अखंड सुहाग का प्रतीक- करक चतुर्थी अर्थात् करवा चौथ का सनातनी महत्व Jyotish Acharya Dr Uma Shankar Mishra 941 5087 7119 2357 22996 व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम् । दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते ।। अर्थ: व्रत धारण करने से मनुष्य दीक्षित होता है। दीक्षा से उसे दक्षता, निपुणता प्राप्त होता है। दक्षता की प्राप्ति से श्रद्धा का भाव जागृत होता है और श्रद्धा से ही सत्यस्वरूप ब्रह्म की प्राप्ति होती है। भारतीय संस्कृति का यह लक्ष है कि, जीवन का प्रत्येक क्षण व्रत, पर्व और उत्सवों के आनंद एवं उल्हास से परिपूर्ण हो । इन में हमारी संस्कृति की विचारधारा के बीज छिपे हुए हैं । यदि भारतीय नारी के समूचे व्यक्तित्व को केवल दो शब्दों में मापना हो तो ये शब्द होंगे- तप एवं करुणा । हम उन महान ऋषी-मुनियों के श्रीचरणों में कृतज्ञता पूर्वक नमन करते है कि, उन्होंने हमें व्रत, पर्व तथा उत्सव का महत्त्व बताकर मोक्षमार्ग की सुलभता दिखाई । हिंदु नारियों के लिए ‘करवाचौथ’का व्रत अखंड सुहाग को देने वाला माना जाता है । इस वर्ष करवाचौथ 4 नवंबर को है। विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घ आयु एवं उत्तम स्वास्थ्य की मंगलकामना करके भगवान चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर व्रत का समापन करती हैं । स्त्रियों में इस दिन के प्रति इतना अधिक श्रद्धाभाव होता है कि वे कई दिन पूर्व से ही इस व्रत की सिद्धता का प्रारंभ करती हैं । यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है, यदि वह दो दिन चंद्रोदयव्यापिनी हो अथवा दोनों ही दिन न हो तो पूर्वविद्धा लेनी चाहिए । करक चतुर्थी को ही ‘करवाचौथ’ भी कहा जाता है । वास्तव में करवाचौथ का व्रत हिंदु संस्कृति के उस पवित्र बंधन का प्रतीक है, जो पति-पत्नी के बीच होता है । हिंदु संस्कृति में पति को परमेश्वर की संज्ञा दी गई है । करवाचौथ पति एवं पत्नी दोनों के लिए नवप्रणय निवेदन तथा एक-दूसरे के लिए अपार प्रेम, त्याग, एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है । इस दिन स्त्रियां पूर्ण सुहागिन का रूप धारण कर, वस्त्राभूषणों को पहनकर भगवान रजनीनाथ से अपने अखंड सुहाग की प्रार्थना करती हैं । स्त्रियां सुहागचिन्हों से युक्त शृंगार करके ईश्वर के समक्ष दिनभर के व्रत के उपरांत यह प्रण लेती हैं कि, वे मन, वचन एवं कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी । कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथ को केवल रजनीनाथ की पूजा नहीं होती; अपितु शिव-पार्वती एवं स्वामी कार्तिकेय की भी पूजा होती है । शिव-पार्वती की पूजा का विधान इस हेतु किया जाता है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया, वैसा ही उन्हें भी मिले । वैसे भी गौरी- पूजन का कुंआरी और विवाहित स्त्रियों के लिए विशेष महात्म्य है ।