क्यों खाते हैं झूठी भगवान की
कसम हम लोग
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हम भारतीय किसी भी बात को सच्चा साबित करने हेतु जो सबसे पहले करते है,वो है कसम खाना,और उस पर भी भगवान की कसम ।जबकि सब जानते है की आखिर मै हमे उनके पास ही जाना है ,वो गाना आप सभी को याद है ।
सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है
ना हाथी है, ना घोड़ा है, वहा पैदल ही जाना है।
कसम क्या होती है ?
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अपने कथन की सत्यता प्रमाणित करने के उद्देश्य से ईश्वर, देवता अथवा किसी पूज्य या अतिप्रिय व्यक्ति, वस्तु आदि की दुहाई देते हुए दृढ़तापूर्वक कही हुई बात को कसम कहा जाता है।
क्या कसम खानी जरूरी है
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इंसान को वाणी की शुद्धि और सच्चाई पर सर्वाधिक गंभीर रहना चाहिए। जो इंसान सत्यभाषी, कर्मठ और न्यायप्रिय होता है वही विश्वास करने योग्य है।
तनिक भी झूठ का सहारा लेने वाला इंसान हर दृष्टि से विश्वासहीन होता है और ऎसे लोगों पर जो विश्वास करता है उसका डूबना और दुःखी होना निश्चित ही है।
बार बार और बात बात पर कसम खाने से विश्वास कम होता है ।
किसी भी बात की पुष्टि और सामने वाले को भीतर तक अहसास कराने के लिए बार-बार अपनी कसम खाना, बीवी-बच्चों और पति, माता-पिता या संबंधों की कसम खाना उचित नहीं कहा जा सकता।
फिर आजकल लोग छोटी-छोटी बातों में भगवान की कसम तक खा लेते हैं। इन्हें पता होता है कि भगवान को क्या फर्क पड़ता है हमारी खायी कसमों का। इसलिए सबसे ज्यादा किसी की कसम खायी जाती है तो वह भगवान की ही, क्योंकि भगवान पर किसी कसम का कोई प्रभाव कभी नहीं पड़ सकता, इस बात को दुनिया भर के सारे शातिर, धूर्त, मक्कार और झूठे लोग अच्छी तरह जानते हैं।
एक जोक्स याद आ रहा है,
भगवान कसम खाने से क्या होता है?”
“सबसे safe भगवान कसम ही होती है यार।”
“क्यूँ?”
“क्यूँकि भगवान कभी मरता नहीं।”
“झूठी कसम से भी नहीं।”
“अबे नहीं यार, यही तो खास बात है भगवान की। मरता नहीं न। इसीलिए सब भगवान की झूठी कसम तुरंत खा लेते हैं तुझे भी कभी झूठी कसम खानी पड़े तो भगवान की खा लेना।
दोस्तों, ये बात सही है की भगवान कभी मरते नही, वो अनन्त है, अनादि है, हमेशा है, रहेंगे, वो अमर है। लेकिन जब हम भगवान की कसम झूठी खाते है, तब धीरे धीरे हमारी ऊर्जा, हमारी शक्ति कम होती जाती है। एक इंसान जो ऊर्जा, जो शक्ति वर्षो तक पूजा, पाठ, हवन करके संग्रहित करता है, झूठी कसम,और उसपर भगवान की कसम खाने से खत्म हो जाती है ।
अब कोई ईमान की कसम नहीं खाता।
एक ज़माना था, जब लोग ईमानदारी कसम खाते थे।
--''सच कह रहा है क्या?''
--''हाँ, ईमान से'' या फिर ''हाँ, ईमान की कसम।''
लोगों को लगता था कि उनके पास ईमान है तो सब कुछ है. जिसका ईमान गया वह 'बे-ईमान' माना जाता था। बे-ईमान होना यानी घृणास्पद होना।
हिन्दू परम्परा मै भगवान की कसम के सम्बन्ध मै कोई उल्लेख नही किया गया किन्तु जब अदालत मै पवित्र गीता पर हाथ रखकर कसम खिलाई जाती है तो उसे पवित्र माना जाता है।
कहा जाता है की पवित्र गीता की झूठी कसम खाने से नर्क मै भी जगह नही मिलती ।
जबकि मुस्लिम धर्म मै इसका विपरीत है , पवित्र कुरआन के अनुसार जो भी व्यक्ति मुशरिक रहते हुए मर जायेगा , वह सदा के लिए जहन्नम की आग में जलता रहेगा .हदीसों में शिर्क के कई रूप बताये गए हैं .यहांतक अल्लाह के अतिरिक्त किसी और के नाम पर कसम (Swearig )खाना या सौगंध ( Oath ) लेना भी शिर्क माना गया है .अरब के मुसलमान बात बात पर अपने बाप दादा और काबा की कसम खाया करते थे . मुहम्मद साहब ने इसे भी शिर्क बताया .और सिर्फ अल्लाह के नाम की कसम खाने का हुक्म दिया । मतलब आप सिर्फ अल्लाह की कसम खा सकते हो ।
खैर हर धर्म की अलग अलग परम्परा ,नियम और पथ होते है ।पर ये सत्य हैं की जब आप ईश्वर की झूठी कसम खाते हो तो आप खुद भगवान से दूर, और दूर ,और दूर होते चले जाते हो ,और एक दिन भगवान आपको अपने प्यार, स्नेह और आशीर्वाद से वंचित कर देता है । लेकिन वंही यदि आप किसी के भले, किसी की जान बचाने ,के लिये कसम खाते हो तो वो गुनाह भी आशीर्वाद बन जाता है ।
तो कम से कम अपने भगवान, ईश्वर को इतना आसान ,फ़ालतू या बेवजह न समझो की हर पल, हर वक्त,हर समय ,बिना बात के उनकी झूठी कसम खाते रहो । जिस दिन उन्होंने अपना हाथ आपके सिर से हटा लिया उस दिन न कसम खाने के लिये हाथ होगा, न गला ।
ईश्वर की शक्ति असीम है, उस शक्ति का सम्मान कीजिये ।
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