*नवरात्रऔरदुर्गा सप्तशति। Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra 9415 087 711 923 5722 996 : दुर्गा सप्तशती के सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के बारे में जो स्वयं में ही सिद्ध होता है । इसी मंत्र के प्रयोग से मेघनाथ ने भगवान राम और लक्ष्मण जी को नाग पाश में बांधकर मूर्छित कर दिया था । इतना प्रभावशाली और तीव्रता के साथ यह सिद्ध कुंजिका स्तोत्र कार्य करता है । यह बात बहुत ही कम लोग जानते हैं कि मेघनाथ ने सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की सिद्धि प्राप्त कर रखी थी इसी वजह से वह देवराज इंद्र को भी पराजित कर सकता था और कर भी चुका था । इसकी गोपनीय विधि बताई गई है शास्त्रों में कि इसका एक लाख बार जाप हवन करते हुए, हवन कुंड में करें और आपको 7 दिन तक लगातार यह हवन और जाप करते रहना होगा । बिना किसी की सहायता के और किसी ऐसे एकांत स्थान या गुफा में जहां किसी का भी प्रवेश वर्जित हो जहां कोई भी आपको परेशान कर सके । ऐसा करने पर माता प्रसन्न हो जाती हैं और एक दिव्य रथ उत्पन्न करती हैं जिसमें बैठकर आप तीनो लोकों को जीत सकते हैं आपको कोई भी पराजित नहीं कर सकता । जब तक आप उस रथ पर बैठे रहेंगे तब तक अविजित रहेंगे ।
मेघनाथ भी यही करने का प्रयास कर रहा था अंतिम समय में पर विभीषण के बताने पर लक्ष्मण और हनुमान जी द्वारा उसकी साधना उपासना यज्ञ को भंग करवा दिया गया था अन्यथा उसे पराजित करना असंभव हो जाता । आज के समय में कोई सिद्ध बलवान साधक इस साधना को संपूर्ण कर सकता है
सारी शक्तियां और सिद्धियां माता आदिशक्ति के अधीन रहती हैं । चाहे वो माता आदिशक्ति जगदंबा का स्वरुप हो काली रूप लक्ष्मी का रूप हो या माता सरस्वती का रूप । यह सब एक ही शक्ति के भिन्न-भिन्न रूप स्वरुप हैं । इसलिए इनकी साधना उपासना हर व्यक्ति को अवश्य करनी चाहिए । कुंजिका स्तोत्र के लाभ धन लाभ जिन लोगों को सदा धन का अभाव रहता हो। ... धन संग्रहण बढ़ता है। शत्रु मुक्ति शत्रुओं से छुटकारा पाने और मुकदमों में जीत के लिए यह स्तोत्र किसी चमत्कार की तरह काम करता है। नवरात्रि के बाद भी इसका नियमित पाठ किया जाए तो जीवन में कभी शत्रु बाधा नहीं डालते। प्राचीन काल से सिद्ध किए जाने वाले ये मंत्र स्त्रोत आदि अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं। उनमें उपस्थित शक्ति किसी का भी भाग्य चमकाकर उसे ऐश्वर्यशाली एवं धनवान बना सकती है।
सनातन धर्म दुनिया के महानतम धर्मों में से एक रहा है। सनातन धर्म के अंर्तगत आने वाले शास्त्रों और पुराणों में ऐसी कई चीजें वर्णित हैं जो मानव जाति के उद्धार और मोक्ष के लिए बनाई गई हैं। इन्हीं में से कुछ ऐसे मंत्र हैं जिन्हें सिद्ध करने से अलौकिक सिद्धि प्राप्त होती है और भाग्य भी चमक जाता है।
धर्म ग्रंथों में ये कहा जाता है कि यदि किसी ने 108 दिन तक लगातार इस मंत्र का जाप कर लिया तो ये सिद्ध हो जाता है और उस व्यक्ति को सम्पूर्ण सुख और साधन प्राप्त हो जाते हैं। हर कोई उसकी बात सुनता और मानता है। इस मंत्र का जाप प्रत्येक मंत्र के बाद किया जाता है। जैसे यदि आप धन प्राप्ति के लिए कोई भी मंत्र जप रहे हैं और फिर भी आपको लाभ नहीं हो रहा तो इस मंत्र का साथ में जाप करने से तुरंत सफलता प्राप्त हो जाती है।
इस मंत्र का नाम है 'श्री सिद्धकुंजिका स्त्रोतम' भाग्य चमकाने, धन प्राप्ति, मान-सम्मान, साहस-बल और कष्टों से मुक्ति के लिए आप लाखों मंत्रों का जप कर लें किन्तु यदि आपने इस मंत्र का जाप नहीं किया तो किसी मंत्र का लाभ आपको नहीं मिलेगा।
श्री सिद्धकुंजिका स्त्रोतम स्वयं भगवान शंकर ने अपने श्री मुख से कहा है।
श्री सिद्धकुंजिका स्त्रोतम स्वयं भगवान शंकर ने अपने श्री मुख से कहा है।
भगवान महादेव ने स्वयं माता पार्वती को ये स्त्रोत सुनाया था। ये अत्यंत गोपनीय मंत्र माना जाता है। जिसे किसी को भी बताए बिना ही जपना चाहिए।
108 दिन लगातार इस मंत्र का जाप करें। यदि 108 बार नहीं कर पा रहे हैं तो श्रावण मास और नवरात्री के तीनों समय अर्थात सुबह, दोपहर और सायंकाल इसेI सिर्फ सुन भी लें तो ये आपको सर्व सुख एवं शांति देता है : मंत्र का जाप करने पर माता आपकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। हमेशा ध्यान रहे कि सिद्ध कुंजिका मंत्र का उपयोग किसी भी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं करना चाहिए। क्योंकि सिद्ध कुंजिका मंत्र बहुत ही अचूक मंत्र होता है। इस सिद्ध कुंजिका मंत्र के बहुत से लाभ मिलते हैं। जैसे आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा है तो वह स्वयं ही नष्ट होने लगती है। सिद्ध कुंजिका मंत्र आपके सीखने की क्षमता को बढ़ा देता है। सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता आपके अंदर आने लगती है। स्मरण शक्ति बढ़ने लगती है। सिद्ध कुंजिका मंत्र के जाप से आपके अंदर की कला को उभारने में मदद मिलती है। आपको समाज में मान-सम्मान मिलना शुरू हो जाता है। आपके घर-परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ने लगती है। आपके अन्दर कर्ज को चुकाने की क्षमता आने लगती है। आपको नौकरी और व्यापार में लाभ मिलने शुरू हो जाते हैं। नौकरी में पदोन्नति की संभावना भी बढ़ने लगती है। हर तरह के भौतिक सुखों की प्राप्ति आपको होने लगती है। सिद्ध कुंजिका मंत्र के प्रभाव से नवग्रह के दोष भी शांत हो जाते हैं। सिद्ध कुंजिका मंत्र के प्रभाव से पति-पत्नी के संबंध मधुर होने लगते हैं। प्रेमी-प्रेमिकाओं के मनमुटाव दूर हो जाते हैं। समाज में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने का मौका मिलता है। आपकी बातों और हाव-भाव में आकर्षण बढ़ जाता है। इस सिद्ध कुंजिका मंत्र के प्रभाव से आपकी उम्र का प्रभाव आपके शरीर पर कम होता है। यह मंत्र आपके साहस को बढ़ाता है। इस मंत्र के प्रभाव से आपके शत्रु आपसे हमेशा दूर रहते हैं। आपकी बदनामी करने वाले व्यक्ति शांत हो जाते हैं। और आपके मुरीद बन जाते हैं।
किसी भी शांत वातावरण या शांत कमरे में स्वच्छ और ढीले वस्त्र पहनकर किसी भी मुद्रा में बैठ जाएं। जो लोग जमीन पर नहीं बैठ सकते हैं तो ऐसे लोग कुर्सी-सोफा आदि पर बैठ जाएं। सबसे पहले दस बार सामान्य रूप. से प्राणायाम करें। लंबी-गहरी सांस लें और छोड़ें। फिर अपने आज्ञाचक्र यानि दोनों नेत्रों के मध्य में ध्यान करते हुए सिद्ध कुंजिका मंत्र का जाप करें।
सिद्ध कुंजिका मंत्र
।।ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।
अर्थात आप सिद्ध कुंजिका मंत्र का गुदगुदाकर जप करें। और आपकी अवाज दूर तक नहीं जानी चाहिए।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी है। इस स्तोत्र का पाठ मनुष्य के जीवन में आ रही समस्या और विघ्नों को दूर करने वाला है। मां दुर्गा के इस पाठ का जो मनुष्य विषम परिस्थितियों में वाचन करता है उसके समस्त कष्टों का अंत होता है। प्रस्तुत है श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र-
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।
अथ मंत्र :-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''
।।इति मंत्र:।।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
।इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्। माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र ll
१॰ बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये
“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥” (अ॰१२,श्लो॰१३)
अर्थ :- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
२॰ बन्दी को जेल से छुड़ाने हेतु
“राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा।
आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे।।” (अ॰१२, श्लो॰२७)
३॰ सब प्रकार के कल्याण के लिये
“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१०)
अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।
४॰ दारिद्र्य-दु:खादिनाश के लिये
“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥” (अ॰४,श्लो॰१७)
अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दयार्द्र रहता हो।
४॰ वित्त, समृद्धि, वैभव एवं दर्शन हेतु
“यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि।।
संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमापदः।
यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां स्तोष्यत्यमलानने।।
तस्य वित्तर्द्धिविभवैर्धनदारादिसम्पदाम्।
वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके।। (अ॰४, श्लो॰३५,३६,३७)
५॰ समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये
“विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति :॥” (अ॰११, श्लो॰६)
अर्थ :- देवि! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे एवं परा वाणी हो।
६॰ शास्त्रार्थ विजय हेतु
“विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेष्वाद्येषु च का त्वदन्या।
ममत्वगर्तेऽति महान्धकारे, विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम्।।” (अ॰११, श्लो॰ ३१)
७॰ संतान प्राप्ति हेतु
“नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी” (अ॰११, श्लो॰४२)
८॰ अचानक आये हुए संकट को दूर करने हेतु
“ॐ इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्ॐ।।” (अ॰११, श्लो॰५५)
९॰ रक्षा पाने के लिये
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥
अर्थ :- देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।
१०॰ शक्ति प्राप्ति के लिये
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥
अर्थ :- तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।
११॰ प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥
अर्थ :- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीया परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो।
१२॰ विविध उपद्रवों से बचने के लिये
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥
अर्थ :- जहाँ राक्षस, जहाँ भयंकर विषवाले सर्प, जहाँ शत्रु, जहाँ लुटेरों की सेना और जहाँ दावानल हो, वहाँ तथा समुद्र के बीच में भी साथ रहकर तुम विश्व की रक्षा करती हो।
१३॰ बाधा शान्ति के लिये
“सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥” (अ॰११, श्लो॰३८)
अर्थ :- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।
१४॰ सर्वविध अभ्युदय के लिये
ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्ग:।
धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥
अर्थ :- सदा अभ्युदय प्रदान करनेवाली आप जिन पर प्रसन्न रहती हैं, वे ही देश में सम्मानित हैं, उन्हीं को धन और यश की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री, पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं।
१५॰ सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिये
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥
अर्थ :- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।
१६॰ आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
अर्थ :- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।
१७॰ महामारी नाश के लिये
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
अर्थ :- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।
१८॰ रोग नाश के लिये
“रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥” (अ॰११, श्लो॰ २९)
अर्थ :- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाञ्छित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।
१९॰ विपत्ति नाश के लिये
“शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१२)
अर्थ :- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।
२०॰ पाप नाश के लिये
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥
अर्थ :- देवि! जो अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके दैत्यों के तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगों की पापों से उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे माता अपने पुत्रों की बुरे कर्मो से रक्षा करती है।
१७॰ भय नाश के लिये
“सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ ” (अ॰११, श्लो॰ २४,२५,२६)
अर्थ :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है।
२१॰ विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।
अर्थ :- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले।
२२॰ विश्व की रक्षा के लिये
या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥
अर्थ :- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध8 अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये।
२३॰ विश्व के अभ्युदय के लिये
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं
विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति
विश्वाश्रया ये त्वयि भक्ति नम्रा:॥
अर्थ :- विश्वेश्वरि! तुम विश्व का पालन करती हो। विश्वरूपा हो, इसलिये सम्पूर्ण विश्व को धारण करती हो। तुम भगवान् विश्वनाथ की भी वन्दनीया हो। जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारे सामने मस्तक झुकाते हैं, वे सम्पूर्ण विश्व को आश्रय देनेवाले होते हैं।
२४॰ विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥
अर्थ :- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो।
२५॰ विश्व के पाप-ताप निवारण के लिये
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥
अर्थ :- देवि! प्रसन्न होओ। जैसे इस समय असुरों का वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओं के भय से बचाओ। सम्पूर्ण जगत् का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बडे-बडे उपद्रवों को शीघ्र दूर करो।
२६॰ विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये
यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तु मलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय9
नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥
अर्थ :- जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान् शेषनाग, ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें।
२७॰ सामूहिक कल्याण के लिये
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥
अर्थ :- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हमलोगों का कल्याण करें।
२८॰ भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
२९॰ पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये
नतेभ्यः सर्वदा भक्तया चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
३०॰ स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये
सर्वभूता यदा देवि स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥
३१॰ स्वर्ग और मुक्ति के लिये
“सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य ह्रदि संस्थिते।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोस्तुऽते॥” (अ॰११, श्लो८)
३२॰ मोक्ष की प्राप्ति के लिये
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः॥
३३॰ स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय॥
३४॰ प्रबल आकर्षण हेतु
“ॐ महामायां हरेश्चैषा तया संमोह्यते जगत्,
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।” (अ॰१, श्लो॰५५)
उपरोक्त मंत्रों को संपुट मंत्रों के उपयोग में लिया जा सकता है अथवा कार्य सिद्धि के लिये स्वतंत्र रुप से भी इनका पुरश्चरण किया जा सकता है।। दुर्गा सप्तशती के पाठ का महत्व-
माँ दुर्गा की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करhने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ सर्वोत्तम है । दुर्गा शक्ति की उत्पत्ति तथा उनके चरित्रों का वर्णन मार्कण्डेय पुराणां के अंतर्गत देवी माहात्म्य में किया गया है। भुवनेश्वरी संहिता में कहा गया है- जिस प्रकार से ''वेद'' अनादि है, उसी प्रकार ''सप्तशती'' भी अनादि है।
दुर्गा सप्तशती 700 श्लोकों में देवी-चरित्र का वर्णन है। दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं, और यह मुख्य रूप से ये तीन चरित्र प्रथम चरित्र (इसमें प्रथम अध्याय), मध्यम चरित्र (इसमें दूसरा, तीसरा, और चौथा अध्याय) और उत्तम (इसमें पाँचवे से तेरहवें अध्याय) में है । प्रथम चरित्र की देवी महाकाली, मध्यम चरित्र की देवी महालक्ष्मी और तीसरे उत्तम चरित्र की देवी महासरस्वती मानी गई है। दुर्गा सप्तशती में माँ महाकाली की स्तुति एक अध्याय में, माँ महालक्ष्मी की स्तुति तीन अध्यायों में और माँ महासरस्वती की स्तुति नौ अध्यायों में वर्णित की गयी है।
इस दुर्गा सप्तशती में मारण के 90,
मोहन के 90,
उच्चाटन के 200,
स्तंभन के 200
वशीकरण के 60 और
विद्वेषण के भी 60 प्रयोग दिए गए हैं। इस प्रकार यह कुल 700 श्लोक 700 प्रयोगों के समान माने गये हैं।
दुर्गा सप्तशती में राजा सुरथ जिनका शत्रुओं और दुष्ट मंत्रियों के कारण सम्पूर्ण राजपाट, कोष , सेना और बहुमूल्य वस्तुएँ सब कुछ हाथ से छिन गया था और समाधि नामक वैश्य जिसकी दुष्ट स्त्री और पुत्र ने धन के लोभ में उसको घर से निकाल दिया था लेकिन इतना सब कुछ हो जाने के बाद निराशा से घिरे होने के बाद भी उन दोनों का मन अपने घर परिवार, अपने राज्य और अपने परिजनों में ही आसक्त था उन दोनों को मेघा ऋषि ने ज्ञान दिया है।
इस देवी महात्म्य के श्रवण के बाद राजा सुरथ और समाधि वैश्य दोनों ने ही माँ आदि शक्ति की आराधना की। तत पश्चात देवी की कृपा से राजा सुरथ को उनका खोया राज्य और वैश्य को भी पूर्ण जान प्राप्त हुआ। उसी प्रकार जो व्यक्ति माँ भगवती की आराधना करते हैं सभी मनोरथ पूर्ण होते है। ऐसी मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती के केवल 100 बार पाठ करने से सभी तरह की सिद्धियाँ प्राप्त होती है।
महर्षि मेधा ने सर्वप्रथम राजा सुरथ और समाधि वैश्य को यह अदभुत दुर्गा का चरित्र सुनाया। उसके पश्चात महर्षि मृकण्डु के पुत्र चिरंजीवी मार्कण्डेय ने मुनिवर भागुरि को यही कथा सुनाई थी । यही कथा द्रोण पुत्र पक्षिगण ने महर्षि जैमिनी को सुनाई थी। जैमिनी ऋषि महर्षि वेदव्यास जी के शिष्य थे। फिर इसी कथा संवाद का सम्पूर्ण जगत के प्राणियों के कल्याण के लिए महर्षि वेदव्यास ने मार्कण्डेय पुराण में यथावत् क्रम वर्णन किया है ।
मार्कण्डेय पुराण में ब्रह्माजी ने मनुष्यों की रक्षा के लिए परम गोपनीय साधन, माँ का देवी कवच एवं परम पवित्र किन्तु आसान उपाय संपूर्ण प्राणियों को बताये है । श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ सभी तरह के मनोरथ सिद्धि के लिए करते है । श्री दुर्गा सप्तशती महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करता है। दुर्गा सप्तशती के सभी तेरह अध्याय अलग अलग इच्छित मनोकामना की सहर्ष ही पूर्ति करते है ।
* प्रथम अध्याय: - इसके पाठ से सभी प्रकार की चिंता दूर होती है एवं शक्तिशाली से शक्तिशाली शत्रु का भी भय दूर होता है शत्रुओं का नाश होता है ।
* द्वितीय अध्याय:- इसके पाठ से बलवान शत्रु द्वारा घर एवं भूमि पर अधिकार करने एवं किसी भी प्रकार के वाद विवाद आदि में विजय प्राप्त होती है ।
* तृतीय अध्याय: - तृतीय अध्याय के पाठ से युद्ध एवं मुक़दमे में विजय, शत्रुओं से छुटकारा मिलता है ।
* चतुर्थ अध्याय: - इस अध्याय के पाठ से धन, सुन्दर जीवन साथी एवं माँ की भक्ति की प्राप्ति होती है ।
* पंचम अध्याय: - पंचम अध्याय के पाठ से भक्ति मिलती है, भय, बुरे स्वप्नों और भूत प्रेत बाधाओं का निराकरण होता है ।
* छठा अध्याय: - इस अध्याय के पाठ से समस्त बाधाएं दूर होती है और समस्त मनवाँछित फलो की प्राप्ति होती है ।
* सातवाँ अध्याय: - इस अध्याय के पाठ से ह्रदय की समस्त कामना अथवा किसी विशेष गुप्त कामना की पूर्ति होती है ।
* आठवाँ अध्याय: - अष्टम अध्याय के पाठ से धन लाभ के साथ वशीकरण प्रबल होता है ।
* नौवां अध्याय:- नवम अध्याय के पाठ से खोये हुए की तलाश में सफलता मिलती है, संपत्ति एवं धन का लाभ भी प्राप्त होता है ।
* दसवाँ अधयाय:- इस अध्याय के पाठ से गुमशुदा की तलाश होती है, शक्ति और संतान का सुख भी प्राप्त होता है ।
* ग्यारहवाँ अध्याय:- ग्यारहवें अध्याय के पाठ से किसी भी प्रकार की चिंता, व्यापार में सफलता एवं सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है ।
* बारहवाँ अध्याय:- इस अध्याय के पाठ से रोगो से छुटकारा, निर्भयता की प्राप्ति होती है एवं समाज में मान-सम्मान मिलता है ।
* तेरहवां अध्याय:- तेरहवें अध्याय के पाठ से माता की भक्ति एवं सभी इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होती है ।
मनुष्य जब तक जीवित है तब तक उसके जीवन में उतार चढ़ाव आते ही रहते है । मनुष्य की इच्छाएं अनंत हुई और इन्ही की पूर्ति के लिए दुर्गा सप्तशती से सुगम और कोई भी मार्ग नहीं है । इसीलिए नवरात्र में विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्यायों का पाठ करने का विधान है।......
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