जब 19 सालों तक पीपल के पेड़ से उल्टे लटके रहे थे शनि देव शनि, ग्रह व देवता दोनों रूप में पूजे जाते हैं। शनि व्यक्ति को उसके अच्छे व बुरे कर्मो का फल प्रदान करते हैं। इसी कारण इन्हें कर्म दंडाधिकारी का पद प्राप्त है। यह पद उन्हें भगवान शंकर से प्राप्त है। मूलतः शनि कर्म प्रधान ग्रह है जिसका पुराणों ने साकार दार्शनिक चित्रण किया है। शास्त्रनुसार शनि के अधिदेवता ब्रह्मा व प्रत्यधिदेवता यम हैं। कृष्ण वर्ण शनि का वाहन गिद्ध है व यह लोह रथ की सवारी करते हैं। शनि ने अपनी दृष्टि से पिता सूर्य को कुष्ठ रोग दे दिया था। कहते हैं जिन पर इनकी कदृष्टि पड़ती है, वो राजा से रंक बन जाता है। देवी-देवता तक इनसे प्रकोप से डरते हैं, लेकिन दोस्तों सबको को सजा देने वाले शनि देव को भी एक बार 19 साल तक उल्टे लटकना पड़ा था। आईए जानते है इसके बारें में, Jyotish Aacharya Dr Uma Shankar Mishra 9415 087 711 92 357 22996 शास्त्रों के अनुसार सूर्य ने अपने सभी पुत्रों की योग्यतानुसार उन्हें विभिन्न लोकों का अधिपत्य प्रदान किया परंतु असंतुष्ट शनि ने उद्दंडता वश पिता की आज्ञा की अवेलना करते हुए दूसरे लोकों पर कब्जा कर लिया। सूर्य की प्रार्थना पर भगवान शंकर ने अपने गणों को शनि से युद्ध करने भेजा परंतु शनिदेव ने उनको परास्त कर दिया। इसके उपरांत भगवान शंकर व शनिदेव में भयंकर युद्ध हुआ। शनिदेव ने भगवान शंकर पर मारक दॄष्टि डाली तो भगवान शंकर ने तीसरा नेत्र खोलकर शनि व उनके सभी लोक का दमन कर शनि पर त्रिशुल का प्रहार कर दिया और शनि देव को पराजित किया। इसके बाद शनि को सबक देने के लिए महादेव ने उन्हे पीपल के पेड़ से 19 वर्षों तक उल्टा लटका दिया। इन्हीं 19 वर्षों तक शनि शिव उपासना में लीन रहे। इसी कारण शनि की महादश 19 वर्ष की होती है परंतु पुत्रमोह से ग्रस्त सूर्य ने महेश्वर से शनि का जीवदान मांगा। तब महेश्वर ने प्रसन्न होकर शनि को मुक्त कर उन्हें अपना शिष्य बनाकर संसार का दंडाधिकारी नियुक्त किया। !! जय शनिदेव !! न्याय देवता शनि सदा,सच की रखते लाज। यही गिराते हैं सदा ,झूठे जन पर गाज।। !! जय शनिदेव !!