गुरु ग्रह की उत्पत्ति की कहानी
ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 94150 87711
पुराणों के अनुसार ब्रह्म जी के मानस पुत्र अंगिरा ऋषि का विवाह स्मृति से हुआ। उनके उतथ्य व जीव नामक पुत्र हुए। जीव बचपन से ही शांत एवम जितेन्द्रिय प्रकृति के थे। वे समस्त शास्त्रों तथा नीति के ज्ञाता हुए।
अंगिरानंदन जीव ने प्रभास क्षेत्र में शिवलिंग की स्थापना की तथा शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया। महादेव ने उनकी आराधना एवम तपस्या से प्रसन्न हो कर उन्हें साक्षात दर्शन दिए और कहा,' हे द्विज श्रेष्ठ ! तुमने बृहत तप किया है अतः तुम बृहस्पति नाम से प्रसिद्ध हो कर देवताओं के गुरु बनों और उनका धर्म व नीति के अनुसार मार्गदर्शन करो।'
इस प्रकार महादेव ने बृहस्पति को देवगुरु पद और नवग्रह मंडल में स्थान प्रदान किया। तभी से जीव, बृहस्पति और गुरु के नाम से विख्यात हुए। देवगुरु की शुभा,तारा और ममता तीन पत्नियां हैं। उनकी तीसरी पत्नी ममता से भारद्वाज एवम कच नामक दो पुत्र हुए।
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