श्रीदुर्गाजी के एक सौ आठ नाम Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra 9415 087 711 शंकरजी पार्वतीजी से कहते हैं:--- कमलानने! अब मैं अष्टोत्तरशतनाम का वर्णन करता हूँ, सुनो; जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण)- मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। १- ॐ सती, २- साध्वी, ३- भवप्रीता (भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली), ४- भवानी, ५- भवमोचनी (संसार बन्धन से मुक्त करने वाली), ६- आर्या, ७- दुर्गा, ८- जया, ९- आद्या, १०- त्रिनेत्रा, ११- शूलधारिणी, १२- पिनाकधारिणी, १३- चित्रा, १४- चण्डघण्टा (प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली), १५- महातपा (भारी तपस्या करनेवाली), १६- मन (मननशक्ति), १७- बुद्धि (बोधशक्ति), १८- अहंकारा (अहंता का आश्रय), १९- चित्तरूपा, २०- चिता, २१- चिति (चेतना), २२- सर्वमन्त्रमयी, २३- सत्ता (सत्स्वरूपा), २४- सत्यानन्दस्वरूपिणी, २५- अनन्ता (जिनके स्वरूप का कहीं अन्त नहीं),२६- भाविनी (सबको उत्पन्न करने वाली), २७- भाव्या (भावना एवं ध्यान करने योग्य), २८- भव्या (कल्याणरूपा), २९- अभव्या (जिससे बढ़कर भव्य कहीं है नहीं), ३०- सदागति, ३१- शाम्भवी (शिवप्रिया), ३२- देवमाता, ३३- चिन्ता, ३४- रत्नप्रिया, ३५- सर्वविद्या, ३६- दक्षकन्या, ३७- दक्षयज्ञविनाशिनी, ३८- अपर्णा (तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली), ३९- अनेकवर्णा (अनेक रंगों वाली), ४०- पाटला (लाल रंगवाली), ४१- पाटलावती (गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली), ४२- पट्टाम्बरपरीधाना (रेशमी वस्त्र पहनने वाली), ४३- कलमंजीररंजिनी (मधुर ध्वनि करने वाले मंजीर को धारण करके प्रसन्न रहने वाली), ४४- अमेयविक्रमा ( असीम पराक्रमवाली), ४५- क्रूरा (दैत्यों के प्रति कठोर), ४६- सुन्दरी, ४७- सुरसुन्दरी, ४८ वनदुर्गा, ४९- मातंगी, ५०- मतंगमुनिपूजिता, ५१- ब्राह्मी, ५२- माहेश्वरी, ५३- ऐन्द्री, ५४- कौमारी, ५५- वैष्णवी, ५६- चामुण्डा, ५७- वाराही, ५८- लक्ष्मी ५९- पुरुषाकृति, ६०- विमला, ६१- उत्कर्षिणी, ६२- ज्ञाना, ६३- क्रिया, ६४- नित्या, ६५- बुद्धिदा, ६६- बहुला, ६७- बहुलप्रेमा, ६८- सर्ववाहनवाहना, ६९- निशुम्भ- शुम्भहननी, ७०- महिषासुरमर्दिनी, ७१- मधुकैटभहन्त्री, ७२- चण्डमुण्डविनाशिनी, ७३- सर्वासुरविनाशा, ७४- सर्वदानवघातिनी, ७५- सर्वशास्त्रमयी, ७६- सत्या, ७७- सर्वास्त्रधारिणी, ७८- अनेकशस्त्रहस्ता, ७९- अनेकास्त्रधारिणी, ८०- कुमारी, ८१- एककन्या, ८२- कैशोरी, ८३- युवती, ८४- यति, ८५- अप्रौढा, ८६- प्रौढा, ८७- वृद्धमाता, ८८- बलप्रदा, ८९- महोदरी, ९० मुक्तकेशी, ९१- घोररूपा, ९२- महाबला, ९३- अग्निज्वाला, ९४- रौद्रमुखी, ९५- कालरात्रि, १६- तपस्विनी, ९७- नारायणी, ९८- भद्रकाली, ९९- विष्णुमाया, १००- जलोदरी, १०१- शिवदूती, १०२- कराली, १०३- अनन्ता (विनाशरहिता), १०४- परमेश्वरी, १०५- कात्यायनी, १०६- सावित्री, १०७- प्रत्यक्षा, १०८- ब्रह्मवादिनी। देवी पार्वती! जो प्रतिदिन दुर्गाजी के इस अष्टोत्तरशतनाम का पाठ करता है, उसके लिये तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है। वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्म आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्त में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है। कुमारी का पूजन और देवी सुरेश्वरी का ध्यान करके पराभक्ति के साथ उनका पूजन करे, फिर अष्टोत्तरशतनाम का पाठ आरम्भ करे। देवि ! जो ऐसा करता है, उसे सब श्रेष्ठ देवताओं से भी सिद्धि प्राप्त होती है। राजा उसके दास हो जाते हैं। वह राज्यलक्ष्मी को प्राप्त कर लेता है। गोरोचन, लाक्षा, कुंकुम, सिन्दूर, कपूर, घी (अथवा दूध), चीनी और मधु, इन वस्तुओं को एकत्र करके इनसे विधि पूर्वक यन्त्र लिखकर जो विधिज्ञ पुरुष सदा उस यन्त्र को धारण करता है, वह शिव के तुल्य (मोक्षरूप) हो जाता है। भौमवती अमावास्या की आधी रात में, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्र पर हों, उस समय इन नामों को लिखकर जो इसका पाठ करता है, वह सम्पत्तिशाली होता है। "ॐ श्री दुर्गायै नमः"