन्हें पहले दो हिरन मिले किन्तु वह माता पुत्र थे। यह देखकर गण आगे गये। फिर उन्हें एक हाथी मिला। हाथी ने गण को अपना शीष काटने की अनुमति दी। वह जल्दी से महादेव के पास गये।
महादेव हाथी का सिर गणेश के धड़ से जोड़कर गणेश जी को पुनरूजीवित कर देते हैं। तभी से भगवान गणेश को गजानन गणेश कहा जाने लगा।
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